अन्तर्दर्शन और प्रकृति का संबंध – आत्मा और ब्रह्मांड की एकता

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अन्तर्दर्शन और प्रकृति का संबंध-आत्मा और ब्रह्मांड की एकता


अन्तर्दर्शन और प्रकृति का संबंध-आत्मा और ब्रह्मांड की एकता का चित्र

अन्तर्दर्शन और प्रकृति का संबंध-आत्मा और ब्रह्मांड की एकता का चित्र

लेखक- बद्री लाल गुर्जर

मनुष्य जीवन के सबसे बड़े प्रश्नों में से एक है- मैं कौन हूँ?। यह प्रश्न हमें भीतर की ओर झाँकने के लिए प्रेरित करता है। आत्मा और ब्रह्मांड का संबंध समझने का वास्तविक मार्ग अन्तर्दर्शन है। जब हम बाहरी शोर भागदौड़ और इच्छाओं से मुक्त होकर भीतर की गहराई में उतरते हैं तब यह अनुभव होने लगता है कि हमारी आत्मा केवल एक सीमित शरीर या व्यक्तित्व तक सीमित नहीं है बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति और ब्रह्मांड से गहराई से जुड़ी हुई है।

अन्तर्दर्शन केवल आत्म-विश्लेषण या आत्मालोचना भर नहीं है यह चेतना की उस यात्रा का नाम है जिसमें व्यक्ति स्वयं को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अंश मानकर देखता है। इसी अनुभव से आत्मा और ब्रह्मांड की एकता की अनुभूति होती है।

अन्तर्दर्शन की परिभाषा और महत्व

अन्तर्दर्शन का शाब्दिक अर्थ है- भीतर की ओर देखना। सामान्यतः मनुष्य बाहर की दुनिया को देखने समझने और जीतने की कोशिश करता है परन्तु जब वह अपने मन भावनाओं, विचारों और आत्मा को देखने की कोशिश करता है, तभी उसका वास्तविक परिचय स्वयं से होता है।

अन्तर्दर्शन की विशेषताएँ-

  1. आत्म-जागरूकता को गहराई देना।
  2. विचारों भावनाओं और इच्छाओं को पहचानना।
  3. आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझना।
  4. जीवन के वास्तविक उद्देश्य की खोज।

अन्तर्दर्शन व्यक्ति को यह समझने का अवसर देता है कि बाहरी संसार में जो कुछ भी दिखाई देता है उसका आधार भीतर है।

प्रकृति और ब्रह्मांड की व्यापकता

प्रकृति केवल पेड़-पौधों, नदियों या पहाड़ों तक सीमित नहीं है। यह समग्र ऊर्जा प्रणाली है जिसमें सूर्य, तारे, आकाशगंगाएँ और असीमित ब्रह्मांडीय शक्तियाँ सम्मिलित हैं। उपनिषदों और गीता जैसे शास्त्रों ने स्पष्ट कहा है कि ब्रह्मांड में जो कुछ है वही सब मनुष्य के भीतर भी है।

प्रकृति के प्रमुख आयाम-

  • स्थूल प्रकृति- दृश्य संसार – पर्वत, नदियाँ, आकाश, पृथ्वी, जीव-जंतु।
  • सूक्ष्म प्रकृति-  ऊर्जा, तरंगें, विचार, भावनाएँ।
  • कारण प्रकृति- वह अदृश्य चेतना जिससे सब उत्पन्न हुआ है।

जब मनुष्य अन्तर्दृष्टि से इन आयामों को देखने लगता है तो उसे यह अनुभव होता है कि उसकी आत्मा भी उसी स्रोत से उत्पन्न है जिससे पूरा ब्रह्मांड।

आत्मा और ब्रह्मांड – वेदांत दृष्टिकोण

वेदांत दर्शन कहता है अहं ब्रह्मास्मि अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ। इसका तात्पर्य यह नहीं कि अहंकार का विस्तार हो बल्कि यह समझना कि आत्मा और ब्रह्मांडीय आत्मा में कोई भेद नहीं है।

आत्मा और ब्रह्मांड की एकता के तत्त्व-

  1. जीवात्मा और परमात्मा का संबंध- जीवात्मा सीमित रूप है, परमात्मा असीम।
  2. अद्वैत दर्शन- सब कुछ एक ही चेतना का विस्तार है।
  3. अनुभूति का स्तर जब अन्तर्दर्शन गहरा होता है तब विभाजन मिट जाता है।

