बच्चों में अंतर्दृष्टि कैसे विकसित करें?
लेखक – बद्री लाल गुर्जर
आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में केवल शैक्षणिक योग्यता ही जीवन में सफलता का मापक नहीं रह गया है। बच्चों में सोचने, समझने, अनुभवों को आत्मसात करने और अपने आंतरिक भावों को पहचानने की क्षमता यानी अंतर्दृष्टि भी उतनी ही महत्वपूर्ण हो गई है। अंतर्दृष्टि न केवल आत्मज्ञान को बढ़ाती है बल्कि निर्णय लेने समस्याओं का समाधान खोजने और संवेदनशीलता के विकास में भी सहायक होती है।
1 अंतर्दृष्टि का अर्थ और महत्व-
अंतर्दृष्टि का सामान्य अर्थ होता है स्वयं के भीतर झांकने की क्षमता। यह केवल बाहरी दुनिया के अनुभवों को समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्म-विश्लेषण और आत्म-ज्ञान की गहराई तक पहुँचती है।
महत्व-
निर्णय क्षमता में वृद्धि।
आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का विकास।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता में वृद्धि।
सीखने की क्षमता में सुधार।
बेहतर सामाजिक संबंधों की स्थापना।
2 बच्चों में अंतर्दृष्टि विकसित करने की आवश्यकता-
बच्चों में अंतर्दृष्टि क्यों आवश्यक है? यह प्रश्न बहुत स्वाभाविक है। उत्तर है — आज के डिजिटल युग में जहाँ सूचनाएँ बाहरी रूप से भरपूर मिलती हैं, वहीं आंतरिक समझ, धैर्य और संवेदनशीलता कम होती जा रही है। बच्चों को केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि स्वयं को समझना और अपने मन के विचारों पर ध्यान देना भी आना चाहिए।
justify;">तनाव और दबाव से निपटने की क्षमता-आत्म-निर्देशन की योग्यता-
जिज्ञासा और नवाचार को बढ़ावा-
नैतिक और आध्यात्मिक विकास-
3 अंतर्दृष्टि विकसित करने के प्रमुख उपाय-
अब मुख्य प्रश्न आता है कि बच्चों में यह गुण कैसे विकसित करें?
इसके लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है-
1 ध्यान और योग- ध्यान और योग बच्चों के लिए अत्यंत लाभकारी हैं। नियमित ध्यान से मन शांत होता है और आंतरिक विचार स्पष्ट होने लगते हैं।
उपाय-
सुबह-शाम 10-15 मिनट ध्यान का अभ्यास।
साँसों पर ध्यान केंद्रित करना सिखाना।
बाल-अनुकूल योगासन कराना।
2 आत्म-चिंतन के लिए समय देना- बच्चों को दिन में कुछ समय स्वयं के साथ बिताने देना चाहिए जहाँ वे बिना किसी बाधा के अपने विचारों पर ध्यान दें।
उदाहरण-
दिन भर की घटनाओं पर मनन करना।
अपनी भावनाओं को पहचानना।
3 खुला संवाद- परिवार में ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जहाँ बच्चे बिना डर के अपने विचार व्यक्त कर सकें।
फायदे- स्वयं के विचारों को शब्दों में व्यक्त करने की आदत
आत्म-साक्षात्कार की शुरुआत
4 कहानी और साहित्य के माध्यम से अंतर्दृष्टि- कहानियाँ और साहित्य बच्चों में गहराई से सोचने की क्षमता विकसित करते हैं।
प्रयोग-
नैतिक और दार्शनिक कहानियाँ पढ़वाना।
प्रेरणादायक पुस्तकों का चयन।
5 प्रकृति के संपर्क में रखना- प्रकृति के साथ समय बिताना बच्चों को शांत करता है और आंतरिक सोच को जागृत करता है।
उदाहरण-
पेड़-पौधों की देखभाल
खुले मैदान या बाग में समय बिताना
6 प्रश्न पूछने और उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करना- बच्चों में जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। माता-पिता और शिक्षक उन्हें प्रश्न पूछने और स्वयं उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करें।
सुझाव-
तुम क्या सोचते हो? पूछना
किसी समस्या का हल स्वयं निकालने के लिए प्रेरित करना
7 कला और रचनात्मकता का प्रोत्साहन- चित्रकला, लेखन, संगीत, नृत्य आदि रचनात्मक गतिविधियाँ अंतर्दृष्टि के विकास में सहायक होती हैं।
8 आत्म-परीक्षण की आदत डालना- रोज़मर्रा के अनुभवों पर विचार करना अपनी गलतियों को पहचानना और सुधार की दिशा में सोचना यह सब अंतर्दृष्टि को प्रगाढ़ बनाता है।
