16 सित॰ 2024

मनुष्य के कर्म व पूर्व जन्म के कर्म और विभिन्न धर्मों का मत

 मनुष्य के कर्म व पूर्व जन्म के कर्म और विभिन्न धर्मों का मत



मनुष्य के कर्म व पूर्व जन्म के कर्म और विभिन्न धर्मों का मत
कर्म का अर्थ है कार्य या क्रिया। यह शब्द भारतीय दर्शन और धार्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कर्म के तीन प्रमुख भेद होते हैं-

1 शारीरिक कर्म-

जो कार्य हम अपने शरीर के माध्यम से करते हैं जैसे कि चलना, बोलना और काम करना इत्यादि।

शारीरिक कर्म उन क्रियाओं या कार्यों को कहते हैं जो हम अपने शरीर के माध्यम से करते हैं। इसमें हमारे शारीरिक क्रिया कलाप जैसे चलना, खाना, काम करना, लड़ाई करना व पूजा पाठ करना आदि शामिल होते हैं। शारीरिक कर्म का संबंध बाहरी दुनिया में की गई गतिविधियों से होता है जो हमारे शरीर की शक्ति और क्रियाओं द्वारा संचालित होती हैं।

जैसे-

खेत में काम करना।

किसी की मदद करना।

शारीरिक श्रम करना।

कोई निर्माण कार्य करना।

धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से शारीरिक कर्म को सही तरीके से और सही उद्देश्य के साथ करना महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसका प्रभाव हमारे और दूसरों के जीवन पर पड़ता है।

2 वाचिक कर्म-

जो कार्य हम अपने वचन या भाषण द्वारा करते हैं जैसे किसी से बात करना, गाली देना या प्रशंसा करना।

वाचिक कर्म उन कार्यों को कहते हैं जो हम अपने शब्दों या भाषण के माध्यम से करते हैं। इसका संबंध हमारे बोले गए शब्दों से होता है जिनका प्रभाव दूसरों पर पड़ता है। वाचिक कर्म में हमारी बातचीत, प्रशंसा, आलोचना, झूठ बोलना, सत्य बोलना, गाली देना व किसी को सांत्वना देना या प्रेरित करना आदि शामिल होते हैं।

जैसे-

किसी की प्रशंसा करना।

झूठ बोलना।

सत्य कहना।

दूसरों से बुरा या कटु बोलना।

दूसरों का अपमान करना।

दूसरों का मनोबल बढ़ाना।

वाचिक कर्म का नैतिक और धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है क्योंकि शब्दों का प्रभाव बहुत गहरा और दीर्घ कालिक हो सकता है। गलत वचन बोलने से दूसरों को दुख पहुँच सकता है जबकि सही और सकारात्मक शब्दों से किसी का भला किया जा सकता है। इसलिए वाचिक कर्म को सावधानी और सद्भावना के साथ करना आवश्यक माना गया है।

3 मानसिक कर्म-

जो कार्य हम अपने मन के माध्यम से करते हैं जैसे विचार करना, कल्पना करना, या किसी के बारे में सोचना।

मानसिक कर्म वे क्रियाएँ हैं जो हम अपने मन के माध्यम से करते हैं यानी हमारे विचार, इच्छाएँ, भावनाएँ और कल्पनाएँ। इसमें उन चीजों पर विचार करना शामिल होता है जो हम सोचते हैं चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक। मानसिक कर्म हमारे आंतरिक मनोविज्ञान और दृष्टिकोण को प्रभावित करता है और यह हमारे बाहरी कर्मों शारीरिक और वाचिक का आधार भी बनता है।

जैसे-

किसी के प्रति अच्छा या बुरा सोचने वाले विचार।

किसी की सफलता या अफलता पर ईर्ष्या या खुशी महसूस करना।

ध्यान करना या मानसिक शांति की खोज करना।

किसी कार्य की योजना बनाना।

भविष्य की कल्पना करना या सपने देखना।

धार्मिक और नैतिक दृष्टिकोण से मानसिक कर्म का बहुत महत्व है क्योंकि यह हमारे आचरण और व्यवहार को प्रभावित करता है। अगर हमारे विचार शुद्ध, सकारात्मक और शांतिपूर्ण होंगे तो हमारे शारीरिक और वाचिक कर्म भी वैसे ही होंगे। इसलिए मानसिक शुद्धता और सकारात्मकता को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है।

हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में कर्म को एक नैतिक सिद्धांत माना जाता है। इसका यह अर्थ है कि जो भी क्रिया अच्छी या बुरी हम करते हैं उसका परिणाम हमें भविष्य में किसी न किसी रूप में भोगना पड़ता है। इसे कर्म का सिद्धांत या कर्मफल भी कहते हैं।

अर्थात कर्म का प्रभाव न केवल हमारे वर्तमान जीवन पर पड़ता है बल्कि इसे अगले जन्मों तक के लिए भी माना जाता है। इस दृष्टिकोण से कर्म हमारे जीवन की दिशा और भाग्य को निर्धारित करता है।

पूर्व जन्म के कर्मों का सिद्धांत हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म सहित कई धर्मों और दार्शनिक प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कर्म का अर्थ है क्रिया या कार्य और यह सिद्धांत इस पर आधारित है कि हर व्यक्ति जो भी कर्म करता है उसके फल उसे वर्तमान जीवन में या अगले जन्म में अवश्य मिलते हैं। यह कर्म सिद्धांत जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म अर्थात इस संसार के चक्र से जुड़ा है जिसे संसार चक्र कहा जाता है।

विभिन्न धर्मों के अनुसार कर्म-

कर्म एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है कार्य,क्रिया या कार्रवाई। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म में कर्म का सिद्धांत महत्वपूर्ण है। इसका मूल सिद्धांत यह है कि हर व्यक्ति के द्वारा किए गए कार्यों का एक निश्चित परिणाम होता है जिसे व्यक्ति को भोगना पड़ता है।

कर्म का सिद्धांत कहता है कि किसी भी व्यक्ति का वर्तमान और भविष्य उसके पूर्व कर्मों पर निर्भर करता है। इसके अनुसार व्यक्ति जो भी क्रिया करता है उसका परिणाम उसे जीवन में भुगतना पड़ता है। यह परिणाम तत्काल हो सकता है या भविष्य में चाहे वह अगले जन्म में हो।

1 हिंदू धर्म-

कर्म हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है जो व्यक्ति के जीवन कर्मों और उनके परिणामों को समझने का आधार है। कर्म शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है कार्य या क्रिया। हिंदू धर्म में कर्म केवल शारीरिक कार्यों तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें विचार भावनाएं और इच्छाएं भी शामिल हैं। यह सिद्धांत व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी उसके कार्यों के परिणाम और पुनर्जन्म के सिद्धांत से गहराई से जुड़ा हुआ है।

हिंदू धर्म में कर्म का सिद्धांत बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। यह माना जाता है कि भगवान व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसे फल देते हैं। साथ ही व्यक्ति की आत्मा को संसार के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए मोक्ष प्राप्त करना आवश्यक होता है और यह अच्छे कर्मों और धार्मिक आचरण के माध्यम से ही संभव है। हिंदू धर्म के अनुसार कर्म वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने कार्यों के परिणाम को भोगता है। प्रत्येक क्रिया चाहे वह शारीरिक हो मानसिक या वाचिक उसका कोई न कोई परिणाम होता है। यह परिणाम व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है और यह जीवन के वर्तमान या अगले जन्म में फलित हो सकता है। यह सिद्धांत कर्मफल के नाम से भी जाना जाता है जो बताता है कि हर कर्म का फल अवश्य मिलता है चाहे वह तत्काल हो या भविष्य में।

2 बौद्ध धर्म- 

बौद्ध धर्म में कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत इस पर आधारित है कि व्यक्ति के कर्म उसके वर्तमान और भविष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं। बुद्ध के अनुसार कोई भी कर्म बुरा या अच्छा हो सकता है लेकिन उनका परिणाम व्यक्ति को उसी के अनुसार भुगतना पड़ता है। बौद्ध धर्म मोक्ष की बजाय निर्वाण की बात करता है जो जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति है।

