31 अग॰ 2024

भारतीय नीति शास्त्र क्या है?


भारतीय नीति शास्त्र क्या है?


 भारतीय नीति शास्त्र क्या है?

भारतीय नीतिशास्त्र को हिन्दू नीतिशास्त्र भी कहा जाता है। इसका संबंध भारतीय वाड्मय के वैदिक युग से समकालीन नैतिक चिंतन तक से है। भारत में चूंकि धर्म तथा नीतिशास्त्र में कोई स्पष्ट विभाजक रेखा नहीं रही है। इस कारण धर्म एवं नीतिशास्त्र दोनों ही घनिष्ठ रूप में जुड़े हुए हैं। दोनों का लक्ष्य एक ही रहा है- मोक्ष की प्राप्ति। धर्म धार्मिक आचरण के माध्यम से इस सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है तथा नीतिशास्त्र अपने नैतिक आचरण के पालन के द्वारा इस सर्वोच्च नैतिक मूल्य को प्राप्त करने का प्रयास करता रहा है। भारत के प्रत्येक धार्मिक चिंतक नैतिक चिंतक भी रहे हैं।

भारतीय नीति शास्त्र प्राचीन भारतीय सभ्यता के बौद्धिक और नैतिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें समाज, राज्य, धर्म, और नैतिकता के विभिन्न पहलुओं का गहन विश्लेषण किया गया है। भारतीय नीति शास्त्र का मुख्य उद्देश्य समाज में न्याय, शांति, और सद्भावना को स्थापित करना है। 

नीति शास्त्र की परिभाषा -

भारतीय नीतिशास्त्र की परिभाषा को जानने से पूर्व शब्द विन्यास को जानना अनिवार्य है जिससे इसकी उत्पत्ति हुई है। यहां पर भारतीय नीतिशास्त्र से हमारा तात्पर्य भारत में विद्यमान प्रत्येक सिद्धांतों से है। नीतिशास्त्र शब्द नीति एवं शास्त्र के संयोग से बना है। शास्त्र शब्द का अर्थ है- आज्ञा, आदेश, नियम, परंपरा। नीति शब्द का अर्थ है- निर्देशन, आचरण या आचरणशास्त्र। नीति शब्द की व्युत्पत्ति है- नी क्तिन् तथा शास्त्र शब्द की व्युत्पत्ति है- शास् + स्टुन । सामान्यतया शास्त्र शब्द का प्रयोग ज्ञान की विशेष शाखा के रूप में होता है जिसे हम विज्ञान भी कहते हैं। अतः नीति शास्त्र ज्ञान की यह विशेष शाखा है जहां हम आचरण संबंधी नियमों का अध्ययन करते हैं। इसे भारतीय इस कारण से कहा गया है क्योंकि इसका अध्ययन भारतीय समाज के संदर्भ में किया जाता है। इस शास्त्र विशेष के द्वारा हमें निश्चित गहन एवं सर्वव्यापक ज्ञान प्राप्त होता है। यह परंपरा वैदिक काल से लेकर आज तक ऋषियों, महापुरुषों एवं महात्माओं के द्वारा अनुभूत चरम सत्य के माध्यम से पुनर्जीवित होती चली आई है।

भारतीय नीतिशास्त्र में वैसे नियमों का अध्ययन किया जाता है जिसके पालन से मानव के सभी प्रकार का शाश्वत कल्याण हो। इन नियमों तथा सिद्धान्तों का गहन अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है जिससे समाज में स्थायित्व कायम रहे एवं व्यापक दृष्टिकोण से विश्व शांति की स्थापना हो। भारतीय नीतिशास्त्र में सारांशतः उन नियमों सिद्धान्तों तथा परंपराओं का अध्ययन किया जाता है जिसके पालन में व्यक्ति और समाज दोनों का ही कल्याण होता है तथा उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

प्रतिपाद्य -

भारतीय नीतिशास्त्र में मुख्य रूप से उन प्रश्नों का समाधान किया गया है जिसका संबंध जीवन तथा उसके चरम लक्ष्य से होता है। प्रायः सभी चिंतकों ने यहां मोक्ष को ही जीवन का चरम लक्ष्य माना है तथा उसकी प्राप्ति के उपाय बतलाए हैं। वैदिक काल से लेकर आज तक सभी भारतीय नैतिक चिंतकों ने जीवन तथा समाज के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाया है। सभी ने समवेत स्वर से (भौतिकवादी संप्रदाय को छोड़कर) चार पुरुषार्थों (काम, अर्थ, धर्म एवं मोक्ष) में से मोक्ष को ही परम पुरुषार्थ मानकर उसी को प्राप्त करने के लिए कहा है। भारतीय नीतिशास्त्र विश्वबंधुत्व भ्रातृत्व एवं सामुदायिक कल्याण पर अधिक बल देता है। व्यक्ति एवं समाज के बीच सुख एवं शांति की कामना करता है तथा संघर्ष रहित स्थिति को बनाए रखने में योगदान देने के लिए बतलाता है।

