20 जून 2025

बनेडिया चारणान तहसील मालपुरा, जिला टोंक (राज)

✍️ शोध लेख-

आओ गाँव चलें – एक ऐतिहासिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक यात्रा।
बनेडिया चारणान तहसील मालपुरा, जिला टोंक (राज)
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
1 प्रस्तावना- राजस्थान की आत्मा हमारे गांव।  

 राजस्थान की धरती न केवल वीरों की भूमि रही है, बल्कि यह संस्कृति, लोक परंपराओं और विविध सामाजिक संगठनों का गढ़ भी रही है। इन्हीं में से एक है बनेडिया चारणान, जो टोंक ज़िले की मालपुरा तहसील में स्थित एक ऐतिहासिक ग्राम है। जो स्वतंत्रता के बाद पंचायत राज गठन से ही पचेवर ग्राम पंचायत का हिस्सा रहा लेकिन सन 1994 में पंचायत राज पुनर्गठन में इसे किरावल ग्राम पंचायत में सम्मिलित कर दिया गया था। यह गाँव केवल भौगोलिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत, साहित्यिक परंपरा और सामाजिक चेतना के लिए भी                                                        

2 ग्राम का लेखा जोखा-                                              

ग्राम की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार- 583 

साक्षरता दर- 80%                                              

जिला मुख्यालय से दूरी- 85 किमी.                           

तहसील मुख्यालय मालपुरा की दूरी- 22 किमी.              

कनेक्टिविटी स्टेट हाईवे 37-4 किमी.                        

  पहचान- मिर्ची का उत्पादन                                     

 प्रमुख उत्पादन- सरसों व गेहूँ                                   

 आय का प्रमुख स्रोत- कृषि एवं पशुपालन                        

  3 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-

इतिहास कारों व ताम्रपत्र के अनुसार बनेडिया चारणान का इतिहास लगभग 600 से 700 वर्ष पुराना माना जाता है। यह गाँव राजस्थान की पुरानी रियासतों - जयपुर और मेवाड़ -के बीच स्थित था,जहाँ पंवार गोत्र के राजपूतों का शासन था। कहते हैं कि एक बार सन 1565 में जैतारण तहसील के खराड़ी गाँव के हुक़्क़मी चन्द जी खिड़िया जो जाति से चारण थे बादशाह अकबर से मिलने के लिए दिल्ली जा रहे थे इस गांव में रात रुके थे यहाँ के जागीरदारों ने उनका कोई आदर सत्कार नहीं किया इससे वे क्रोधित हो गये और बादशाह अकबर से उन्होंने इस गाँव को बतौर ईनाम में ले लिया लेकिन इस गाँव का रकबा कम होने के कारण बादशाह ने इसी नाम का दूसरा गाँव जो इसी जिले की टोडारायसिंह तहसील का गाँव था वह भी इनको दे दिया तब से इन दोनों गांवों के नाम के आगे चारणान शब्द जुड़ गया व दोनों गांवों से राजपूत शासकों को बेदखल करके कविराज हुक़्क़मी चन्द जी का शासन स्थापित हुआ जिसका प्रमाण आकाशवाणी जयपुर से प्रसारित होने वाले लोक गीत हुक़्क़मी चन्द खिड़िया द्वारा एक बनेडिया माँगता दिया बनेडिया दोय व बादशाह द्वारा दिया गया ताम्रपत्र हैं। इस गाँव में चारण समुदाय ने बसावट की। चारणों की उपस्थिति ने इस गाँव को वीर रस, भक्ति और लोक साहित्य का केंद्र बना दिया। लोक कथाओं और पारंपरिक कवित्तों के अनुसार, इस गाँव के जागीरदार खिड़िया गौत्र के चारण रहे जो वर्तमान में भी दोनों गांवों में निसरत हैं।