3 जैन धर्म-

जैन धर्म में कर्म को आत्मा की शुद्धता और अशुद्धता का कारण माना जाता है। आत्मा जितने अच्छे कर्म करती है वह उतनी ही शुद्ध होती जाती है और मोक्ष के करीब पहुंचती है। बुरे कर्म आत्मा को बंधन में डालते हैं जिससे आत्मा को संसार में बार-बार जन्म लेना पड़ता है।

4 सिख धर्म-

सिख धर्म भी कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानता है लेकिन सिखों के अनुसार व्यक्ति को अपने कर्मों के आधार पर ही न्याय मिलता है। सिख धर्म के अनुसार व्यक्ति के कर्म ही उसकी नियति तय करते हैं और ईश्वर व्यक्ति के कर्मों के अनुसार न्याय करता है।

5 इस्लाम-

इस्लाम में कर्म (अमल) का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन इसका दृष्टिकोण हिंदू धर्म और अन्य धर्मों के कर्म सिद्धांत से कुछ भिन्न है। इस्लाम में कर्म को अमल कहा जाता है जिसका अर्थ है कार्य या क्रिया। इस्लाम के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के कार्यों का प्रभाव उसके जीवन के बाद के हिस्से पर पड़ता है विशेष रूप से उसकी मृत्यु के बाद की स्थिति पर। इस्लाम का मानना है कि व्यक्ति के कर्मों का हिसाब-किताब मृत्यु के बाद अखिरत (परलोक) में किया जाएगा और उस आधार पर उसे जन्नत (स्वर्ग) या जहन्नम (नरक) में स्थान मिलेगा।

कर्म का अर्थ और सिद्धांत-

मनुष्य के कर्म का सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति का वर्तमान जीवन उसकी स्थिति सुख-दुःख और परिस्थितियां उसके पूर्व जन्मों में किए गए कर्मों का परिणाम हैं। कर्म को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है-

1 संचित कर्म-

यह उन सभी कर्मों का समूह है जो व्यक्ति ने अपने पिछले जन्मों में किए हैं और जिनका फल अभी नहीं मिला है। संचित कर्म का भंडार हमारे जीवन की दिशा तय करता है और यही संचित कर्म अगले जन्म के लिए आधार बनते हैं।

2 प्रारब्ध कर्म- 

यह वे कर्म हैं जिनके परिणामस्वरूप व्यक्ति का वर्तमान जीवन निर्मित हुआ है। प्रारब्ध कर्म उस हिस्से को दर्शाते हैं जो व्यक्ति को वर्तमान जीवन में भोगना है। इसे व्यक्ति के भाग्य के रूप में भी देखा जाता है।

3 क्रियमाण कर्म- 

यह वे कर्म हैं जो व्यक्ति वर्तमान जीवन में करता है और उनके परिणाम आगे के जीवन में भुगतने होंगे। यह व्यक्ति की वर्तमान क्रियाओं से उत्पन्न होते हैं और आगे के जन्मों में फल देने वाले होते हैं।

पूर्व जन्म के कर्म और पुनर्जन्म-

पूर्व जन्म के कर्मों का सिद्धांत पुनर्जन्म के विचार से निकटता से जुड़ा हुआ है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों में यह माना जाता है कि आत्मा अमर है और यह एक शरीर से दूसरे शरीर में पुनर्जन्म लेती रहती है। इस पुनर्जन्म का निर्धारण व्यक्ति के कर्मों के आधार पर होता है। यदि किसी व्यक्ति ने अच्छे कर्म किए हैं तो उसका अगला जन्म सुखमय और संपन्न हो सकता है। वहीं, बुरे कर्म करने पर व्यक्ति को कष्टमय जीवन या निम्न योनि में जन्म लेना पड़ सकता है।

पुनर्जन्म का विचार इस पर जोर देता है कि जीवन एक सतत चक्र है और प्रत्येक जीवन के साथ आत्मा अपने कर्मों के अनुसार अपने अनुभवों को भोगती है। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक आत्मा मोक्ष या निर्वाण प्राप्त नहीं कर लेती जो कि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का क्षण होता है।

