29 अग॰ 2024

भारतीय दर्शन के अनुसार बन्धन एवं मोक्ष


भारतीय दर्शन के अनुसार बन्धन एवं मोक्ष

                    भारतीय दर्शन के अनुसार बन्धन एवं मोक्ष भारतीय दर्शन के अनुसार मोक्ष एक उच्चतम आध्यात्मिक अवस्था है जिसे आत्मा की पूर्ण मुक्ति और परम शांति के रूप में समझा जाता है। यह स्थिति सभी प्रकार के दुःख, कष्ट, और संसारिक बंधनों से मुक्ति का प्रतीक है। मोक्ष की अवधारणा भारतीय दर्शन में विभिन्न रूपों में प्रकट होती है और इसका विवरण विभिन्न दर्शनों के अनुसार भिन्न-भिन्न  है। मोक्ष को ही मानव जीवन का चरम लक्ष्य स्वीकार करता है। न्याय दर्शन के अनुसार आत्मा, शरीर, इन्द्रिय एवं मन से सर्वथा भिन्न है। अज्ञानवश आत्मा स्वयं को शरीर, इन्द्रिय एवं मन के समान समझने लगती है तथा इन सभी के साथ तादात्य स्थापित कर लेती है। बन्धन की अवस्था में मन अनात्म को आत्मा क्षणिक वस्तुओं को नित्य, अप्रिय को प्रिय समझ बैठता है। साथ ही कर्म, कर्म फल एवं अपवर्ग (मोक्ष) के सम्बन्ध में सन्देह करने लगता है। जिस कारण बन्धन की अवस्था में आत्मा को नाना प्रकार के सांसारिक काष्टों के अधीन रहना पड़ता है। आत्मा निरन्तर जन्म ग्रहण करती है। अतएव, जीवन के कष्टों को अनुभूत करना तथा बार-बार जन्म लेना ही बन्धन कहलाता है। इस अवस्था का नाश मोक्ष से ही सम्भव है।

दुःखों के पूर्ण निरोध की अवस्था ही मोक्ष है। न्याय दर्शन में मोक्ष को अपवर्ग कहा गया है। अपवर्ग का शाब्दिक अर्थ है शरीर एवं इन्द्रियों के बन्धन से आत्मा का मुक्त होना। दुःखों से पूर्ण मुक्ति तभी सम्भव है जब आत्मा स्वयं को शरीर, इन्द्रिय एवं मन से भिन्न समझने लगे। गौतम के अनुसार, दुःख के आत्यन्तिक उच्छेद की अवस्था ही मोक्ष की अवस्था है। इस अवस्था में सदा-सदा के लिए दुःखों से पूर्ण मुक्ति हो जाती है।

नैयाविकों के अनुसार, मोक्ष की अवस्था में केवल दुःखों का ही अन्त नहीं होता है बल्कि सुखों का भी अन्त हो जाता है। मोक्ष को आनन्दविहीन अवस्था के रूप में स्वीकार किया गया है। क्योंकि शरीर के माध्यम से आनन्द की प्राप्ति होती है तथा मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् शरीर के विनष्ट होने के साथ ही आनन्द का भी अभाव हो जाता है। मोक्ष की अवस्था में आत्मा अपने स्वाभाविक स्वरूप को प्राप्त कर लेती है। यहां आत्मा को कोई अनुभूति नहीं होती है। न्याय दर्शन में इसका निषेधात्मक वर्णन अभयम, अजरम्, अमृत्युपदम के रूप में हुआ है।

मोक्ष प्राप्ति के साधन नैयायिकों के मत में ज्ञान के द्वारा ही अज्ञान का नाश होता है तथा इस ज्ञान का सम्बन्ध तत्व ज्ञान से है। तत्व ज्ञान मिथ्या ज्ञान को समाप्त कर देता है। शरीर, इन्द्रिय एवं मन को आत्मा समझना ही मिथ्या ज्ञान है। जब आत्मा स्वयं को इन सभी से भिन्न समझने लगती है तो मिथ्या ज्ञान की समाप्ति हो जाती है। न्याय दर्शन में तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति के लिए तीन चीजों पर बल दिया गया है-

(i) श्रवण शास्त्रों के उपदेशों को सुनना श्रवण है। यहां विशेष रूप से आत्मा सम्बन्धी उपदेशों को सुनने को कहा गया है। 

(ii) मनन शास्त्रों में वर्णित आत्मा सम्बन्धी उपदेशों पर विचार कर अपने मन को सुदृढ़ बनाना मनन कहलाता है। 

(iii) निदिध्यासन योग द्वारा बतलाए हुए मार्ग के अनुरूप

आत्मा पर निरन्तर ध्यान केन्द्रित करना ही निदिध्यासन कहलाता है। यहां यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा एवं समाधि जैसे अष्टांगिक मार्गों को अपनाना पड़ता है।