4 चारण समुदाय की उपस्थिति-
गाँव का नाम ही बनेडिया चारणान इस ओर संकेत करता है कि यह चारण जाति की ऐतिहासिक बस्ती रही है। चारण समुदाय न केवल राजस्थान के कवि और साहित्यकार रहे हैं, बल्कि उन्होंने सामाजिक सरोकारों और राजकीय सलाहकार की भूमिका भी निभाई है। यहाँ के चारण परिवार आज भी अपनी परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं।
5 भौगोलिक स्थिति व पर्यावरण-
बनेडिया चारणान अरावली पर्वतमालाओं की छाया में बसा एक ग्रामीण क्षेत्र है, जो कृषि प्रधान है। गाँव में कुएँ, बावड़ियाँ और सीमित जल संसाधन हैं। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है और खरीफ तथा रबी की फसलें उगाई जाती हैं। आसपास का प्राकृतिक वातावरण शांत एवं हरियाली से युक्त है।
6 सामाजिक संरचना-
गाँव की सामाजिक संरचना विविध जातीय समुदायों से मिलकर बनी है, जिनमें प्रमुख रूप से चारण, गुर्जर, माली, खाती, बाबाजी,बड़वा, बलाई, बैरवा,रैगर, भील और बागरिया जातियाँ शामिल हैं। सभी समुदायों के बीच आपसी सहयोग और सामाजिक समरसता की भावना प्रबल है।
7 सांस्कृतिक विरासत-
यहाँ की सांस्कृतिक विरासत अत्यंत समृद्ध है। लोक देवी-देवताओं की पूजा, त्योहारों की पारंपरिक मनाई जाने वाली विधियाँ और पारंपरिक वेशभूषा गाँव को सांस्कृतिक रूप से विशेष बनाते हैं। गाँव में प्राचीन मंदिर, थानक, तथा देवरे आज भी धार्मिक आस्था का केंद्र हैं।
8 लोक साहित्य एवं परंपराएँ-
चारण समुदाय की वजह से इस गाँव में वीर रस और भक्ति रस से युक्त रचनाओं का विपुल भंडार रहा है। ढोला-मारू की कथाएँ, वीर गाथाएँ, बणी-ठणी गीत, और विवाह संबंधी मांगलिक गीत आज भी सुने जा सकते हैं। महिलाएँ पारंपरिक लोकगायन में दक्ष हैं।
9 आर्थिक जीवन-
गाँव की अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि आधारित है। गेहूँ, बाजरा, चना, सरसों, जौ, ज्वार और मक्का जैसी फसलें प्रमुख हैं। पशुपालन भी यहाँ के लोगों की आय का साधन है। आधुनिकता के साथ कुछ लोग स्वरोजगार, व्यवसाय और सेवा क्षेत्र की ओर भी अग्रसर हो रहे हैं। इस ग्राम के मुरार सिंह बिजली विभाग में एएओ पद, उम्मेद सिंह एजीएम एसबीआई, विजय करण सिंह कॉलेज प्रोफेसर, शुभकरण सिंह एच एल ए,रघुवीर सिंह तृतीय श्रेणी अध्यापक, रामसिंह एएओ कृषि महाविद्यालय जोबनेर से रिटायर कर्मचारी हैं। करणी सिंह व कैलाश सिंह (के ड़ी सिंह) राजस्थान उच्च न्यायालय में एडवोकेट हैं तथा कैलाश सिंह वर्तमान में मोदी विचार मंच राजस्थान के अध्यक्ष हैं। हनुमान बैरवा पोस्ट ऑफिस टोंक में एस पी के पद पर,रमेश सिंह सी आई एआईएसएफ, वासुदेव सिंह व जितेन्द्र सिंह सुपरवाइजर राजपुताना पैलेस जयपुर, रामस्वरूप माली द्वितीय श्रेणी अध्यापक, दुर्गा लाल माली, बद्री लाल गुर्जर, नन्द किशोर बलाई, खेत सिंह खिड़िया, राज सिंह खिड़िया,महीधर गुर्जर व दिनेश सैनी तृतीय श्रेणी अध्यापक पद पर कार्यरत हैं। आरती कँवर प्रधानाचार्य, पिन्नू कँवर एएसआई व शकुंतला कँवर राजस्थान पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर, रवि सिंह खिड़िया जोबनेर कृषि महाविद्यालय में कम्प्यूटर पद पर,करणी सिंह खिड़िया पंचायत शिक्षक, बाबू लाल बैरवा रेलवे में इंजीनियर, हेमंत कुमार सैनी चिकित्सा विभाग में कम्पाउंडर के पद पर कार्यरत हैं। तथा 30-40 लड़के व लड़कियों राज्य सेवाओं की तैयारियां कर रहे हैं।
10 स्वतंत्रता संग्राम एवं योगदान-
भले ही राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा आंदोलन यहाँ से संचालित नहीं हुआ हो, लेकिन ग्रामीणों में ब्रिटिश शासन के प्रति जागरूकता रही। कई स्थानीय युवकों ने स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सहयोग की भावना से कार्य किया।
11 शैक्षणिक विकास-
गाँव में उच्च प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा उपलब्ध है। छात्र-छात्राएँ उच्च शिक्षा के लिए समीपवर्ती कस्बों-पचेवर,मालपुरा, टोंक एवं जयपुर का रुख करते हैं। सरकारी योजनाओं जैसे मुख्यमंत्री बालिका शिक्षा योजना, PM Poshan आदि ने शिक्षा को प्रोत्साहन दिया है।
12 आधुनिक परिवर्तन व शासन योजनाएँ-