योग और ध्यान- आत्मा-ब्रह्मांड की सेतु

योग का वास्तविक अर्थ है जुड़ना। योग और ध्यान अन्तर्दर्शन को गहराई देने वाले साधन हैं। जब ध्यान में मन स्थिर होता है तो यह अनुभव होता है कि हमारी चेतना पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है।

  • प्राणायाम- श्वास द्वारा ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आत्मसात करना।
  • ध्यान- विचारों से परे जाकर आत्मा की गहराई में प्रवेश।
  • समाधि- आत्मा और ब्रह्मांड की पूर्ण एकता का अनुभव।

विज्ञान और अन्तर्दर्शन

आज का आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि ब्रह्मांड ऊर्जा और तरंगों से बना है। क्वांटम भौतिकी कहती है कि सूक्ष्म स्तर पर सब कुछ आपस में जुड़ा है। यही बात अध्यात्म और अन्तर्दर्शन भी बताते हैं आत्मा और ब्रह्मांड अलग नहीं एक ही हैं।

  • क्वांटम एंटैंगलमेंट- दो कण दूर रहते हुए भी एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।
  • ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत- ऊर्जा नष्ट नहीं होती, केवल रूप बदलती है।
  • चेतना का विज्ञान- मनुष्य की चेतना भी ब्रह्मांडीय ऊर्जा का हिस्सा है।

प्रकृति से एकत्व का अनुभव

जब व्यक्ति जंगल में, नदी किनारे, पर्वत की चोटी पर या तारों भरे आकाश के नीचे बैठता है तो उसे सहज ही अनुभव होता है कि वह ब्रह्मांड का हिस्सा है।

अनुभव की अवस्थाएँ-

सौंदर्य का अनुभव- फूल, वृक्ष, नदी मन को आत्मिक शांति देते हैं।

नम्रता का अनुभव- विशाल आकाश देखकर अहंकार टूटता है।

मौन का अनुभव- प्रकृति का मौन आत्मा को मौन कर देता है।

आत्मा और प्रकृति का नैतिक संबंध

जब मनुष्य यह समझ लेता है कि उसकी आत्मा और प्रकृति एक ही ऊर्जा से बने हैं, तब वह प्रकृति का शोषण नहीं करता। वह उसे अपना ही विस्तार मानकर उसका संरक्षण करता है।

  • पेड़ काटना आत्मा को क्षति पहुँचाना है।
  • जल को प्रदूषित करना अपनी चेतना को दूषित करना है।
  • पृथ्वी की रक्षा करना आत्मा की रक्षा करना है।

भारतीय संतों की दृष्टि

भारतीय संतों और ऋषियों ने सदैव आत्मा और ब्रह्मांड की एकता का अनुभव किया।

  • कबीर: “ज्यों जल में कमल रहा, त्यों नर रहै संसार।”
  • मीरा: प्रकृति और प्रेम के माध्यम से आत्मा का ब्रह्म से मिलन।
  • रामकृष्ण परमहंस: ब्रह्मांड को ‘माँ’ के रूप में देखना।

आत्मा-ब्रह्मांड की एकता का व्यावहारिक महत्व

यदि हम अन्तर्दर्शन से आत्मा और ब्रह्मांड की एकता को समझ लें, तो जीवन में अनेक परिवर्तन आते हैं-

तनाव और भय समाप्त होता है।

आत्मविश्वास और शांति बढ़ती है।

दूसरों के प्रति करुणा और प्रेम जागता है।

जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होता है।

 निष्कर्ष

अन्तर्दर्शन वह सेतु है जो आत्मा और ब्रह्मांड को जोड़ता है। आत्मा कोई अलग सत्ता नहीं है बल्कि वही ब्रह्मांडीय चेतना है जो हर तारे, ग्रह, पेड़-पौधे और जीव-जंतु में विद्यमान है। जब हम भीतर की यात्रा करते हैं तो बाहर का सम्पूर्ण ब्रह्मांड हमारे भीतर प्रतिफलित हो उठता है।

इस प्रकार अन्तर्दर्शन और प्रकृति का संबंध केवल दार्शनिक विचार नहीं बल्कि जीवन जीने का वास्तविक मार्ग है। आत्मा और ब्रह्मांड की एकता का अनुभव ही जीवन का परम सत्य है।




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