15 जुल॰ 2025

महात्मा गांधी के अंतर्दर्शन से प्रेरणा

 महात्मा गांधी के अंतर्दर्शन से प्रेरणा

लेखक- बद्री लाल गुर्जर


महात्मा गांधी जी की फ़ोटो


महात्मा गांधी का नाम सुनते ही सत्य, अहिंसा, आत्मसंयम और त्याग की छवि हमारे मन में उभरती है। मोहनदास करमचंद गांधी केवल एक राजनीतिक नेता नहीं थे बल्कि एक ऐसे महात्मा थे जिनकी अंतरात्मा की गहराइयों से निकले विचारों ने न केवल भारत बल्कि समूचे विश्व को प्रेरित किया। उनके अंतर्दर्शन का प्रभाव आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके जीवनकाल में था। गांधीजी के अंतर्दर्शन से प्रेरणा लेना केवल उनके उपदेशों को रटना नहीं है बल्कि उसे जीवन में आत्मसात करना है।
गांधीजी का अंतर्दर्शन-
अर्थ और परिभाषा- अंतर्दर्शन  शब्द का अर्थ है भीतर झांकना आत्मविश्लेषण करना और सत्य को भीतर से पहचानना। गांधीजी के लिए अंतर्दर्शन केवल ध्यान या साधना का नाम नहीं था बल्कि एक निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया थी जिसमें वे अपने विचारों कर्मों और आदर्शों को हर दिन कसौटी पर कसते थे।
आपका विश्वास, आपके विचार बनते हैं।
आपके विचार, आपके शब्द बनते हैं।
आपके शब्द, आपके कर्म बनते हैं।
आपके कर्म, आपकी आदत बनते हैं।
आपकी आदत, आपके मूल्य बनते हैं।
और आपके मूल्य, आपका भाग्य बनाते हैं।
यह कथन उनकी आंतरिक दृष्टि का परिचायक है। वे मानते थे कि सच्चा परिवर्तन बाहरी दुनिया में नहीं बल्कि हमारे भीतर से शुरू होता है।
1 सत्य और अंतर्दर्शन-
महात्मा गांधी के जीवन का मूल स्तंभ था- सत्य। उन्होंने सत्य को ईश्वर  माना। उनका प्रसिद्ध वाक्य है।
सत्य ही ईश्वर है।
गांधीजी के लिए सत्य का अर्थ केवल सच बोलना नहीं था बल्कि सत्य को जीवन के हर क्षेत्र में लागू करना था। व्यक्तिगत जीवन में सामाजिक जीवन में राजनीतिक गतिविधियों में भी। उन्होंने बचपन से ही सत्य का पालन करना सीखा। उनके आत्मकथात्मक लेख सत्य के प्रयोग में वे स्वयं स्वीकार करते हैं कि कई बार उन्हें गलतियाँ भी हुईं पर हर गलती के बाद उन्होंने आत्मविश्लेषण किया और भीतर झांक कर सीखा।
आज के युग में जब लोग बाहरी दिखावे पर ज़्यादा ध्यान देते हैं गांधीजी का यह अंतर्दर्शन कि पहले अपने भीतर सत्य को ढूंढ़ो हम सभी के लिए प्रेरणा है।
2 अहिंसा का अंतर्दर्शन-
गांधीजी के अंतर्दर्शन में अहिंसा की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार अहिंसा केवल शारीरिक हिंसा से बचना नहीं है, बल्कि मन वाणी और कर्म से भी किसी को कष्ट न पहुँचाना है।
उनका मानना था- अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।
गांधीजी ने अपने जीवन में कई बार इस बात का परीक्षण किया। जब उन्हें व्यक्तिगत अपमान या सामाजिक विरोध सहना पड़ा तब भी उन्होंने बदले की भावना नहीं रखी। इसके लिए बहुत गहरा आत्मसंयम और अंतर्दृष्टि चाहिए।
अहिंसा केवल विरोध के साधन के रूप में नहीं बल्कि एक जीवनशैली के रूप में अपनाना गांधीजी की खास बात थी। यह अंतर्दर्शन हमें यह सिखाता है कि क्रोध ईर्ष्या और द्वेष को मन में स्थान न दें।
3 आत्मसंयम और ब्रह्मचर्य-
गांधीजी का जीवन तपस्वियों जैसा था। उन्होंने अपने ऊपर कठोर अनुशासन लगाया। विशेष रूप से ब्रह्मचर्य का पालन संयमित आहार समय पर जागरण और स्वच्छता उनके दिनचर्या के भाग थे।
गांधीजी ने स्वीकार किया कि संयम साधारण मनुष्य के लिए आसान नहीं होता पर यह अंतर्दर्शन से ही संभव है। आत्मसंयम का अर्थ केवल इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है बल्कि इच्छाओं पर भी नियंत्रण है।
यह विचार आज के उपभोगवादी युग में अत्यंत प्रासंगिक है। जब हर तरफ भौतिक सुख-सुविधाओं की होड़ लगी हो वहां गांधीजी का अंतर्दर्शन हमें याद दिलाता है कि असली सुख आत्मसंयम में है न कि बाहरी वस्तुओं में।
4 कर्मयोग और सेवा भावना-
महात्मा गांधी ने गीता के कर्मयोग सिद्धांत को अपने जीवन में उतारा। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को बिना फल की आशा के कर्म करना चाहिए। उनके अनुसार सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।
उनकी सेवाभावना का अंतर्दर्शन इतना गहरा था कि वे अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी खड़े हुए। हरिजन सेवा, खादी आंदोलन, स्वच्छता अभियान- ये सब उनके उसी अंतर्दर्शन से निकले हुए प्रयास थे।