शुरू से ही यह गाँव सड़क मार्ग से वंचित था बरसात के मौसम में ग्रामवासियों को पचेवर कस्बे तक पहुंचने में काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता था आज़ादी के बाद से ही किसी भी जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया लेकिन तत्कालीन विधायक व वर्तमान जलदाय केबिनेट मंत्री कन्हैया लाल चौधरी ने इस गाँव की पीड़ा को समझा व पचेवर से जयपुर की सीमा तक पक्की सड़क का निर्माण करवाया जिससे ग्रामवासियों को अन्य शहरों व कस्बों तक पहुंचने में बहुत आसानी हुई तथा  ग्राम के उच्च प्राथमिक भवन के लिए 7 बीघा 8 बिस्वा जमीन एलाटमेंट करवाई गई व जल जीवन मिशन, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत योजना प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों से गाँव के जीवन स्तर में सुधार आया है। मोबाइल, इंटरनेट और डिजिटलीकरण ने भी ग्रामीणों को नई सोच दी है।
13 चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ-
गाँव में आज भी बेरोजगारी, कृषि में गिरती आय और पलायन जैसी समस्याएँ हैं। लेकिन यदि शिक्षा, कौशल विकास, कृषि नवाचार, और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जाए तो यह गाँव आत्मनिर्भरता की दिशा में एक आदर्श गाँव बन सकता है।
14 निष्कर्ष-
बनेडिया चारणान केवल एक गाँव नहीं, बल्कि राजस्थान की आत्मा का जीवंत चित्रण है। इसका इतिहास, संस्कृति, और सामाजिक चेतना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। आओ गाँव चले की भावना के साथ जब हम यहाँ आते हैं, तो न केवल एक गाँव देखते हैं, बल्कि एक गौरवशाली परंपरा से जुड़ते हैं।           

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लेखक- बद्री लाल गुर्जर

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बनेडिया चारणान तहसील मालपुरा, जिला टोंक (राज)

