2 अक्टू॰ 2024

सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन आत्मा की एक यात्रा

 सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन आत्मा की एक यात्रा 

संध्या वन्दना करता हुआ व्यक्ति।


सनातन धर्म जिसे हिंदू धर्म भी कहा जाता है विश्व के सबसे प्राचीन और व्यापक धर्मों में से एक है। सनातन का अर्थ है शाश्वत या अनंत और धर्म का अर्थ है कर्तव्य, न्याय या जीवन का मार्ग। इसका तात्पर्य एक ऐसे धर्म से है जो सृष्टि के आरंभ से चला आ रहा है और जो सदा के लिए है। यह धर्म मानव जीवन के नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक पक्षों को विस्तृत रूप से संबोधित करता है। मानव जीवन को अत्यंत महत्वपूर्ण और दिव्य माना गया है। यह जीवन आत्मा की यात्रा का एक चरण है और इसका अंतिम उद्देश्य मोक्ष अर्थात आत्मा की मुक्ति प्राप्त करना है। सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन को समझने के कई पहलू हैं जिनमें आत्मा का स्वभाव,जीवन के उद्देश्य, कर्तव्य, धर्म, कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत शामिल हैं।

1 आत्मा और शरीर का संबंध-

सनातन धर्म के अनुसार आत्मा शाश्वत और अमर है जबकि शरीर नश्वर है। आत्मा परमात्मा का अंश है और शरीर केवल उसका वाहक या साधन है। आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप की प्राप्ति के लिए बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से गुजरना पड़ता है। यह चक्र तब तक चलता है जब तक आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं करती और परमात्मा में विलीन नहीं हो जाती।

2 पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत-

सनातन धर्म के अनुसार जीवन का चक्र पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत पर आधारित है। कर्म का अर्थ है कि प्रत्येक क्रिया का फल अवश्य मिलता है चाहे वह इस जन्म में मिले या अगले जन्म में। व्यक्ति जो भी कर्म करता है उसका प्रभाव उसके अगले जन्म पर पड़ता है। अच्छे कर्म व्यक्ति को उन्नति और मोक्ष की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे कर्म उसे पुनर्जन्म के चक्र में बांधे रखते हैं।

3 जीवन के चार पुरुषार्थ-

सनातन धर्म में मानव जीवन के चार प्रमुख उद्देश्य बताए गए हैं-

धर्म-

कर्तव्य नैतिकता और जीवन के नियमों का पालन करना।

अर्थ-

जीवन यापन के लिए धन और संसाधन प्राप्त करना जो धर्म और मर्यादा के अनुसार हो।

काम-

इच्छाओं और भावनाओं की पूर्ति जो धर्म के अनुसार संयमित हो।

मोक्ष-

संसार के चक्र से मुक्ति और परमात्मा की प्राप्ति।

इन चार पुरुषार्थों का संतुलन मानव जीवन का उद्देश्य है। इनमें से मोक्ष सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह आत्मा की अंतिम मुक्ति का मार्ग है।

4 जीवन के चार आश्रम-

सनातन धर्म मानव जीवन को चार आश्रमों में विभाजित करता है जो व्यक्ति की उम्र और जीवन की अवस्थाओं के आधार पर होते हैं-

ब्रह्मचर्य आश्रम-

जीवन का पहला चरण जिसमें व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करता है और अपने जीवन के लिए आधार तैयार करता है।

गृहस्थ आश्रम-

यह जीवन का दूसरा चरण है जिसमें व्यक्ति गृहस्थ जीवन जीता है परिवार का पालन-पोषण करता है और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है।

वानप्रस्थ आश्रम-

यह वह समय है जब व्यक्ति सांसारिक जिम्मेदारियों से धीरे-धीरे मुक्ति पाकर आध्यात्मिक साधना की ओर बढ़ता है।

संन्यास आश्रम-

यह जीवन का अंतिम चरण है जिसमें व्यक्ति संसार का त्याग कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए तप और ध्यान में लीन हो जाता है।

5 धर्म का पालन-

धर्म का पालन सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। धर्म केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें नैतिकता, कर्तव्य और सदाचार शामिल हैं। प्रत्येक व्यक्ति का धर्म उसकी जाति अवस्था और जीवन की स्थिति के अनुसार निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए एक विद्यार्थी का धर्म है शिक्षा प्राप्त करना एक गृहस्थ का धर्म है परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना।

6 मोक्ष की प्राप्ति-

मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। मोक्ष का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति और आत्मा का परमात्मा में विलीन होना। मोक्ष की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अपने कर्मों को शुद्ध करना इंद्रियों पर संयम रखना और आत्म-ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। यह ज्ञान व्यक्ति को अहंकार और माया से मुक्त करता है और उसे आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है।

7 आध्यात्मिक साधना-

सनातन धर्म में ध्यान, योग, तपस्या और भक्ति जैसे साधनों को आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। इन साधनों के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की आत्मा का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और परम सत्य को जान सकता है। भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने भी योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग के मार्गों का वर्णन किया है, जो मोक्ष की प्राप्ति के साधन हैं।

8 संपूर्णता और आत्मानुभूति-

सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन का एक और महत्वपूर्ण पहलू है आत्मानुभूति जो यह जानना है कि हम केवल शरीर और मन नहीं हैं बल्कि शाश्वत आत्मा हैं। जब व्यक्ति यह अनुभूति कर लेता है तो उसे संसार के मोह और बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। यह अनुभव ही मोक्ष की ओर ले जाता है।

