करवा चौथ और सनातन धर्म
करवा चौथ भारतीय संस्कृति में विवाहित स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो पति की लम्बी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाती है। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है जो अमूमन अक्टूबर-नवंबर के महीनों में आता है। इस दिन महिलाएँ सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला उपवास करती हैं और रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं।
व्रत के दौरान महिलाएँ पारंपरिक तरीके से पूजा करती हैं जिसमें मिट्टी के करवे अर्थात मिट्टी के बर्तन का उपयोग किया जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत राजस्थान उत्तर प्रदेश पंजाब हरियाणा और दिल्ली के क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। करवा चौथ का पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह भारतीय संस्कृति प्रेम समर्पण और त्याग के मूल्यों को प्रकट करता है। इसके साथ ही यह त्योहार भारतीय समाज में नारी के महत्त्व को भी स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
करवा चौथ-
करवा चौथ का त्योहार कई धार्मिक कथाओं और पौराणिक कहानियों से जुड़ा हुआ है। इन कहानियों में प्रमुख रूप से महाभारत और व्रत कथाओं का उल्लेख किया जाता है। महाभारत के अनुसार जब पांडव वनवास में थे तब द्रौपदी ने इस व्रत को किया था। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को विजय प्राप्त हुई थी। इसके अलावा सावित्री और सत्यवान की कथा भी करवा चौथ से जुड़ी हुई है। इस कथा में सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस प्राप्त करने के लिए व्रत किया था और उसकी श्रद्धा और समर्पण के फलस्वरूप सत्यवान का जीवन बचा था।
करवा चौथ का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह फसलों के मौसम के साथ जुड़ा हुआ है। कृषि आधारित समाज में फसल कटाई के बाद महिलाएँ करवा चौथ का व्रत करती थीं जिससे उनके परिवार की समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती थी। करवा का शाब्दिक अर्थ मिट्टी का बर्तन है जो कृषि और जीवन के अन्य पहलुओं से जुड़ा हुआ है।
खास बातें जो करवा चौथ रखने वालों को जाननी चाहिए :-
सरगी का महत्व-
सरगी सुबह का भोजन होता है जो आमतौर पर सास द्वारा तैयार किया जाता है। इस अवसर पर विवाहिताएं अपनी सास को उपहार देकर सम्मान प्रकट करती हैं।
पहला बया-
इस दिन सास की तरफ से भी बहू को उपहार मिलता है जिसमें मिठाई नमकीन और सुहाग का सामान शामिल होता है। यह उपहार नवविवाहिताओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
विशेष पूजा-
परिवार की सभी महिलाएं मिलकर पूजा करती हैं जहां विवाहिताओं को दुल्हन की तरह सजने का मौका मिलता है। इस अवसर पर आशीर्वाद लेना भी महत्वपूर्ण होता है।
पति का उपहार-
करवा चौथ पर पति से उपहार प्राप्त करना खास होता है और यह प्रेम का प्रतीक बन जाता है।
करवा चौथ का अनुष्ठान-
करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएँ सूर्योदय से लेकर चंद्रमा के उदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत के दौरान महिलाएँ जल और अन्न का सेवन नहीं करतीं और अपने पति की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। व्रत का प्रारंभ सूर्योदय से पहले सरगी नामक भोजन से होता है जिसे सास द्वारा बहू को दिया जाता है। इसके बाद महिलाएँ दिनभर उपवास रखती हैं और शाम को विशेष पूजन करती हैं। पूजन के दौरान मिट्टी के करवे में जल भरकर भगवान शिव पार्वती और गणेश की पूजा की जाती है।
पूजा के बाद महिलाएँ चंद्रमा के दर्शन करती हैं और अर्घ्य देकर व्रत को तोड़ती हैं। पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर और भोजन कराकर व्रत समाप्त करवाता है। इस अनुष्ठान के माध्यम से न केवल पति-पत्नी के रिश्ते की गहराई को दर्शाया जाता है बल्कि समाज में महिला के महत्व और उसकी भक्ति को भी प्रतिष्ठा दी जाती है।
सनातन धर्म में करवा चौथ का महत्व-
सनातन धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व है क्योंकि यह पति-पत्नी के बीच पवित्र संबंधों को और भी सुदृढ़ करता है। सनातन धर्म में विवाह को एक अत्यंत पवित्र और धार्मिक बंधन माना गया है। करवा चौथ जैसे त्योहार इस बंधन की मजबूती और समर्पण को प्रतीकात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं। करवा चौथ में स्त्रियाँ न केवल अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं बल्कि यह व्रत उनके संयम त्याग और भक्ति का प्रतीक भी है।
