परम पिता परमेश्वर
परम पिता परमेश्वर का स्वरूप निरंजन एवं निराकार है जो सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, और सर्वव्यापी है। जिन्हें हम भगवान, ईश्वर, या अल्लाह के नाम से भी जानते हैं, वे अनंत, अजन्मा, और अविनाशी हैं। उनकी महिमा असीमित है। वे न केवल इस संसार के रचयिता हैं, बल्कि इसके पालनहार और संहारक भी हैं। संसार में जो कुछ भी होता है, वह परमेश्वर की इच्छा से होता है। उनकी कृपा सभी प्राणियों पर होती है। ईश्वर को एक निराकार, असीमित और अमूर्त शक्ति के रूप में मानते हैं, जिसे किसी एक रूप या व्यक्तित्व में बाँधा नहीं जा सकता। ईश्वर के बारे में विचारधारा धर्म, संस्कृति, और व्यक्तिगत विश्वासों पर निर्भर करती है, और यह विभिन्न रूपों में लोगों के जीवन और विचारधारा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ईश्वर इस विश्व का आदि स्रष्टा, पालक एवं संहारक है। ईश्वर विश्व की सृष्टि शून्य से नहीं करता है, बल्कि नित्य परमाणुओं, दिक्, काल, आकाश, मन एवं आत्माओं से इसकी सृष्टि करता है। ईश्वर के साथ रहने वाली नित्य सत्ताओं का विश्व में अभिव्यक्त होना ही सृष्टि कहलाता है। इस विश्व में आत्मा (जीवात्मा) अपने पाप एवं पुण्य के अनुरूप दुःख एवं सुख भोगते हैं। ईश्वर विश्व का आदि निर्माता है, वह उपादान कारण नहीं है। ईश्वर विश्व का पालनकर्ता है, क्योंकि यह विश्व ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही कायम रहता है। ईश्वर विश्व का संहारक भी है।
ईश्वर एक, अनन्त एवं नित्य है। देश, काल, मन एवं आत्मा इसे सीमित नहीं करती। इन द्रव्यों तथा ईश्वर में वही सम्बन्ध है जो सम्बन्ध शरीर तथा आत्मा के बीच है। ईश्वर सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञ है। उसे सभी वस्तुओं एवं घटनाओं का वास्तविक एवं यथार्थ ज्ञान होता है।
चैतन्य युक्त आत्मा को ही ईश्वर कहा गया है। आत्मा दो प्रकार की है जीवात्मा एवं परमात्मा। परमात्मा को ही ईश्वर कहते हैं जो जीवात्मा से भिन्त्र है। ईश्वर का ज्ञान नित्य है, परन्तु जीवात्मा का ज्ञान अनित्य, आंशिक एवं सीमित है। ईश्वर में सभी प्रकार की पूर्णता निहित होती है जबकि जीवात्मा अपूर्ण है। ईश्वर न तो बद्ध है न मुक्त, परन्तु जीवात्मा पहले बन्धन में रहती है बाद में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस विश्व में हम पाते हैं कि कुछ व्यक्ति सुखी हैं तथा कुछ व्यक्ति दुःखी हैं। व्यक्तियों के बीच विषमता दृष्टिगोचर होती है। कुछ व्यक्ति पापी हैं तथा कुछ पुण्यात्मा हैं। आखिर इन विषमताओं का आधार एवं कारण क्या है? कारणता नियम के अनुसार हम जानते हैं कि प्रत्येक घटना का कोई-न-कोई कारण होता है। यह विषमता भी शून्य से उत्पन्न नहीं हुई होगी। इसका आधार एवं कारण कर्म नियम है जिसके अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों का फल प्राप्त होता है। शुभ कर्म से सुख एवं अशुभ कर्म से दुःख प्राप्त होता है। कर्म ही व्यक्ति के सुख एवं दुःख का कारण है।
ईश्वर मनुष्य का कर्म फलदाता है, वह हमारे सभी कर्मों का निर्णायक है। ईश्वर दयालु है तथा जीवों को कर्म करने के लिए प्रेरित करता है। ईश्वर व्यक्तित्वपूर्ण है जिसमें ज्ञान, सत्ता एवं आनन्द निहित है। मनुष्य की मोक्ष की प्राप्ति ईश्वर की कृपा से ही होती है। सभी कर्मों के फल व्यक्ति को एक ही जीवन में प्राप्त नहीं होते। कुछ कर्मों का फल इसी जीवन में प्राप्त होता है तथा कुछ कर्मों का फल संचित रहता है। इसी आधार पर यह कहा जाता है कि वर्तमान जीवन अतीत जीवन के कर्मों का फल है तथा भविष्यत् जीवन वर्तमान जीवन के कर्मों का फल होगा। न्याय दर्शन में शुभ या अशुभ कर्मों से उत्पन्न सुखों एवं दुःखों के भण्डार को अदृष्ट कहा गया है। अदृष्ट मनुष्य के पूर्व एवं वर्तमान कर्मों से उत्पन्न सुखों एवं दुःखों का भण्डार है। इसी अदृष्ट के द्वारा व्यक्ति को वर्तमान एवं भविष्यत् जीवन में सुख या दुःख की प्राप्ति होती है। न्याय दर्शन में अदृष्ट को अचेतन माना गया है जिसके कारण वह स्वयं कर्मों तथा उनके फलों के बीच व्यवस्था कायम नहीं कर सकता है। अदृष्ट को ऐसा करने के लिए एक बुद्धिमान व्यक्ति की अपेक्षा होती है। इस अदृष्ट का संचालक जीवात्मा नहीं हो सकता है, क्योंकि उसका ज्ञान सीमित एवं आंशिक है। अतः इस अदृष्ट के संचालक के रूप में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करना आवश्यक होता है।
परम पिता परमेश्वर का स्थान हमारे हृदय में है। हमें अपने कर्मों से, विचारों से और आचरण से उनकी कृपा प्राप्त करनी चाहिए। सत्य, अहिंसा, प्रेम, और दया जैसे गुण उनके प्रति सच्ची भक्ति के रूप माने जाते हैं।
इस प्रकार, परम पिता परमेश्वर के प्रति आस्था और भक्ति ही मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। वे ही हमें इस संसार के दुखों से मुक्त कर सकते हैं और हमें मोक्ष की ओर ले जा सकते हैं। जब हम उनके प्रति पूर्ण समर्पण करते हैं, तो वे हमें अपने आशीर्वाद से अनुग्रहित करते हैं।
स्मरण और उनकी उपासना हमें सच्चे अर्थों में आनंद और शांति प्रदान कर सकती है।
बद्री लाल गुर्जर
बनेडिया चारणान
(टोंक)
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