पूर्व जन्म के कर्म और भाग्य-

कई धर्मों में यह विश्वास है कि पूर्व जन्म के कर्मों के कारण व्यक्ति का भाग्य निर्धारित होता है। भाग्य वह परिणाम है जिसे व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण वर्तमान जीवन में अनुभव करता है। हालांकि कर्म और भाग्य का संबंध एक निष्क्रिय प्रक्रिया नहीं है। व्यक्ति वर्तमान जीवन में भी अपने कर्मों के माध्यम से अपने भविष्य के भाग्य को आकार दे सकता है।


कर्म का सिद्धांत इस विचार को बढ़ावा देता है कि व्यक्ति का जीवन पूरी तरह से पूर्व निर्धारित नहीं है। हमारे द्वारा किए गए कर्म वर्तमान और भविष्य को भी प्रभावित करते हैं और इस तरह यह व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अच्छे और नैतिक कर्म करे ताकि उसके अगले जीवन में भी उसे सुख और समृद्धि प्राप्त हो सके।

पूर्व जन्म के कर्मों का प्रभाव-

पूर्व जन्म के कर्म व्यक्ति के वर्तमान जीवन में निम्नलिखित रूपों में प्रभाव डाल सकते हैं-

1 संपत्ति और धन-

किसी व्यक्ति का आर्थिक और सामाजिक दर्जा उसके पिछले जन्मों के अच्छे या बुरे कर्मों का परिणाम हो सकता है। यदि किसी ने दान, सहायता और अच्छे कार्य किए हैं तो उसे वर्तमान जीवन में धन और समृद्धि प्राप्त हो सकती है।

2 स्वास्थ्य- 

व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी उसके पूर्व जन्मों के कर्मों से प्रभावित होता है। यदि पिछले जन्म में किसी ने हिंसा या अत्याचार किया है तो उसे वर्तमान जीवन में बीमारियों या शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है।

3 मानसिक शांति-

पूर्व जन्म के अच्छे कर्म व्यक्ति को मानसिक शांति संतोष और स्थिरता प्रदान कर सकते हैं जबकि बुरे कर्म मानसिक कष्ट अवसाद और अशांति का कारण बन सकते हैं।

4 जीवन की चुनौतियाँ-

कई बार व्यक्ति के जीवन में आने वाली समस्याएं और चुनौतियां उसके पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम हो सकती हैं। इन्हें भोगकर आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष के करीब पहुंचती है।

निष्कर्ष

पूर्व जन्म के कर्म और उनका प्रभाव एक जटिल और गहन विषय है, जो व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। यह सिद्धांत व्यक्ति को अपने जीवन में सतर्क, जागरूक और नैतिक रूप से जिम्मेदार रहने की प्रेरणा देता है। कर्म का सिद्धांत यह संदेश देता है कि हम जो भी करते हैं, उसका परिणाम हमारे जीवन और भविष्य पर पड़ता है, और इसलिए हमें अच्छे कर्म करने की ओर प्रेरित होना चाहिए।

हिंदू धर्म में कर्म का सिद्धांत पुनर्जन्म के सिद्धांत से निकटता से जुड़ा हुआ है। पुनर्जन्म वह प्रक्रिया है जिसके तहत आत्मा मृत्यु के बाद एक नए शरीर में जन्म लेती है। व्यक्ति के कर्म उसके अगले जन्म को प्रभावित करते हैं। अगर व्यक्ति ने अच्छे कर्म किए हैं तो वह अगले जन्म में सुखी और समृद्ध जीवन प्राप्त कर सकता है। वहीं बुरे कर्म करने पर उसे निम्न योनियों में जन्म लेना पड़ सकता है या उसे कष्टमय जीवन का सामना करना पड़ सकता है।

कर्म का जीवन में प्रभाव-

कर्म सिद्धांत व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। यह हमें बताता है कि व्यक्ति अपने जीवन की परिस्थितियों का निर्माता खुद है और उसके वर्तमान और भविष्य का निर्धारण उसके कर्मों द्वारा होता है। यह सिद्धांत व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराता है और उसे अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।

1 नैतिकता-

कर्म का सिद्धांत व्यक्ति को नैतिक रूप से जागरूक बनाता है। यह विचार कि हर कर्म का परिणाम होता है व्यक्ति को अच्छे और सही कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।