                 मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियां पाई जाती हैं- विवेक एवं भावना। भावना का संबंध मुख्य रूप से सारी इच्छाओं से होता है। वैसे भी सभी इच्छाओं की पूर्ति करना मनुष्य के लिए संभव नहीं है तथा महापुरुषों ने यह कहा है कि उन इच्छाओं का हमें परित्याग करना चाहिए जो जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा पहुंचाती हैं। मनुष्य किन इच्छाओं का परित्याग करे यह भारतीय नीतिशास्त्र विस्तृत रूप में बतलाता है।

भारतीय नीतिशास्त्र के स्रोत-

भारतीय नीति शास्त्र के प्रमुख ग्रंथों में 

अर्थशास्त्र, मनुस्मृति, महाभारत, रामायण प्रमुख हैं। इनमें से कौटिल्य का अर्थशास्त्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो राज्य के प्रशासन व राजनयिक संबंधों और अर्थव्यवस्था के बारे में गहन विचार प्रस्तुत करता है।

भारत में नैतिक चिंतन परंपरा अत्यंत ही प्राचीन रही है तथा हमारे समक्ष यह दो रूपों में दृष्टिगोचर हुआ है मौखिक रूप में या लिखित रूप में। वैदिक काल के पूर्व भारत में नैतिक चिंतन परंपरा मौखिक रूप में ही जीवित रही तथा श्रुति के माध्यम से गुरू-शिष्य परंपरा के द्वारा इसे अनेक युगों तक कायम रखा गया। वैदिक काल से नैतिक चिंतकों ने अपने सिद्धान्तों को युगानुसार लिपिबद्ध किया तथा उनके अद्भुत, अनुपम एवं श्रेष्ठतम विचार हमारे समक्ष ग्रंथों के माध्यम से उ‌द्भुत हुआ। प्राचीन भारतीय नीतिशास्त्र में तो नैतिक विचार किसी भी दृष्टि से धर्म तथा दर्शन से सर्वथा भिन्न नहीं है। वहां कोई भी ऐसी सीमा रेखा नहीं है जो नीतिशास्त्र को धर्म तथा दर्शन से अलग कर सके।

नीति शास्त्र का संबंध मनुष्य के नैतिक जीवन की समस्याओं से है। इस प्रकार की समस्याएं तथा इसका इतिहास मानव संस्कृति के साथ ही उत्पन्न होती हैं। पाश्चात्य नीति शास्त्र की अपेक्षा भारतीय नीति शास्त्र की प्राचीनता को स्वीकारा गया है। इस प्रकार का विचार हॉपकिन्स का है- यद्यपि भारतीय मानस की खोज पश्चिम ने हजारों

वर्ष पूर्व कर ली थी लेकिन आज भी पश्चिम के लोगों को भारतीय धर्म तथा नीति के संबंध में बहुत अल्प ज्ञान है। भारतीय नीतिशास्त्र या हिन्दू नीति शास्त्र पाश्चात्य जगत के लिए आज भी अज्ञात है। ईसाई धर्म के नैतिक सिद्धांतों के आगमन के काफी पूर्व भारतीय नीति शास्त्र ने ईसाई धर्म में वर्णित नैतिक प्रत्ययों (यथा- सत्य, उदारता, दयालुता, पवित्रता, क्षमा, दया) को स्वीकार कर चुका था तथा इसका विशद् वर्णन कर चुका था।

उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि हिन्दू नीति शास्त्र उतना ही प्राचीन एवं प्रामाणिक है जितनी कि वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति। वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, पुराणों, महाकाव्यों एवं विभिन्न दार्शनिक संप्रदायों ने अपने-अपने अनुरूप नैतिक सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर उसे स्वीकार किया है। वेदों में ऋतु सिद्धान्त, उपनिषदों में सत्तू का नियम, स्मृतियों में स्वधर्म पालन इत्यादि नैतिक सिद्धान्तों की ओर ही इंगित करते हैं। कठोपनिषद् में यह स्वीकार किया गया है कि विवेकशील मनुष्य के सामने जब श्रेय एवं प्रेय दोनों आते हैं और वे इन दोनों के गुण-दोषों पर विचार करके अलग समझने की चेष्टा करते हैं तो श्रेष्ठ विवेकी पुरुष प्रेय की अपेक्षा श्रेय को ग्रहण करता है। ठीक इसके विपरीत अल्प- विवेकी व्यक्ति श्रेय के फल में अविश्वास करके प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले लौकिक योगक्षेम की सिद्धि के लिए प्रेय को अपनाता है तथा प्रेय को अपनाकर वह जीवन के अपने चरम लक्ष्य से विलग हो जाता है। श्वेताश्वतरोपनिषद् में भी कहा गया है कि परमात्मा जिनकी अचिन्त्य शक्ति से विश्व काल प्रवाहमान होता है। वह धर्म की वृद्धि करने वाले,पाप का नाश करने वाले और समस्त विश्व के आधार हैं। उन्हीं को प्राप्त करना हमारे जीवन का ध्येय होना चाहिए।

वेद से लेकर भारतीय दर्शन के सभी संप्रदायों में पुरुषार्थ को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है तथा उसकी विशद् विवेचना की गई है। चार्वाक को छोडकर भारत में सभी ग्रंथों में मोक्ष को ही परम पुरुषार्थ माना गया है। साथ ही अन्य पुरुषार्थों की अवहेलना भी नहीं की गई है। मोक्ष साध्य है और अन्य पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ एवं काम) साधन के रूप में स्वीकार किए गए हैं। इन्हीं पुरुषायों के माध्यम से मनुष्य का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास होता है।

नीति शास्त्र के प्रमुख सिद्धांत-

1. धर्म -

धर्म भारतीय नीति शास्त्र का केंद्र बिंदु है। धर्म का अर्थ केवल धार्मिक कर्तव्यों तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक व्यापक नैतिक और सामाजिक व्यवस्था को भी संदर्भित करता है। इसमें सत्य, अहिंसा, करुणा और न्याय जैसे नैतिक सिद्धांत शामिल हैं।

2. राज्य और शासन -

 भारतीय नीति शास्त्र में राज्य और उसके शासन की संरचना पर विशेष ध्यान दिया गया है। कौटिल्य के अनुसार एक आदर्श राज्य वह है जिसमें राजा अपने प्रजा के कल्याण को सर्वोपरि मानता है। राज्य का कर्तव्य है कि वह प्रजा की सुरक्षा, न्याय और आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित करे।

3. राजनयिक संबंध -

   कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजनयिक संबंधों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। इसमें संधि, मित्रता और युद्ध की रणनीतियों का विस्तृत वर्णन है। कौटिल्य ने मंडल सिद्धांत का प्रतिपादन किया है जिसमें उन्होंने पड़ोसी राज्यों के साथ संबंधों की नीति का विस्तृत विश्लेषण किया।

4. अर्थव्यवस्था और सामाजिक न्याय-

   अर्थशास्त्र में आर्थिक नीतियों पर भी गहन विचार किया गया है। इसमें राज्य के वित्त, कर प्रणाली और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उल्लेख है। भारतीय नीति शास्त्र के अनुसार राज्य का दायित्व है कि वह समाज में आर्थिक असमानताओं को कम करने और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करने की दिशा में कार्य करे।

5. नैतिकता और कानून -

भारतीय नीति शास्त्र में नैतिकता को कानून से ऊपर रखा गया है। यह माना गया है कि कानून का उद्देश्य नैतिकता की स्थापना करना है। कानून केवल नियमों का पालन कराने का माध्यम नहीं है बल्कि यह नैतिकता और धर्म के सिद्धांतों के अनुपालन का साधन है।

अतः इस प्रकार भारतीय नीति शास्त्र केवल प्राचीन समय के लिए ही प्रासंगिक नहीं है बल्कि इसके सिद्धांत आज भी समाज, राज्य और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण हैं। इसका उद्देश्य केवल शासकों और राजाओं को मार्गदर्शन देना नहीं है बल्कि यह हर व्यक्ति को सही और गलत के बीच अंतर समझाने और समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए भारतीय नीति शास्त्र की गहनता और विविधता इसे विश्व के अन्य नीति शास्त्रों से अलग बनाती है। इसके अध्ययन से हमें न केवल प्राचीन भारत की बौद्धिक धरोहर का ज्ञान होता है बल्कि यह आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।


बद्री लाल गुर्जर

बनेडिया चारणान

   (टोंक)


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