सनातन धर्म के प्रमुख सिद्धांत:

1 सृष्टि और ब्रह्मांड की अवधारणा-

सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माण एक दिव्य शक्ति  द्वारा किया गया है। यह ब्रह्म सर्वोच्च सत्ता है और यह सृष्टि का मूल कारण है। सृष्टि का आरंभ स्थिति और अंत इसी परम ब्रह्म की इच्छा पर निर्भर करता है।

2 आत्मा और परमात्मा-

आत्मा अमर और शाश्वत है। यह शरीर के नाश के बाद भी जीवित रहती है और पुनर्जन्म के चक्र में प्रवेश करती है। आत्मा परमात्मा का अंश है और इसका अंतिम उद्देश्य परमात्मा में विलीन होना है।

3 कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत-

कर्म का सिद्धांत सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। व्यक्ति के पिछले जन्मों के कर्म उसके वर्तमान जीवन को निर्धारित करते हैं। अच्छे कर्म उसे उन्नति और मोक्ष की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे कर्म उसे पुनर्जन्म के चक्र में बांधकर रखते हैं।

4 मोक्ष-

मोक्ष का अर्थ है जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और आत्मा का परमात्मा में विलीन होना। मोक्ष सनातन धर्म में जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य माना जाता है। इसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को ज्ञान, भक्ति और योग के मार्ग का अनुसरण करना होता है।

5 धर्म-

सनातन धर्म में धर्म का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान या पूजा से नहीं है बल्कि यह जीवन के प्रत्येक पहलू में सदाचार नैतिकता और कर्तव्यपालन का पालन करने से है। धर्म का पालन व्यक्ति के लिए आवश्यक माना गया है ताकि वह समाज परिवार और स्वयं के प्रति अपने कर्तव्यों को निभा सके।

6 माया और अद्वैत-

माया का अर्थ है संसार की वह शक्ति जो भ्रम पैदा करती है और आत्मा को परमात्मा से अलग महसूस कराती है। अद्वैत वेदांत के अनुसार यह विभाजन केवल एक भ्रम है और वास्तव में आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। इस ज्ञान की प्राप्ति ही मोक्ष का मार्ग है।

7 योग और साधना-

योग सनातन धर्म में आत्मा की शुद्धि और आत्म-साक्षात्कार का साधन है। 

योग के चार प्रमुख मार्ग बताए गए हैं-

भक्ति योग- भक्ति का मार्ग

कर्म योग- कर्तव्य और सेवा का मार्ग

ज्ञान योग- ज्ञान का मार्ग

राजयोग- ध्यान और आत्म-संयम का मार्ग

ग्रंथ और साहित्य-

सनातन धर्म के प्रमुख ग्रंथों में वेद, उपनिषद, पुराण, महाभारत, रामायण, भगवद गीता आदि शामिल हैं।

1 वेद-

वेद सनातन धर्म के सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ हैं जिन्हें श्रुति माना जाता है। चार वेद हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

2 उपनिषद-

वेदों के अंत में आने वाले उपनिषद दर्शन और आत्मा-परमात्मा के संबंध की व्याख्या करते हैं।

3 भगवद गीता-

महाभारत का किस्सा यह ग्रंथ कृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में धर्म, कर्म और मोक्ष का मार्ग दर्शाता है।

4 पुराण-

यह ग्रंथ ऐतिहासिक घटनाओं देवताओं और ब्रह्मांड की उत्पत्ति की कहानियों का वर्णन करते हैं। 18 प्रमुख पुराण हैं जैसे विष्णु पुराण शिव पुराण आदि।

देवता और उपासना-

सनातन धर्म में अनेक देवताओं की उपासना की जाती है जो एक ही परमात्मा के विभिन्न रूप माने जाते हैं। मुख्य देवताओं में ब्रह्मा-सृष्टि के रचयिता विष्णु-पालनकर्ता और शिव-विनाशक शामिल हैं। इनके अलावा देवी-देवताओं की एक विशाल विविधता है जैसे दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती गणेश कार्तिकेय हनुमान आदि।

निष्कर्ष-

सनातन धर्म के अनुसार मानव जीवन आत्मा की एक यात्रा है जिसका उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है। यह जीवन एक दुर्लभ अवसर है जिसमें व्यक्ति धर्म कर्म और साधना के माध्यम से अपने अस्तित्व की सच्चाई को पहचान सकता है। धर्म और कर्म का पालन जीवन के चार पुरुषार्थों और चार आश्रमों का संतुलन और आत्मा की शुद्धि के लिए आध्यात्मिक साधना है ये सभी पहलू मानव जीवन को सार्थक और पवित्र बनाते हैं। सनातन धर्म एक अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण धर्म है जो जीवन के सभी पहलुओं को संबोधित करता है धार्मिक नैतिक और आध्यात्मिक। यह धर्म व्यक्ति को सदाचार कर्तव्य और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन करता है साथ ही यह उसे संसार के भौतिक बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। सनातन धर्म की शिक्षाएँ न केवल आध्यात्मिक उत्थान पर ध्यान केंद्रित करती हैं बल्कि समाज और मानवता के कल्याण के लिए भी मार्ग दिखाती हैं।

लेखक- बद्री लाल गुर्जर

ब्लॉग: http://badrilal995.blogspot.com

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