8 अग॰ 2025

सच्चा आत्म-ज्ञान स्वयं की वास्तविक पहचान की ओर एक यात्रा

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सच्चा आत्म-ज्ञान स्वयं की वास्तविक पहचान की ओर एक यात्रा

 लेखक- बद्री लाल गुर्जर

जब व्यक्ति इस संसार में आता है तब वह अपने शरीर, नाम, जाति, धर्म, परिवार और समाज से जुड़ता है, लेकिन इन सभी परिचयों से परे एक परिचय और भी होता है स्वयं का परिचय। यही आत्म-ज्ञान है।

सच्चा आत्म-ज्ञान केवल बौद्धिक जानकारी नहीं बल्कि वह जीवंत अनुभूति है जो व्यक्ति को उसकी आत्मा की वास्तविकता से जोड़ती है। यह ज्ञान व्यक्ति को भ्रम, मोह, भय और असत्य की जंजीरों से मुक्त करता है और उसे शांति, समर्पण और सत्य की ओर ले जाता है।

1 आत्म-ज्ञान का तात्त्विक अर्थ-

आत्मा-शब्द संस्कृत धातु अत् से बना है जिसका अर्थ है - चलायमान। आत्मा वह चेतन शक्ति है जो न केवल हमारे शरीर को क्रियाशील रखती है बल्कि हमारे जीवन की धुरी भी है। आत्म-ज्ञान का अर्थ है इस आत्मा के स्वरूप, उसकी प्रकृति, उसके कार्य और उसकी शुद्धता का साक्षात्कार।

सच्चा आत्म-ज्ञान तब होता है जब व्यक्ति समझता है कि-

  • मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ।
  • मेरा स्वभाव शांति, प्रेम, करुणा और पवित्रता है।
  • मैं अनादि, अविनाशी,चेतन सत्ता हूँ।

2 आत्म-ज्ञान और आत्मबोध में अंतर-

  • आत्मबोध वह प्रारंभिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति को यह बोध होता है कि उसके अस्तित्व की गहराई में कोई स्व छिपा है।
  • आत्म-ज्ञान वह उन्नत अवस्था है जहाँ व्यक्ति इस 'स्व' को अनुभव करता है समझता है और उससे तादात्म्य स्थापित करता है।

3 सच्चे आत्म-ज्ञान के लक्षण-

  1. वास्तविक शांति की अनुभूति
    आत्मा के स्वरूप में स्थित व्यक्ति के भीतर बाहरी परिस्थितियाँ हलचल नहीं मचातीं।

  2. मोह-माया से विरक्ति
    आत्मा को जानने वाला जानता है कि संसार नश्वर है और वह इसमें फँसता नहीं।

  3. नैतिकता और आत्मनियंत्रण
    सच्चा आत्मज्ञानी स्वभाव से ही सदाचारी होता है। उसका जीवन अनुशासित और समर्पित होता है।

  4. दूसरों के प्रति करुणा और सहानुभूति
    वह सभी जीवों में एक ही आत्मा का दर्शन करता है। इसलिए किसी के साथ अन्याय नहीं करता।

4. आत्म-ज्ञान की आवश्यकता क्यों है?

आज के युग में मनुष्य विज्ञान और तकनीक में जितनी तेज़ी से आगे बढ़ा है, उतनी ही तेज़ी से वह मानसिक रूप से अशांत, असुरक्षित और भ्रमित हुआ है। यह आत्मिक शून्यता ही है जिसने व्यक्ति को भौतिकता की अंधी दौड़ में धकेल दिया है। सच्चा आत्म-ज्ञान ही वह औषधि है जो इस मानसिक और आध्यात्मिक रोग का उपचार कर सकती है।

5 आत्म-ज्ञान कैसे प्राप्त करें?

(1) स्वविचार और आत्ममंथन

रोज़ कुछ समय आत्मचिंतन में बिताना चाहिए। स्वयं से प्रश्न करना —

  • मैं कौन हूँ?
  • मेरा उद्देश्य क्या है?
  • क्या मैं वास्तव में वही हूँ जो समाज ने मुझे बताया?

(2) ध्यान और साधना 

ध्यान वह माध्यम है जो हमें आत्मा के साथ जोड़ता है। यह बाहरी शोर को शांत कर भीतर के मौन की ओर ले जाता है।

(3) पवित्र ग्रंथों का अध्ययन-

गीता, उपनिषद, बुद्ध वचन, जैन आगम और गुरुवाणी ये सब आत्मा की प्रकृति और उसके ज्ञान को उजागर करते हैं।

(4) संतों और गुरुओं का संग-

सद्गुरु आत्मा का दर्पण होते हैं। वे हमारे भीतर के अंधकार को प्रकाशित करते हैं।

(5) सत्य का पालन और नैतिक जीवन-

जो व्यक्ति सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों का पालन करता है उसका मन शांत होता है और आत्मा का प्रकाश प्रकट होता है।

