11 अग॰ 2025

अन्तर्दृष्टि का कालातीत स्वरूप- समय, चेतना और आत्मा

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अन्तर्दृष्टि का कालातीत स्वरूप- समय, चेतना और आत्मा

 लेखक- बद्री लाल गुर्जर

मानव जीवन केवल जन्म, भोजन, कार्य और मृत्यु की साधारण श्रृंखला नहीं है। यह एक गहन रहस्यमय यात्रा है जिसमें हम स्वयं को, संसार को और उस अनंत शक्ति को समझने का प्रयास करते हैं जिसने इस समस्त ब्रह्मांड को रचा है।
इस यात्रा में सबसे बड़ा साधन है अन्तर्दृष्टि वह आंतरिक दृष्टि जो बाहरी आँखों से दिखाई देने वाली वस्तुओं से आगे जाकर, अदृश्य सत्यों का अनुभव कराती है।

1 अन्तर्दृष्टि क्या है?

अन्तर्दृष्टि का अर्थ केवल किसी समस्या का समाधान निकालना नहीं बल्कि वास्तविकता को उसकी सम्पूर्णता में देखना है। यह साधारण बुद्धि से परे एक अनुभूतिजन्य बोध है जिसमें सत्य अपने मूल स्वरूप में प्रकट होता है।

2 अन्तर्दृष्टि क्यों आवश्यक है?

  • जीवन के उद्देश्य को समझने के लिए
  • समय के बंधनों से परे जाने के लिए
  • चेतना को उच्चतर स्तर तक ले जाने के लिए
  • आत्मा की पहचान और अनुभव के लिए

जैसे सूर्य की किरणें अंधकार को दूर कर देती हैं, वैसे ही अन्तर्दृष्टि अज्ञान के अंधकार को मिटाकर हमें सत्य के प्रकाश से भर देती है।

समय और अन्तर्दृष्टि का संबंध

1 समय का मानवीय अनुभव

हम सब समय के प्रवाह में जीते हैं। अतीत हमारी स्मृतियों में है, भविष्य हमारी कल्पनाओं में और वर्तमान वह क्षण है जो आते ही बीत जाता है।
लेकिन समय का यह अनुभव केवल मन का अनुभव है आत्मा के स्तर पर समय का कोई अस्तित्व नहीं।

उदाहरण:
कल्पना कीजिए आप एक सुंदर सूर्यास्त देख रहे हैं। कुछ क्षणों के लिए आप पूरी तरह उस दृश्य में खो जाते हैं और समय का बोध मिट जाता है। यह ही समय से पार जाने का अनुभव है जो अन्तर्दृष्टि के माध्यम से बार-बार संभव हो सकता है।

2 समय का सापेक्ष और निरपेक्ष स्वरूप

  • सापेक्ष समय: घड़ियों, कैलेंडर, घटनाओं पर आधारित।
  • निरपेक्ष समय: जहाँ कोई अतीत-भविष्य नहीं केवल अब है।

अन्तर्दृष्टि हमें निरपेक्ष समय का अनुभव कराती है जिससे जीवन में एक अद्वितीय शांति आती है।

3 समय के पार देखना

गहन ध्यानावस्था में व्यक्ति समय की रेखा से बाहर निकल सकता है। इस अवस्था में न बीते कल का बोझ रहता है/न आने वाले कल की चिंता। केवल शुद्ध चेतना में स्थित अभी का आनंद होता है।
यही अवस्था कालातीत अन्तर्दृष्टि का द्वार है।

3 चेतना में अन्तर्दृष्टि की भूमिका

1 चेतना के स्तर

भारतीय दर्शन में चेतना को कई स्तरों में बाँटा गया है-

  1. जाग्रत अवस्था- बाहरी दुनिया से जुड़ी चेतना।
  2. स्वप्न अवस्था- अवचेतन की अभिव्यक्ति।
  3. सुषुप्ति अवस्था-  गहरी नींद, विचारों का लोप।
  4. तुरीय अवस्था- शुद्ध, निर्विकार चेतना यहाँ अन्तर्दृष्टि का पूर्ण प्रकाश होता है।

2 बाहरी बनाम आंतरिक चेतना

सामान्यत: हमारी चेतना बाहर की ओर प्रवाहित रहती है इंद्रियों के माध्यम से वस्तुओं की ओर। अन्तर्दृष्टि चेतना को भीतर की ओर मोड़ देती है जिससे आत्मा के स्वरूप का अनुभव संभव होता है।

3 अन्तर्दृष्टि जाग्रत करने की शर्तें

  • मन की स्थिरता- विचारों का संतुलन
  • भावनाओं की पवित्रता- द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध का अभाव
  • अहंकार का लोप- मैं की सीमाओं का विघटन

व्यावहारिक अभ्यास

  • प्रतिदिन 10 मिनट का ध्यान
  • दिनभर में दो बार वर्तमान क्षण पर पूरी जागरूकता लाना
  • अनावश्यक मानसिक शोर से दूरी बनाना (जैसे अत्यधिक समाचार, सोशल मीडिया)

4 आत्मा के स्तर पर अन्तर्दृष्टि का कालातीत स्वरूप

1 आत्मा की शाश्वतता

गीता में कहा गया है-
न जायते म्रियते वा कदाचित्...
आत्मा न जन्म लेती है न मरती है। यह अनादि,अनंत और अविनाशी है।
अन्तर्दृष्टि आत्मा का ही एक स्वाभाविक गुण है जो हमें इस सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव कराता है।

2 आत्मा और समय का विघटन

आत्मा के स्तर पर समय का कोई अस्तित्व नहीं होता। यह केवल शरीर और मन के लिए है। आत्मा में प्रवेश करने का अर्थ है—कालातीतता का अनुभव।

3 आत्मा में अन्तर्दृष्टि की पूर्णता

जब साधक आत्मा से जुड़ जाता है तब अन्तर्दृष्टि अपने सबसे शुद्ध स्वरूप में प्रकट होती है। यह अवस्था-

  • जीवन के रहस्यों को स्पष्ट करती है
  • करुणा और प्रेम को स्वाभाविक बनाती है
  • दुख-सुख की द्वंद्वता से मुक्त कर देती है

5 निष्कर्ष-

अन्तर्दृष्टि केवल मानसिक कौशल नहीं बल्कि आत्मा की सहज शक्ति है जो समय और चेतना के सीमाओं को पार कर हमें शाश्वत सत्य से जोड़ती है।
यह हमारे भीतर के मौन को जागृत करती है जिससे जीवन में स्थिरता, स्पष्टता और आनंद आता है।