✍️ शोध लेख-
आओ गाँव चलें – एक ऐतिहासिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक यात्रा।
बनेडिया चारणान तहसील मालपुरा, जिला टोंक (राज)
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
1 प्रस्तावना- राजस्थान की आत्मा हमारे गांव।    
राजस्थान की धरती न केवल वीरों की भूमि रही है, बल्कि यह संस्कृति, लोक परंपराओं और विविध सामाजिक संगठनों का गढ़ भी रही है। इन्हीं में से एक है बनेडिया चारणान, जो टोंक ज़िले की मालपुरा तहसील में स्थित एक ऐतिहासिक ग्राम है। जो स्वतंत्रता के बाद पंचायत राज गठन से ही पचेवर ग्राम पंचायत का हिस्सा रहा लेकिन सन 1994 में पंचायत राज पुनर्गठन में इसे किरावल ग्राम पंचायत में सम्मिलित कर दिया गया था। यह गाँव केवल भौगोलिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत, साहित्यिक परंपरा और सामाजिक चेतना के लिए भी                                                   2 ग्राम का लेखा जोखा-                                                        ग्राम की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार- 583              साक्षरता दर- 80%                                                          जिला मुख्यालय से दूरी- 85 किमी.                                   तहसील मुख्यालय मालपुरा की दूरी- 22 किमी.                            कनेक्टिविटी स्टेट हाईवे 37-4 किमी.                                पहचान- मिर्ची का उत्पादन                                                प्रमुख उत्पादन- सरसों व गेहूँ                                               आय का प्रमुख स्रोत- कृषि एवं पशुपालन                   
3 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-
इतिहास कारों व ताम्रपत्र के अनुसार बनेडिया चारणान का इतिहास लगभग 600 से 700 वर्ष पुराना माना जाता है। यह गाँव राजस्थान की पुरानी रियासतों - जयपुर और मेवाड़ -के बीच स्थित था,जहाँ पंवार गोत्र के राजपूतों का शासन था। कहते हैं कि एक बार सन 1565 में जैतारण तहसील के खराड़ी गाँव के हुक़्क़मी चन्द जी खिड़िया जो जाति से चारण थे बादशाह अकबर से मिलने के लिए दिल्ली जा रहे थे इस गांव में रात रुके थे यहाँ के जागीरदारों ने उनका कोई आदर सत्कार नहीं किया इससे वे क्रोधित हो गये और बादशाह अकबर से उन्होंने इस गाँव को बतौर ईनाम में ले लिया लेकिन इस गाँव का रकबा कम होने के कारण बादशाह ने इसी नाम का दूसरा गाँव जो इसी जिले की टोडारायसिंह तहसील का गाँव था वह भी इनको दे दिया तब से इन दोनों गांवों के नाम के आगे चारणान शब्द जुड़ गया व दोनों गांवों से राजपूत शासकों को बेदखल करके कविराज हुक़्क़मी चन्द जी का शासन स्थापित हुआ जिसका प्रमाण आकाशवाणी जयपुर से प्रसारित होने वाले लोक गीत हुक़्क़मी चन्द खिड़िया द्वारा एक बनेडिया माँगता दिया बनेडिया दोय व बादशाह द्वारा दिया गया ताम्रपत्र हैं। इस गाँव में चारण समुदाय ने बसावट की। चारणों की उपस्थिति ने इस गाँव को वीर रस, भक्ति और लोक साहित्य का केंद्र बना दिया। लोक कथाओं और पारंपरिक कवित्तों के अनुसार, इस गाँव के जागीरदार खिड़िया गौत्र के चारण रहे जो वर्तमान में भी दोनों गांवों में निसरत हैं।
4 चारण समुदाय की उपस्थिति-
गाँव का नाम ही बनेडिया चारणान इस ओर संकेत करता है कि यह चारण जाति की ऐतिहासिक बस्ती रही है। चारण समुदाय न केवल राजस्थान के कवि और साहित्यकार रहे हैं, बल्कि उन्होंने सामाजिक सरोकारों और राजकीय सलाहकार की भूमिका भी निभाई है। यहाँ के चारण परिवार आज भी अपनी परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं।
5 भौगोलिक स्थिति व पर्यावरण-
बनेडिया चारणान अरावली पर्वतमालाओं की छाया में बसा एक ग्रामीण क्षेत्र है, जो कृषि प्रधान है। गाँव में कुएँ, बावड़ियाँ और सीमित जल संसाधन हैं। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है और खरीफ तथा रबी की फसलें उगाई जाती हैं। आसपास का प्राकृतिक वातावरण शांत एवं हरियाली से युक्त है।
6 सामाजिक संरचना-
गाँव की सामाजिक संरचना विविध जातीय समुदायों से मिलकर बनी है, जिनमें प्रमुख रूप से चारण, गुर्जर, माली, खाती, बाबाजी,बड़वा, बलाई, बैरवा,रैगर, भील और बागरिया जातियाँ शामिल हैं। सभी समुदायों के बीच आपसी सहयोग और सामाजिक समरसता की भावना प्रबल है।
7 सांस्कृतिक विरासत-
यहाँ की सांस्कृतिक विरासत अत्यंत समृद्ध है। लोक देवी-देवताओं की पूजा, त्योहारों की पारंपरिक मनाई जाने वाली विधियाँ और पारंपरिक वेशभूषा गाँव को सांस्कृतिक रूप से विशेष बनाते हैं। गाँव में प्राचीन मंदिर, थानक, तथा देवरे आज भी धार्मिक आस्था का केंद्र हैं।
