सांसों में छिपा आत्म-ज्ञान- प्राणायाम और आत्म-चिंतन

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सांसों में छिपा आत्म-ज्ञान- प्राणायाम और आत्म-चिंतन

प्राणायाम करती हुई बालिका की तस्वीर

प्राणायाम करती हुई बालिका

लेखक- बद्री लाल गुर्जर

मानव जीवन एक अनमोल धरोहर है जिसका वास्तविक उद्देश्य केवल भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति तक सीमित नहीं है। जीवन का सार आत्म-ज्ञान की ओर अग्रसर होना है। आत्म-ज्ञान का अर्थ है  अपने अस्तित्व अपने मन अपनी चेतना और अपने परम स्वरूप को समझना। इस आत्म-ज्ञान की यात्रा के लिए सांसें एक महत्वपूर्ण सेतु का कार्य करती हैं। सांसें केवल जीवन को चलाने वाली श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया नहीं हैं बल्कि ये हमारे अंदर और बाहर की दुनिया को जोड़ने वाला पुल हैं। प्राचीन भारतीय योग परंपरा में प्राणायाम और आत्म-चिंतन को आत्म-ज्ञान का मार्ग माना गया है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि कैसे सांसों में आत्म-ज्ञान छिपा है प्राणायाम का अभ्यास किस प्रकार हमें मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर गहराई प्रदान करता है और आत्म-चिंतन हमें अपने वास्तविक स्वरूप की पहचान कराता है।

सांस और आत्म-ज्ञान का संबंध

मनुष्य का जन्म होते ही पहली क्रिया होती है- सांस लेना और मृत्यु की अंतिम घड़ी में सांस ही शरीर को छोड़ती है। यह स्पष्ट है कि सांस ही जीवन का मूल आधार है। लेकिन सांस केवल शारीरिक ऊर्जा का साधन नहीं है।

  • सांसों की गहराई हमारे मानसिक शांति का पैमाना है।

  • सांसों की लय हमारे विचारों और भावनाओं की लय से जुड़ी होती है।

  • गहरी शांत और नियंत्रित सांसें हमें चेतना की गहराई तक ले जाती हैं।

भारतीय ऋषि-मुनियों ने कहा है कि यदि हम सांसों को समझ लें तो हम स्वयं को समझ सकते हैं। सांसों में छिपा यह रहस्य हमें धीरे-धीरे आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है।

प्राणायाम का अर्थ और महत्व

प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है- प्राण (जीवन-ऊर्जा) और आयाम (नियंत्रण या विस्तार)। अर्थात प्राणायाम का अर्थ है- जीवन की ऊर्जा का विस्तार और नियंत्रण। योग दर्शन के अनुसार, प्राणायाम केवल श्वास-प्रश्वास की क्रिया नहीं है बल्कि यह साधक को उसके अंतर्मन से जोड़ने की साधना है। पतंजलि योगसूत्र में प्राणायाम को चित्त की शुद्धि और स्थिरता का साधन बताया गया है।

प्राणायाम के प्रमुख लाभ

शारीरिक लाभ

  • फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है।

  • रक्त शुद्ध होता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

  • नाड़ी-तंत्र संतुलित होता है।

  • मानसिक लाभ

  • तनाव और चिंता कम होती है।

  • एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।

  • मन स्थिर और शांत रहता है।

  • आध्यात्मिक लाभ

  • साधक धीरे-धीरे आत्म-चिंतन की ओर बढ़ता है।

  • अंतर्मन की गहराई में उतरकर आत्मा का अनुभव करता है।

  • आत्म-ज्ञान और ईश्वरानुभूति का मार्ग प्रशस्त होता है।

आत्म-चिंतन का महत्व

प्राणायाम हमें सांसों की गहराई से जोड़ता है वहीं आत्म-चिंतन हमें हमारे विचारों और भावनाओं की गहराई से जोड़ता है। आत्म-चिंतन का अर्थ है –

  • अपने जीवन, अपने विचारों और अपने कर्मों पर गहराई से विचार करना।

  • स्वयं से प्रश्न करना मैं कौन हूँ? मेरा जीवन किस उद्देश्य के लिए है?