श्रवण, मनन एवं निदिध्यासन को अपनाने से व्यक्ति आत्मा को शरीर से भिन्न रूप में समझने लगता है। यहां मिथ्या ज्ञान का अन्त हो जाता है। इस अवस्था में धर्म, अधर्म, शरीर एवं ज्ञानेन्द्रियों का भी नाश हो जाता है। वासनाओं तथा प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर आत्मा दुःख एवं पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाती है। इसे ही अपवर्ग कहते हैं। नैयायिकों ने जीवन मुक्ति की अवधारणा को अस्वीकार कर विदेह मुक्ति को स्वीकार किया है।

मोक्ष का अर्थ

मोक्ष भारतीय दर्शन में आत्मा की अंतिम मुक्ति और संसार के बंधनों से पूर्ण स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह आत्मा की परम शांति, आनंद और ईश्वर से एकत्व की अवस्था है। मोक्ष प्राप्ति का मार्ग विभिन्न दर्शनों और धार्मिक परंपराओं में अलग-अलग बताया गया है लेकिन सभी का उद्देश्य एक ही है आत्मा का परम सत्य से मिलन और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति।

मोक्ष शब्द संस्कृत भाषा के मुक धातु से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है छोड़ना या मुक्ति। मोक्ष का सामान्य अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति यानी आत्मा का पुनर्जन्म से मुक्ति प्राप्त करना। इसे जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य माना गया है और यह व्यक्ति की आत्मा का परमात्मा के साथ एकत्व या उसके साक्षात्कार के रूप में देखा जाता है।

मोक्ष की अवधारणा विभिन्न दर्शनों व धर्मों में अलग-अलग प्रकार से व्याख्यायित की गई है लेकिन सभी दर्शनों व धर्मों का अंतिम लक्ष्य इस जीव आत्मा का जन्म मरण के चक्र से छुटकारा पाना है जो निम्नानुसार हैं-

1. वेदांत दर्शन-

वेदांत दर्शन के अनुसार, मोक्ष का अर्थ है आत्मा का ब्रह्म से एकत्व प्राप्त करना। अद्वैत वेदांत में, आत्मा और ब्रह्म को अभिन्न माना जाता है और मोक्ष का मतलब है इस अद्वैत सत्य का अनुभव करना। यहाँ मोक्ष का मार्ग ज्ञान, ध्यान, और भक्ति से होता है।

2. सांख्य और योग दर्शन-

सांख्य दर्शन के अनुसार, मोक्ष का अर्थ है आत्मा का प्रकृति से अलगाव। जब आत्मा (पुरुष) यह जान लेता है कि वह प्रकृति से अलग है तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। योग दर्शन में मोक्ष ध्यान और समाधि द्वारा आत्मा और प्रकृति के बीच इस भेद को साक्षात अनुभव करने से होता है।

3. जैन दर्शन-

जैन धर्म में मोक्ष का अर्थ है आत्मा का कर्मों से पूरी तरह मुक्त हो जाना। जब आत्मा कर्म बंधनों से मुक्त हो जाती है तो वह सिद्ध अवस्था प्राप्त करती है और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। 

4. बौद्ध दर्शन-

बौद्ध धर्म में मोक्ष को निर्वाण कहा जाता है जिसका अर्थ है सभी इच्छाओं और दुःखों का अंत। यह स्थिति तब प्राप्त होती है जब व्यक्ति अज्ञानता और तृष्णा का नाश कर देता है और पूर्ण शांति और बुद्धत्व को प्राप्त करता है।

5. इस्लाम दर्शन-

इस्लाम में मोक्ष की अवधारणा को नजात या अखिरत की सफलता कहा जाता है। यह विचार है कि एक व्यक्ति की आत्मा जीवन के बाद की स्थिति में अल्लाह की अनुकंपा प्राप्त कर स्वर्ग में प्रवेश करती है जहाँ उसे अनंत शांति और सुख की प्राप्ति होती है। इस्लाम में मोक्ष या नजात का अर्थ आत्मा की अंतिम मुक्ति और परमात्मा के साथ अनंत आनंद प्राप्त करना है।

इस्लाम के अनुसार मोक्ष का अर्थ है व्यक्ति का अल्लाह के समक्ष जवाबदेही के दिन (कयामत के दिन) सफल होना और जन्नत (स्वर्ग) में प्रवेश प्राप्त करना। इस्लामी दृष्टिकोण से यह सफलता व्यक्ति के जीवन में किए गए अच्छे कर्मों ईमान (विश्वास) और अल्लाह के प्रति समर्पण पर आधारित होती है। 

कयामत व हिसाब का दिन-

इस्लाम में मोक्ष की अवधारणा का संबंध कयामत (प्रलय) और हिसाब (जवाबदेही) के दिन से है। यह वह दिन है जब सभी इंसानों को उनके जीवन में किए गए कार्यों के आधार पर न्याय के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। इस दिन अल्लाह हर व्यक्ति के कर्मों का हिसाब करेगा और उसी के आधार पर उसे जन्नत या जहन्नम (नरक) की सजा मिलेगी। 

