पर्यावरण संरक्षण एवं हरियाली अमावस्या
हरियाली अमावस्या एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसे वर्षा ऋतु के मध्य में जुलाई या अगस्त के महीने में मनाया जाता है। सावन माह में भारत के प्रत्येक प्रांत में हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती अतः इस प्राकृतिक संवृद्धि को समर्पित इस त्यौहार को अमावस्या तिथि के साथ मानने के कारण इसे हरियाली अमावस्या तथा 'श्रावण अमावस्या' के नाम से भी जाना जाता है।
यह त्यौहार श्रावण शिवरात्रि के एक दिन बाद तथा शुक्ल पक्ष में आने वाली हरियाली तीज से तीन दिन पहले मनाया जाता है। भारत के उत्तरी राज्यों जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में हरियाली अमावस्या बहुत प्रसिद्ध है। परन्तु महाराष्ट्र में इसे गतारी अमावस्या, आंध्र प्रदेश में इसे चुक्कल अमावस्या, तमिलनाडु में इसे आदि अमावसई के नाम से जाना जाता है और उड़ीसा में इसे चीतालागि अमावस्या के रूप में जाना जाता है।
इस दिन को विशेष रूप से वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों का विशेष महत्व है और हरियाली अमावस्या पर लोग नए पौधे लगाते हैं, जिससे पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। हरियाली अमावस्या का धार्मिक महत्व भी है। इस दिन को भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। लोग शिव मंदिरों में जाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं और पारिवारिक समृद्धि की कामना करते हैं। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और अन्य पूजन सामग्रियां अर्पित करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। नारद पुराण के अनुसार श्रावण मास की अमावस्या को पितृ श्राद्ध, दान, होम और देव पूजा व वृक्षारोपण आदि शुभ कार्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
हरियाली अमावस्या का प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा और हरित आवरण को बढ़ाना है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर वृक्षारोपण अभियान चलाए जाते हैं, जिसमें लोग बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। पेड़-पौधे न केवल हमें स्वच्छ वायु प्रदान करते हैं, बल्कि मिट्टी के कटाव को भी रोकते हैं और जलवायु को संतुलित रखते हैं।
यह त्यौहार समाज में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में पर्यावरण संबंधी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें बच्चों और युवाओं को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावन का महीना देवी- देवताओं और भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। हिंदू परंपराओं में पेड़-पौधों में भगवान का वास बताया गया है और लोग हरियाली अमावस्या के दौरान पेड़-पौधों की पूजा करते हैं। कुछ जगहों पर हरियाली अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने की प्रथा है।इस दिन पेड-पौधे लगाना बहुत शुभ माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, पीपल के पेड़ पर तीन देवताओं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है।
पेड़ पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, और विभिन्न जीवों के लिए आवास प्रदान करते हैं। वे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, जलवायु को नियंत्रित करने, और बाढ़ को रोकने में भी सहायक होते हैं।
हरियाली अमावस्या का त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण की सुरक्षा करें और उसे समृद्ध बनाएँ। यह त्योहार हमें प्रकृति से जुड़ने और उसे संवारने का अवसर प्रदान करता है। यदि हम सभी मिलकर इस दिन को सही मायनों में मनाएं और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें, तो यह न केवल हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्वच्छ और सुंदर भविष्य की नींव रखेगा।
बद्री लाल गुर्जर
बनेडिया चारणान
(टोंक)
2 टिप्पणियां:
शानदार
Thanks sir
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