गांधीजी का यह विचार विशेष रूप से उल्लेखनीय है-
आप जो भी करते हैं वह तुच्छ हो सकता है पर वह करना अति आवश्यक है।
आज के समाज में जब लोग केवल अपने स्वार्थ की सोचते हैं गांधीजी का यह अंतर्दर्शन सामूहिक कल्याण की याद दिलाता है।
5 आत्मावलोकन और दैनिक लेखा-जोखा-
गांधीजी हर रात अपने दिन भर के कार्यों का आत्मावलोकन करते थे। वे डायरी में लिखते थे कि दिन भर में उन्होंने कौन-कौन सी गलतियाँ कीं और कैसे उन्हें सुधारा जा सकता है।
यह आदत उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह के दिनों में शुरू की थी और भारत में भी जारी रखी।
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हम शायद यह भूल जाते हैं कि थोड़ी देर बैठकर अपने कर्मों पर विचार करना कितना आवश्यक है। गांधीजी का यह अंतर्दर्शन हमें आत्मनिर्भर और उत्तरदायी बनाता है।
6 आध्यात्मिकता और धर्म-
महात्मा गांधी धार्मिक थे, पर वे पंथ या संप्रदाय की सीमाओं में नहीं बंधे। उनके लिए धर्म का अर्थ था- सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना।
वे गीता, बाइबिल, कुरान, तिरुक्कुरल जैसे सभी धर्मग्रंथों का अध्ययन करते थे और उनमें समानता खोजते थे। उनका यह अंतर्दर्शन हमें सिखाता है कि धर्म विभाजन का नहीं बल्कि एकता और प्रेम का माध्यम होना चाहिए।
गांधीजी ने कहा था-
धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं है धर्म जीवन के हर कार्य में दिखाई देना चाहिए।
आज जब धार्मिक उन्माद और कट्टरता समाज को बांट रहे हैं गांधीजी के इस अंतर्दर्शन से हम समरसता और सौहार्द्र की सीख ले सकते हैं।
7 नेतृत्व और आत्मविनम्रता-
महात्मा गांधी जैसा जननेता होना आसान नहीं था। उनके पास न सत्ता थी न धन। केवल नैतिक बल और आंतरिक स्पष्टता के आधार पर वे करोड़ों लोगों को प्रेरित कर सके।
उनका नेतृत्व सेवा नेतृत्व का उदाहरण है। उन्होंने कभी स्वयं को महान या श्रेष्ठ नहीं माना। इसके विपरीत वे हमेशा आत्ममंथन करते रहे।
उनकी वाणी में विनम्रता और आत्म-परिष्कार झलकता था।
मैं कोई महात्मा नहीं हूं मैं भी एक साधारण व्यक्ति हूं जो अपने दोषों के साथ संघर्ष कर रहा है।
गांधीजी का यह अंतर्दर्शन हम सभी को नेतृत्व में अहंकार से दूर रहने की प्रेरणा देता है।
8 शिक्षा और नवजीवन दर्शन-
महात्मा गांधी ने शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान नहीं माना। उन्होंने बेसिक एजुकेशन  का विचार रखा जिसमें कारीगरी, श्रम, सत्य और सेवा का समावेश था।
गांधीजी का अंतर्दर्शन शिक्षा के विषय में स्पष्ट था-
शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण है।
आज के समय में जब शिक्षा केवल नौकरी पाने का साधन बन गई है गांधीजी का यह विचार अत्यंत प्रासंगिक है।
9 पर्यावरण और प्रकृति के साथ संतुलन-
हालांकि गांधीजी के समय में पर्यावरण संकट उतना प्रमुख मुद्दा नहीं था, फिर भी उनका सादा जीवन, स्वदेशी आंदोलन और खादी का समर्थन यह दर्शाते हैं कि वे प्रकृति के साथ सामंजस्य के पक्षधर थे।
उनका प्रसिद्ध कथन है- पृथ्वी सबकी आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है पर किसी एक के लोभ को नहीं।
आज के जलवायु परिवर्तन और संसाधनों के दोहन के दौर में गांधीजी का यह अंतर्दर्शन पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।
10 आज के संदर्भ में गांधीजी का अंतर्दर्शन-
आज की दुनिया में जब हिंसा, स्वार्थ, प्रदूषण और मानसिक अशांति का बोलबाला है गांधीजी के अंतर्दर्शन से प्रेरणा लेना और भी जरूरी हो गया है।
चाहे वह व्यक्तिगत जीवन हो, सामाजिक संबंध हों, राजनीति हो या वैश्विक मुद्दे हर जगह गांधीजी के विचारों की प्रासंगिकता बनी हुई है।
आज के युवा अगर आत्मसंयम, सत्य, अहिंसा, सेवा और आत्मावलोकन को अपनाएं तो समाज में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ सकता है।
महात्मा गांधी का अंतर्दर्शन केवल इतिहास का विषय नहीं है बल्कि वह हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए एक अमूल्य धरोहर है। उनके जीवन से प्रेरणा लेना केवल उनके विचार पढ़ने या उनके चित्र लगाने तक सीमित नहीं है। वह प्रेरणा तभी सार्थक होगी जब हम अपने भीतर झांकें अपनी कमजोरियों को स्वीकारें उन्हें सुधारें और सत्य, अहिंसा, सेवा, संयम के मार्ग पर चलें।

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