6 आत्म-ज्ञान और धर्मों की दृष्टि

(1) हिन्दू दर्शन-

अहम् ब्रह्मास्मि उपनिषद का यह वाक्य स्पष्ट करता है कि आत्मा ब्रह्म के समान है। आत्म-ज्ञान ही मोक्ष का साधन है।

(2) बौद्ध दर्शन-

बुद्ध ने आत्मा के अस्तित्व को नकारा लेकिन आत्मबोध और अंतःचेतना की खोज पर ज़ोर दिया। विपश्यना ध्यान आत्मनिरीक्षण का अद्भुत साधन है।

(3) जैन दर्शन-

जैन दर्शन आत्मा को स्वतंत्र, शुद्ध, ज्ञानमयी मानता है। अप्पा दीपो भव अर्थात स्वयं का दीपक बनो, आत्म-ज्ञान की ओर इंगित करता है।

(4) सूफी और इस्लामी दृष्टिकोण-

सूफी मार्ग में मक्का की यात्रा से अधिक ज़रूरी हृदय की यात्रा मानी गई है। नफ़्स (अहं) को जीतकर रूह (आत्मा) को जानना आत्म-ज्ञान की प्रक्रिया है।

(5) ईसाई दृष्टिकोण-

यीशु ने कहा स्वर्ग का राज्य तुम्हारे भीतर है। इसका अर्थ यही है कि सत्य का अनुभव अंदर से ही होता है न कि बाहर से।

7 आत्म-ज्ञान और जीवन की गुणवत्ता-

आत्म-ज्ञान न केवल आध्यात्मिक मुक्ति का माध्यम है बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में प्रकाश फैलाता है-

  • व्यक्तित्व निर्माण- आत्म-ज्ञानी व्यक्ति आत्मविश्वासी, धैर्यवान और संतुलित होता है।
  • संबंधों में मधुरता- वह नफरत नहीं करता क्षमा करता है।
  • नेतृत्व क्षमता- सच्चा नेता वही होता है/जो अपने भीतर स्पष्टता और विवेक से भरा हो।
  • संकटों में स्थिरता- आत्मज्ञानी व्यक्ति संकटों में भी विचलित नहीं होता, वह समाधान खोजता है।

8 आत्म-ज्ञान में बाधाएँ-

  • अहंकार (अहम)- मैं जानता हूँ का भाव आत्म-ज्ञान में सबसे बड़ी बाधा है।
  • मोह और वासनाएँ-  जब मन विषयों में डूबा रहता है तो आत्मा का प्रकाश ढँक जाता है।
  • भय और संदेह- आत्मा निर्भय है। लेकिन जब व्यक्ति संदेह करता है, तब वह सत्य को नहीं देख पाता।
  • भीड़ की मानसिकता- लोग जैसे हैं वैसे ही बनना- यह आत्म-ज्ञान के मार्ग में अवरोध है।

9 आत्म-ज्ञान और मोक्ष का संबंध-

मोक्ष का अर्थ है बंधनों से मुक्ति। ये बंधन किसी बाहरी शक्ति ने नहीं बाँधे बल्कि हमारे अज्ञान, वासना, क्रोध और मोह ने बाँधे हैं। जब आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को जान लेती है तब ये बंधन टूटते हैं और वही अवस्था मोक्ष कहलाती है।

10 आधुनिक जीवन में आत्म-ज्ञान की भूमिका-

आज जब दुनिया में तनाव, अवसाद, निराशा और अशांति बढ़ती जा रही है आत्म-ज्ञान मनुष्य को न केवल मानसिक शांति देता है बल्कि उसे यह भी सिखाता है कि-

  • कैसे जीना है?
  • क्यों जीना है?
  • और किसके लिए जीना है?

आत्म-ज्ञान हमें भीड़ में रहते हुए भी अकेले सत्य के साथ खड़े रहने की शक्ति देता है।

11 महापुरुषों के विचार-

  • स्वामी विवेकानंद- सारा ज्ञान पहले से ही मनुष्य के भीतर है। आवश्यकता केवल उसे जाग्रत करने की है।
  • महात्मा गांधी- स्व-ज्ञान के बिना जीवन एक अंधकार है।
  • गौतम बुद्ध- अपने दीपक स्वयं बनो।
  • कबीर- मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।

12 निष्कर्ष-

सच्चा आत्म-ज्ञान न किसी पुस्तक से मिलता है, न प्रवचन से न किसी मंदिर या तीर्थ से वह तब प्राप्त होता है जब हम अपने अंदर झाँकते हैं, अपने विचारों, भावनाओं, इच्छाओं और भय को देखते हैं और उनसे परे जाकर आत्मा के स्वरूप को पहचानते हैं।

इस यात्रा में धैर्य समर्पण साधना और सच्ची जिज्ञासा आवश्यक है। एक बार जब व्यक्ति स्वयं को जान लेता है, तब वह संसार को भी नये दृष्टिकोण से देखता है करुणा, समझ और शांति की दृष्टि से।

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