मोक्ष प्राप्ति के मार्ग-

मोक्ष प्राप्ति के विभिन्न मार्ग बताए गए हैं, जो व्यक्ति की प्रवृत्ति, आस्था और क्षमता के अनुसार होते हैं। इनमें मुख्य रूप से ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग, कर्म मार्ग और योग मार्ग शामिल हैं।

1. ज्ञान मार्ग -

ज्ञान मार्ग मोक्ष प्राप्ति का एक प्रमुख साधन है, जिसमें व्यक्ति आत्म-ज्ञान और ब्रह्म-ज्ञान के माध्यम से सत्य का साक्षात्कार करता है। 

स्वाध्याय और शास्त्रों का अध्ययन- 

 वेदांत दर्शन के अनुसार, मोक्ष के लिए आत्मा और ब्रह्म (परम सत्य) की वास्तविकता को जानना आवश्यक है। इसके लिए व्यक्ति को शास्त्रों, उपनिषदों और गीता जैसे ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए।

विचार और मनन-

 ज्ञान योग में व्यक्ति को विचार करना सिखाया जाता है कि यह संसार मायामय है और आत्मा इस संसार से परे है। इस विचार से व्यक्ति को आत्मा की वास्तविकता का बोध होता है।

ध्यान-

ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर के सत्य को जानने का प्रयास करता है। ध्यान आत्मा और ब्रह्म के बीच एकत्व की अनुभूति कराता है।

2. भक्ति मार्ग -

भक्ति मार्ग मोक्ष प्राप्ति का वह मार्ग है जिसमें व्यक्ति ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करता है।

ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण-

भक्ति मार्ग में ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति और पूर्ण समर्पण को मुख्य साधन माना गया है। व्यक्ति को हर समय ईश्वर की आराधना, प्रार्थना और स्मरण करना चाहिए।

संतों और भक्तों की संगति-

ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा बढ़ाने के लिए संतों और भक्तों की संगति आवश्यक है। इससे व्यक्ति को सद्गुणों का विकास होता है।

कीर्तन और भजन-

भक्ति योग में ईश्वर के गुणगान, भजन-कीर्तन और नाम स्मरण को प्रमुख स्थान दिया गया है। यह साधन व्यक्ति के मन को शुद्ध और पवित्र करता है।

3. कर्म मार्ग -

कर्म योग के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए निष्काम कर्म का पालन करना आवश्यक है। 

निष्काम कर्म गीता के अनुसार व्यक्ति को बिना किसी फल की कामना के अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। इस प्रकार के कर्म से व्यक्ति को संसार के बंधनों से मुक्ति मिलती है।

समर्पण भावना-

कर्म योग में कर्म करते समय व्यक्ति को अपने कर्मों का फल ईश्वर को समर्पित करना चाहिए। इससे व्यक्ति के कर्मों से उत्पन्न अहंकार नष्ट हो जाता है।

4. योग मार्ग -

योग मार्ग के अनुसार, शारीरिक और मानसिक अनुशासन के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

अष्टांग योग-

पतंजलि के अष्टांग योग में आठ अंग बताए गए हैं—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि। इनका पालन करते हुए व्यक्ति मन को संयमित और नियंत्रित करता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ध्यान और समाधि-

योग मार्ग में ध्यान और समाधि को प्रमुख साधन माना गया है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है और समाधि के माध्यम से वह ब्रह्म से एकत्व का अनुभव करता है।

5. इस्लाम में मोक्ष के कुछ मुख्य मार्ग-

ईमान-

सबसे महत्वपूर्ण तत्व ईमान (विश्वास) है। एक व्यक्ति को अल्लाह उसके पैगंबरों, कुरान और आखिरी दिन पर पूर्ण विश्वास रखना होता है। यह ईमान व्यक्ति के आचरण और जीवनशैली में प्रकट होना चाहिए।

नमाज़-

पांच समय की नमाज़ (प्रार्थना) इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और यह अल्लाह के प्रति भक्ति और समर्पण को प्रकट करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है।

रोज़ा-

रमज़ान के महीने में रोज़ा (उपवास) रखना भी मोक्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। यह आत्म-नियंत्रण और अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

ज़कात-

ज़रूरतमंदों और गरीबों को उनकी सहायता के लिए दी जाने वाली ज़कात (दान) भी एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है जिससे सामाजिक न्याय और समरूपता को बढ़ावा मिलता है।

हज-

मक्का में हज का करना यदि संभव हो एक बार जीवन में हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है और यह अल्लाह के प्रति गहरी भक्ति का प्रतीक है।


 इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति का मार्ग व्यक्ति की प्रवृत्ति और आस्था के अनुसार अलग-अलग हो सकता है, लेकिन सभी मार्गों का अंतिम उद्देश्य आत्मा का परम सत्य से मिलन और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति है। मोक्ष प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अपने मन, वचन, और कर्म में पवित्रता, सत्य, और समर्पण का पालन करना चाहिए। जब व्यक्ति अपने अहंकार, इच्छाओं और आसक्तियों को त्यागकर आत्मा की वास्तविकता को पहचान लेता है, तब वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है।


बद्री लाल गुर्जर

बनेडिया चारणान

      (टोंक)




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