8 लोक साहित्य एवं परंपराएँ-
चारण समुदाय की वजह से इस गाँव में वीर रस और भक्ति रस से युक्त रचनाओं का विपुल भंडार रहा है। ढोला-मारू की कथाएँ, वीर गाथाएँ, बणी-ठणी गीत, और विवाह संबंधी मांगलिक गीत आज भी सुने जा सकते हैं। महिलाएँ पारंपरिक लोकगायन में दक्ष हैं।
9 आर्थिक जीवन-
गाँव की अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि आधारित है। गेहूँ, बाजरा, चना, सरसों, जौ, ज्वार और मक्का जैसी फसलें प्रमुख हैं। पशुपालन भी यहाँ के लोगों की आय का साधन है। आधुनिकता के साथ कुछ लोग स्वरोजगार, व्यवसाय और सेवा क्षेत्र की ओर भी अग्रसर हो रहे हैं। इस ग्राम के मुरार सिंह बिजली विभाग में एएओ पद, उम्मेद सिंह एजीएम एसबीआई, विजय करण सिंह कॉलेज प्रोफेसर, शुभकरण सिंह एच एल ए,रघुवीर सिंह तृतीय श्रेणी अध्यापक, रामसिंह एएओ कृषि महाविद्यालय जोबनेर से रिटायर कर्मचारी हैं। करणी सिंह व कैलाश सिंह (के ड़ी सिंह) राजस्थान उच्च न्यायालय में एडवोकेट हैं तथा कैलाश सिंह वर्तमान में मोदी विचार मंच राजस्थान के अध्यक्ष हैं। हनुमान बैरवा पोस्ट ऑफिस टोंक में एस पी के पद पर,रमेश सिंह सी आई एआईएसएफ, वासुदेव सिंह व जितेन्द्र सिंह सुपरवाइजर राजपुताना पैलेस जयपुर, रामस्वरूप माली द्वितीय श्रेणी अध्यापक, दुर्गा लाल माली, बद्री लाल गुर्जर, नन्द किशोर बलाई, खेत सिंह खिड़िया, राज सिंह खिड़िया,महीधर गुर्जर व दिनेश सैनी तृतीय श्रेणी अध्यापक पद पर कार्यरत हैं। आरती कँवर प्रधानाचार्य, पिन्नू कँवर एएसआई व शकुंतला कँवर राजस्थान पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर, रवि सिंह खिड़िया जोबनेर कृषि महाविद्यालय में कम्प्यूटर पद पर,करणी सिंह खिड़िया पंचायत शिक्षक, बाबू लाल बैरवा रेलवे में इंजीनियर, हेमंत कुमार सैनी चिकित्सा विभाग में कम्पाउंडर के पद पर कार्यरत हैं। तथा 30-40 लड़के व लड़कियों राज्य सेवाओं की तैयारियां कर रहे हैं।
10 स्वतंत्रता संग्राम एवं योगदान-
भले ही राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा आंदोलन यहाँ से संचालित नहीं हुआ हो, लेकिन ग्रामीणों में ब्रिटिश शासन के प्रति जागरूकता रही। कई स्थानीय युवकों ने स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सहयोग की भावना से कार्य किया।
11 शैक्षणिक विकास-
गाँव में उच्च प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा उपलब्ध है। छात्र-छात्राएँ उच्च शिक्षा के लिए समीपवर्ती कस्बों-पचेवर,मालपुरा, टोंक एवं जयपुर का रुख करते हैं। सरकारी योजनाओं जैसे मुख्यमंत्री बालिका शिक्षा योजना, PM Poshan आदि ने शिक्षा को प्रोत्साहन दिया है।
12 आधुनिक परिवर्तन व शासन योजनाएँ-
शुरू से ही यह गाँव सड़क मार्ग से वंचित था बरसात के मौसम में ग्रामवासियों को पचेवर कस्बे तक पहुंचने में काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता था आज़ादी के बाद से ही किसी भी जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया लेकिन तत्कालीन विधायक व वर्तमान जलदाय केबिनेट मंत्री कन्हैया लाल चौधरी ने इस गाँव की पीड़ा को समझा व पचेवर से जयपुर की सीमा तक पक्की सड़क का निर्माण करवाया जिससे ग्रामवासियों को अन्य शहरों व कस्बों तक पहुंचने में बहुत आसानी हुई तथा  ग्राम के उच्च प्राथमिक भवन के लिए 7 बीघा 8 बिस्वा जमीन एलाटमेंट करवाई गई व जल जीवन मिशन, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत योजना प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों से गाँव के जीवन स्तर में सुधार आया है। मोबाइल, इंटरनेट और डिजिटलीकरण ने भी ग्रामीणों को नई सोच दी है।
13 चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ-
गाँव में आज भी बेरोजगारी, कृषि में गिरती आय और पलायन जैसी समस्याएँ हैं। लेकिन यदि शिक्षा, कौशल विकास, कृषि नवाचार, और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जाए तो यह गाँव आत्मनिर्भरता की दिशा में एक आदर्श गाँव बन सकता है।
14 निष्कर्ष-
बनेडिया चारणान केवल एक गाँव नहीं, बल्कि राजस्थान की आत्मा का जीवंत चित्रण है। इसका इतिहास, संस्कृति, और सामाजिक चेतना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। आओ गाँव चले की भावना के साथ जब हम यहाँ आते हैं, तो न केवल एक गाँव देखते हैं, बल्कि एक गौरवशाली परंपरा से जुड़ते हैं।           

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लेखक- बद्री लाल गुर्जर
ब्लॉग- badrilal995.blogspot.com


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