20 जुल॰ 2024

बॉडी लैंग्वेज नहीं तो बोलना बेकार है

 

बॉडी लैंग्वेज नहीं तो बोलना बेकार है



इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि भव्य व्यक्तित्व सबको अपनी ओर आकृष्ट करता है। यदि वक्ता प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी है और बोल भी अच्छा लेता है तो वह अधिक भीड़ जुटा पाने में कामयाब होता है। शारीरिक, मानसिकए बौद्धिक और हाव-भाव के स्तर पर चुस्त-दुरुस्त और विवेकशील वक्ता का भाषण लोग रुचि से सुनते हैं।


व्यक्तित्व वंशानुगत होता है और उसके स्वरूप पर वातावरण का भी असर पड़ता है। व्यक्तित्व जैसा भी हो, उस पर हमारा अधिकार नहीं होता। हम अपने व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन नहीं कर सकते ।


भव्य व्यक्तित्व भी वक्ता का साथ तभी देता है, जब उसमें वैचारिक भव्यता होती है। यह भी जरूरी हैं कि वह शुद्ध बोले और आकर्षक ढंग से बोले ।


वक्ता श्रोताओं के सामने प्रसन्नचित्त, निद्वंद्व, विश्राम व रिलेक्स मुद्रा में जाए। थके’ उनींदे अथवा अस्फूर्त वक्ता की उपस्थिति श्रोताओं पर मानसिक अत्याचार करती है। आत्मविश्वास से परिपूर्ण मुस्कराता वक्ता श्रोताओं का दिल जीत लेता है।


वक्ता को खाने.पीने के तौर.तरीके पर भी ध्यान देना चाहिए। खान पान पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। यदि वक्ता को रात को भाषण देने जाना है तो भारी भोजन करके मंच पर नहीं जाना चाहिए ।


यदि दोपहर बाद भाषण देने के लिए वक्ता को आमंत्रित किया जाए तो वह दोपहर का खाना बिलकुल न खाए।


भरपेट खाकर भाषण देने जाना वक्ता को रास नहीं आएगा ।


सफल वक्ता सदैव ऊर्जावान होता है। दमकता, स्फूर्त और आभायुक्त वक्ता अपनी उपस्थिति से श्रोताओं को भी उत्साहित और पुलकित करता है। अतः वक्ता को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे उसकी ऊर्जा पर कुठाराघात हो। जिस वक्ता में जितनी अधिक चुंबकीय शक्ति, जीवंतता, उत्साह, ओजस्विता और तेजस्विता होगी, वह उतना ही अधिक श्रोताओं को जुटाने में कामयाब होगा। सफल वक्ता में इन विशेषताओं का होना बहुत जरूरी है, यही गुण उसे सफलता प्रदान करते हैं। वक्ता ने कैसे वस्त्र परिधान पहन रखे हैं इसका भी श्रोताओं पर अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः परिधान का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए।


कुछ वक्ताओं का विचार होता है कि स्वयं को बौद्धिक जताने के लिए हाथ में किताब या समाचार.पत्र लेकर मंच पर जाना चाहिए। कमीज की ऊपरी जेब में दो.चार पेन भी होने चाहिए। उनका पहनावा भी कुछ ऐसा ही होता है। इसका श्रोताओं पर अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता । श्रोताओं को यह समझते देर नहीं लगती कि वक्ता जैसा दिख रहा है, वास्तव में वैसा है नहीं। मुस्कराते हुए वक्ता का व्यक्तित्व लचीला होता है। उसके हाव.भाव से स्वाभाविकता झलकती है, लेशमात्र अतिरंजिता नहीं। होती । श्रोताओं का ऐसे वक्ता से तालमेल बैठ जाता है। वह उत्सुकता से भाषण सुनते हैं, वक्ता के साथ मुस्कराते हैं और वक्ता के साथ गंभीर होते हैं।


भीड़ में श्रोताओं की संख्या का वक्ता पर जबरदस्त असर पड़ता है। भारी भीड़ के सम्मुख वक्ता जोश बुलंदियों का स्पर्श करता है। वह खुद को भूल जाता है और तन्मयता से बोलता है। लोग उसके चुटकुलों पर दिल खोलकर ठहाका मारते हैं। किसी खास प्रसंग पर खुश होकर जोरदार तालियां पीटते हैं। वक्ता गंभीर होकर बोलता है तो श्रोता भी गंभीर होकर सुनते हैं। दरअसल, भारी भीड़ श्रोता और वक्ता को पारस्परिक रूप से प्रभावित करते हैं। वक्ता भारी भीड़ को आसानी से प्रतिक्रिया जाहिर करने को बाध्य कर सकता है और भीड़ अपनी प्रतिक्रिया से वक्ता को प्रोत्साहित करती है।


सफल वक्ता जानता है कि कम संख्या के श्रोताओं को कैसे अपने निकट लाया जा सकता है कि तादात्म्य स्थापित हो सके। हॉल में यदि भारी भीड़ हो तो एक दो मीटर की दूरी पर मंच से बोलना उचित है, किंतु कम संख्या के श्रोताओं से इतनी दूरी श्रोता और वक्ता के बीच आवश्यक सौहार्द के लिए घातक है। यह दूरी श्रोताओं को वक्ता से अधिक दूर ले जाती है। वक्ता को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जाये तो वह आयोजकों को हिदायत दे कि हॉल में प्रकाश व वायु की सुव्यवस्था बहुत जरूरी है। विशेषकर वायु अबाधित रूप से हॉल में प्रवाहित होनी चाहिए। भाषण का श्रोताओं पर अपेक्षित प्रभाव पड़े इसके लिए हॉल का वातावरण सफोकेशन से मुक्त होना चाहिए। भाषण निर्विघ्न सुना जा सके, इसके लिए मंच पर सुव्यवस्था होनी आवश्यक


बद्री लाल गुर्जर

अध्यापक 

मगां रावि नगर (टोंक)

9414878233


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