  • अपने भीतर की अच्छाई-बुराई का निरीक्षण करना और उसे सुधारने का प्रयास करना।

आत्म-चिंतन हमें बाहरी शोर से हटाकर आंतरिक मौन की ओर ले जाता है। यही मौन आत्म-ज्ञान का द्वार है।

प्राणायाम और आत्म-चिंतन का संगम

जब हम प्राणायाम का अभ्यास करते हैं, तो हमारी सांसें नियंत्रित और गहरी हो जाती हैं। धीरे-धीरे मन शांत होता है और विचारों की उथल-पुथल कम हो जाती है। इस अवस्था में आत्म-चिंतन करना सहज और प्रभावी हो जाता है।

यह प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है –

  1. प्राणायाम द्वारा शांति
  • सांसों को नियंत्रित करके मन को स्थिर करना।

  • मन की अस्थिरता और चिंताओं को दूर करना।

  1. आत्म-चिंतन द्वारा आत्म-ज्ञान
  • शांत मन से स्वयं के बारे में विचार करना।

  • अपने जीवन की दिशा और उद्देश्य की खोज करना।

  • आत्मा और परमात्मा के संबंध को अनुभव करना।

प्रमुख प्राणायाम और आत्म-चिंतन की विधियाँ

1. अनुलोम-विलोम (नाड़ी शोधन प्राणायाम)

  • यह प्राणायाम शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करता है।

  • इससे मन शांत होता है और आत्म-चिंतन के लिए स्थिरता मिलती है।

2. भ्रामरी प्राणायाम

  • इसमें मधुमक्खी की गूंज जैसी ध्वनि उत्पन्न की जाती है।

  • यह अभ्यास मन को भीतर की ओर मोड़ता है।

  • आत्म-ज्ञान की साधना में सहायक है।

3. कपालभाति

  • यह शरीर और मन की शुद्धि का साधन है।

  • इससे विचारों की अशुद्धि कम होती है और आत्म-चिंतन का मार्ग साफ होता है।

4. ध्यान और आत्म-चिंतन

  • प्राणायाम के बाद ध्यान की अवस्था आती है।

  • ध्यान में बैठकर व्यक्ति आत्म-चिंतन करता है।

  • यही साधना आत्म-ज्ञान तक ले जाती है।

सांसों में छिपे आत्म-ज्ञान का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि श्वास-प्रश्वास का सीधा संबंध मस्तिष्क और भावनाओं से है।

  • गहरी और धीमी सांसें तनाव को कम करती हैं और मस्तिष्क में शांति लाती हैं।

  • नियंत्रित श्वास-प्रश्वास से तंत्रिका तंत्र संतुलित होता है।

  • वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि प्राणायाम करने से एकाग्रता, निर्णय क्षमता और आत्म-जागरूकता बढ़ती है।

जीवन में प्राणायाम और आत्म-चिंतन को अपनाने की आवश्यकता

आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान अपने आप से दूर होता जा रहा है। तनाव, अवसाद और असंतोष ने जीवन को घेर लिया है। ऐसे समय में प्राणायाम और आत्म-चिंतन जीवन में संतुलन लाने का साधन हैं।

  • प्राणायाम हमें सांसों से जोड़कर शरीर और मन को स्वस्थ रखता है।

  • आत्म-चिंतन हमें आत्मा से जोड़कर जीवन को सार्थक बनाता है।

निष्कर्ष

सांसें केवल जीवन की डोर नहीं हैं बल्कि आत्म-ज्ञान का मार्ग भी हैं। जब हम सांसों को समझते हैं प्राणायाम का अभ्यास करते हैं और आत्म-चिंतन के माध्यम से अपने भीतर झांकते हैं तभी हम जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचान पाते हैं। प्राणायाम और आत्म-चिंतन हमें बाहरी दुनिया की उलझनों से निकालकर आत्मा की गहराई तक ले जाते हैं। यही आत्म-ज्ञान है जो जीवन को शांति संतुलन और पूर्णता प्रदान करता है। 




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