9 धैर्य और चुप्पी का महत्व समझाना- बच्चों को सिखाना कि हर बात तुरंत बोलनी या प्रतिक्रिया देनी आवश्यक नहीं होती। कभी-कभी चुप रहकर भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
4 पारिवारिक और सामाजिक भूमिका-
बच्चों में अंतर्दृष्टि विकसित करने में परिवार और समाज की भूमिका निर्णायक होती है।
1 अभिभावकों का उदाहरण- बच्चे अपने माता-पिता को देखकर सीखते हैं। यदि अभिभावक स्वयं आत्म-विश्लेषण करते हैं, संयमित रहते हैं, तो बच्चे भी वैसा ही व्यवहार अपनाते हैं।
2 संवादशील वातावरण- घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए जहाँ हर सदस्य एक-दूसरे से खुलकर बातें कर सके। इससे बच्चे की सोचने की प्रक्रिया को गहराई मिलती है।
3 तकनीकी संतुलन- आज के समय में बच्चों का मोबाइल और टीवी पर अत्यधिक निर्भरता उनकी आंतरिक सोच पर असर डालती है। इसके लिए तकनीकी उपयोग में संतुलन बनाना जरूरी है।
5 विद्यालयों की भूमिका-
1 पाठ्यक्रम में अंतर्दृष्टि आधारित विषय- विद्यालयों में ऐसे पाठ्यक्रम हों जो बच्चों को आत्मचिंतन और अंतर्दृष्टि की दिशा में प्रेरित करें, जैसे जीवन कौशल शिक्षा।
2 शिक्षक की भूमिका- शिक्षक केवल पाठ पढ़ाने वाले न बनें बल्कि बच्चों के मार्गदर्शक और मेंटर बनें।
प्रेरक प्रसंग सुनाना।
बच्चों को उनके अनुभव साझा करने देना।
3 समूह चर्चा और गतिविधियाँ- बच्चों को समूहों में बैठाकर विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श कराना भी उनके सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाता है।
6 अंतर्दृष्टि के विकास में बाधाएँ और उनके समाधान-
कई बार बच्चों में अंतर्दृष्टि के विकास में कुछ बाधाएँ भी आती हैं जैसे-
अत्यधिक बाहरी दबाव।
डर या भय।
स्वयं पर विश्वास की कमी।
समय की कमी।
समाधान-
बच्चों को अनावश्यक अपेक्षाओं से मुक्त रखना।
उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा देना।
परिवार में सकारात्मक और सहयोगी वातावरण बनाना।
7 भारतीय परंपरा में अंतर्दृष्टि का स्थान-
भारतीय परंपरा में अंतर्दृष्टि का विशेष स्थान रहा है।
महर्षि पतंजलि के योग सूत्र।
भगवद्गीता में आत्मा और मन के ज्ञान की शिक्षा।
संत कबीर, तुलसीदास, रविदास आदि की वाणी।
इन सभी ग्रंथों और संतों ने आत्म-चिंतन और अंतर्दृष्टि को जीवन का मूल आधार बताया है। बच्चों को इन परंपराओं से जोड़ना भी आवश्यक है।
8 आधुनिक विज्ञान और मनोविज्ञान में अंतर्दृष्टि-
मनोविज्ञान के अनुसार अंतर्दृष्टि व्यक्ति की मानसिक परिपक्वता का प्रतीक होती है। आधुनिक शोध बताते हैं कि-
बच्चों में अगर छोटी उम्र से ही अंतर्दृष्टि पर ध्यान दिया जाए तो उनके व्यक्तित्व में स्थायित्व आता है।
Self-Reflection Exercises बच्चों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता में सुधार लाते हैं।
Mindfulness Programs भी स्कूलों में लोकप्रिय हो रहे हैं।
9 अभ्यास सूची-
बच्चों के लिए निम्नलिखित दैनिक अभ्यास सूची तैयार की जा सकती है-
क्रमांक अभ्यास समयावधि
1 ध्यान 10-15 मिनट
2 दिन की घटनाओं पर विचार 10 मिनट
3 कहानी या प्रेरक प्रसंग सुनना/पढ़ना 20 मिनट
4 खुली बातचीत 15 मिनट
5 कला या रचनात्मक गतिविधि 30 मिनट
6 प्रकृति के साथ समय बिताना 20 मिनट
बच्चों में अंतर्दृष्टि विकसित करना केवल एक वैकल्पिक गुण नहीं, बल्कि वर्तमान समय की आवश्यकता बन चुका है। आत्म-ज्ञान धैर्य संवेदनशीलता और निर्णय क्षमता जैसे जीवन के महत्वपूर्ण गुणों का आधार यही है।
परिवार समाज और शिक्षा प्रणाली को मिलकर इस दिशा में प्रयास करने होंगे ताकि हमारे बच्चे केवल सफल ही नहीं बल्कि समझदार सहानुभूति रखने वाले और संतुलित व्यक्तित्व वाले बन सकें।
ज्ञान वह है जो भीतर से उत्पन्न हो और अंतर्दृष्टि उस ज्ञान का वास्तविक प्रकाश है।
लेखक-
बद्री लाल गुर्जर
ब्लॉग- http://badrilal995.blogspot.com