2 आत्मनिर्भरता-

कर्म सिद्धांत व्यक्ति को यह सिखाता है कि वह अपनी परिस्थितियों का खुद ही निर्माता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति अपने जीवन की परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार है और उसे सुधारने का सामर्थ्य भी रखता है।

3. धैर्य और सहनशीलता-

कर्म का सिद्धांत व्यक्ति को यह समझने में मदद करता है कि यदि उसे जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो यह उसके पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम हो सकता है। इस प्रकार व्यक्ति धैर्य और सहनशीलता से इन परिस्थितियों का सामना कर सकता है।

4. पारस्परिक संबंध-

कर्म सिद्धांत पारस्परिक संबंधों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि व्यक्ति के साथ अन्य लोगों का व्यवहार उसके कर्मों का परिणाम है, और इसी प्रकार से वह अपने कर्मों द्वारा दूसरों के साथ व्यवहार करता है।

धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण-

हिंदू धर्म के अनुसार कर्म केवल भौतिक संसार तक सीमित नहीं है बल्कि इसका आध्यात्मिक पक्ष भी है। अच्छे कर्मों के माध्यम से व्यक्ति न केवल इस जीवन में सुख और शांति प्राप्त करता है बल्कि वह आत्मा को मोक्ष (मुक्ति) की ओर भी अग्रसर करता है। मोक्ष का अर्थ है जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना। जब व्यक्ति अपने कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है तब उसे मोक्ष प्राप्त होता है।

धार्मिक दृष्टि से हिंदू धर्म में यह भी कहा गया है कि अच्छे कर्म केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं होने चाहिए। व्यक्ति को अपने कर्मों में नैतिकता, दयालुता और सहानुभूति जैसे गुणों को अपनाना चाहिए। भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति को निष्काम कर्म योग का पालन करना चाहिए अर्थात बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करना चाहिए। यह कर्म का सबसे उच्चतम रूप माना जाता है जहां व्यक्ति अपने कार्यों को भगवान को अर्पित करता है और फल की चिंता नहीं करता।

कर्म योग-

भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने कर्म योग की अवधारणा पर जोर दिया है। कर्म योग का अर्थ है निष्काम भाव से कर्म करना यानी फल की इच्छा किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना। यह मार्ग व्यक्ति को आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। इसमें यह संदेश दिया गया है कि व्यक्ति को अपने कर्मों से भागना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें समर्पण के भाव से करना चाहिए।

कर्म योग का मुख्य उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपने जीवन में कर्म करते हुए भी आत्मा की शुद्धता प्राप्त कर सकता है। यह मार्ग मोक्ष की प्राप्ति का एक साधन है, जहां व्यक्ति कर्म करता है, लेकिन उससे बंधा नहीं रहता। कर्म योगी वह व्यक्ति होता है जो अपने कर्मों के माध्यम से संसार के चक्र को पार कर मोक्ष प्राप्त करता है।

हिंदू धर्म में कर्म का सिद्धांत व्यक्ति के जीवन और पुनर्जन्म को समझने का एक शक्तिशाली उपकरण है। यह व्यक्ति को यह समझने में मदद करता है कि उसके वर्तमान जीवन की परिस्थितियां और भविष्य का मार्ग उसके अपने कर्मों पर निर्भर करता है। यह सिद्धांत न केवल नैतिकता और धार्मिकता की दिशा में मार्गदर्शन करता है बल्कि यह व्यक्ति को आत्मनिर्भर, जिम्मेदार, और जागरूक बनाता है।

कर्म का सिद्धांत यह संदेश देता है कि व्यक्ति को अच्छे और नैतिक कार्य करने चाहिए क्योंकि हर कर्म का फल अवश्य मिलता है। यही नहीं कर्म योग के माध्यम से व्यक्ति न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन को सुधार सकता है बल्कि वह मोक्ष या मुक्ति की ओर भी अग्रसर हो सकता है, जो हिंदू धर्म का परम लक्ष्य है।


बद्री लाल गुर्जर

बनेडिया चारणान

    (टोंक)






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