सनातन धर्म में त्याग और समर्पण को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। करवा चौथ के व्रत में स्त्रियों द्वारा किया गया निर्जल उपवास इस त्याग और समर्पण का उदाहरण है। पति-पत्नी के बीच के संबंधों में त्याग और सेवा के आदान-प्रदान को करवा चौथ जैसे त्योहारों के माध्यम से बल मिलता है। इस पर्व के माध्यम से स्त्रियाँ न केवल अपने पति के प्रति प्रेम और समर्पण व्यक्त करती हैं बल्कि अपने जीवन में धर्म और आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा भी पाती हैं।
सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण-
करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्योहार भारतीय समाज में नारी की भूमिका को उच्च स्थान प्रदान करता है। भारतीय समाज में स्त्रियों को परिवार की धुरी माना गया है और करवा चौथ जैसे पर्व यह दर्शाते हैं कि स्त्रियाँ परिवार की एकता और सुदृढ़ता की महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
करवा चौथ के दौरान सामूहिक रूप से व्रत रखने और पूजा करने की परंपरा समाज में एकता और सामूहिकता को बढ़ावा देती है। स्त्रियाँ एक साथ मिलकर पूजन करती हैं जिससे समाज में एकजुटता और आपसी सहयोग की भावना का विकास होता है। इसके अतिरिक्त इस दिन सास और बहू के बीच का संबंध भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। सरगी देने की परंपरा के माध्यम से सास-बहू के रिश्ते में सामंजस्य और प्रेम को प्रकट किया जाता है।
आधुनिक समाज में करवा चौथ-
आधुनिक समय में करवा चौथ का रूप और महत्व कुछ हद तक बदल गया है। पहले जहाँ यह त्योहार पूरी तरह से पारंपरिक और धार्मिक दृष्टिकोण से मनाया जाता था वहीं अब यह कुछ हद तक फैशन और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक भी बन गया है। बड़े शहरों में करवा चौथ के अवसर पर महिलाएँ नए वस्त्र पहनती हैं ब्यूटी पार्लर जाती हैं और पारंपरिक आभूषणों से सुसज्जित होती हैं। मीडिया और फिल्मों ने भी करवा चौथ को एक रोमांटिक और ग्लैमर त्योहार के रूप में प्रस्तुत किया है। हालांकि इस बदलाव के बावजूद करवा चौथ का मूल उद्देश्य आज भी वही है पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत रखना। अब पति भी अपनी पत्नी की भावनाओं की सराहना करते हुए व्रत रखते हैं जो पारस्परिक प्रेम और सम्मान का प्रतीक है।
करवा चौथ और नारीवाद-
करवा चौथ के संदर्भ में नारीवाद के दृष्टिकोण से विभिन्न विचारधाराएँ उभरकर आई हैं। कुछ नारीवादी इस त्योहार को पितृसत्तात्मक समाज की परंपरा के रूप में देखते हैं जहाँ स्त्री को अपने पति के लिए त्याग करना पड़ता है। उनके अनुसार यह त्योहार स्त्रियों के लिए सामाजिक दबाव का प्रतीक है। वहीं दूसरी ओर कुछ नारीवादी इसे स्त्री की अपनी इच्छा और स्वतंत्रता का पर्व मानते हैं जहाँ वह अपनी खुशी से यह व्रत करती है और अपने प्रेम को व्यक्त करती है। इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि करवा चौथ के त्योहार को किसी भी प्रकार के दबाव के बजाय प्रेम सम्मान और पारस्परिक समर्पण के प्रतीक के रूप में देखा जाए। आधुनिक समाज में इस त्योहार को मनाने का तरीका भले ही बदल गया हो लेकिन इसके पीछे के मूल्य और आदर्श सदैव महत्वपूर्ण रहेंगे।
निष्कर्ष-
करवा चौथ एक ऐसा पर्व है जो भारतीय समाज और संस्कृति की गहरी जड़ों से जुड़ा हुआ है। यह त्यौहार न केवल पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण को दर्शाता है बल्कि परिवार और समाज की एकता महिला के महत्व और उसके त्याग को भी उजागर करता है। सनातन धर्म में करवा चौथ का स्थान उच्च है क्योंकि यह त्यौहार धर्म कर्तव्य और प्रेम की भावना को प्रकट करता है। आज के बदलते सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी करवा चौथ का महत्त्व बरकरार है। यह त्योहार यह सिखाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए प्रेम त्याग और समर्पण के मूल्य सदैव महत्वपूर्ण रहेंगे। करवा चौथ केवल एक व्रत या अनुष्ठान नहीं है बल्कि यह जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और एकता का प्रतीक है।
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
ब्लॉग: http://badrilal995.blogspot.com
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