दूसरों का आईना-रिश्तों में छिपे आत्म-दर्शन के सूत्र

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दूसरों का आईना-रिश्तों में छिपे आत्म-दर्शन के सूत्र

पारिवारिक रिश्तों का चित्र

पारिवारिक रिश्तों का चित्र


लेखक- बद्री लाल गुर्जर

प्रस्तावना

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अकेलेपन में वह अपनी सीमाओं, इच्छाओं और कमजोरियों को उतना स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता जितना कि रिश्तों में जीते हुए देखता है। रिश्ते ही वह आईना हैं जिनमें हमारी वास्तविक छवि दिखाई देती है। कोई हमें प्यार करता है कोई हमारी आलोचना करता है कोई हमें चुनौती देता है तो कोई हमें सहारा देता है इन सबके बीच हमारा व्यक्तित्व धीरे-धीरे सामने आता है।

दूसरों का आईना-आत्म-दर्शन और रिश्तेकेवल एक रूपक नहीं बल्कि आत्म-दर्शन की गहन प्रक्रिया है। जब हम दूसरों की नज़रों से खुद को देखने लगते हैं तब हमें अपनी आंतरिक सच्चाइयाँ समझ आने लगती हैं।

इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि रिश्तों के आईने में आत्म-दर्शन कैसे संभव है और इससे जीवन में क्या सुधार लाया जा सकता है।

1 रिश्ते- आत्म-दर्शन का पहला मंच-

मनुष्य जब जन्म लेता है तो वह सबसे पहले अपने परिवार से जुड़ता है। माँ-बाप के व्यवहार, उनकी बोली, उनके संस्कार ये सब बच्चे के लिए पहला आईना होते हैं।

  • यदि माता-पिता धैर्यवान हैं तो बच्चा भी धैर्य सीखता है।
  • यदि घर में क्रोध और असहिष्णुता का वातावरण है तो बच्चा भी वैसा ही व्यवहार अपनाता है।

यानी रिश्ते हमें शुरुआत से ही आत्म-दर्शन के अवसर देते हैं।

उदाहरण-
एक बच्चा जब गलती करता है और पिता गुस्सा करने की बजाय प्यार से समझाते हैं तो बच्चे को यह आईना मिलता है कि गलतियाँ भी सुधारी जा सकती हैं। वहीं यदि पिता अपमानित करते हैं तो बच्चा भीतर से भयभीत और असुरक्षित हो जाता है।

2 दूसरों के व्यवहार से मिलने वाला प्रतिबिंब-

हम अक्सर कहते हैं वह मुझे गुस्सा दिलाता है या उसका रवैया गलत है।
लेकिन सच यह है कि सामने वाला व्यक्ति केवल ट्रिगर करता है गुस्सा हमारे भीतर पहले से ही मौजूद होता है।

प्रतिबिंब सिद्धांत-

  • जो गुण या दोष हमें दूसरों में खटकते हैं वे अक्सर हमारे ही भीतर होते हैं।
  • यदि कोई हमें अहंकारी लगता है तो संभव है कि हममें भी अहंकार का अंश मौजूद हो।
  • यदि कोई हमें ईमानदार लगता है तो इसका अर्थ है कि हम भी ईमानदारी को महत्व देते हैं।

इस प्रकार दूसरों का व्यवहार हमारे अंदर छिपे गुण-दोषों का आईना बन जाता है।

3 परिवार सबसे बड़ा आईना-

परिवार वह जगह है जहाँ हमारे व्यक्तित्व की असली परीक्षा होती है।

  • पति-पत्नी का रिश्ता हमें धैर्य, सहनशीलता और समझौते का अभ्यास कराता है।
  • भाई-बहनों का रिश्ता प्रतिस्पर्धा और सहयोग दोनों को सामने लाता है।
  • बच्चों के साथ जुड़ाव हमें जिम्मेदारी और त्याग सिखाता है।

उदाहरण-
यदि पत्नी कहती है कि पति उसका ध्यान नहीं रखते, तो यह पति के लिए आत्म-दर्शन का अवसर है कि वे अपनी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की समीक्षा करें।

4 मित्रता और आत्म-दर्शन-

सच्चे मित्र जीवन का अमूल्य आईना होते हैं।

  • वे हमारी खूबियों की सराहना करते हैं लेकिन साथ ही हमारी गलतियों की ओर भी ध्यान दिलाते हैं।
  • मित्र की आलोचना हमें आत्म-सुधार का अवसर देती है।

सच्चा मित्र वही है जो हमारी पीठ पीछे भी सच बोल सके।

उदाहरण-
एक मित्र ने कहा तुम अक्सर लोगों की बात बीच में काट देते हो।
पहले यह सुनकर बुरा लगता है लेकिन यदि हम आत्म-दर्शन करें तो पता चलता है कि यह सच है और इसे बदलने की ज़रूरत है।

5 कार्यक्षेत्र-

कार्यक्षेत्र (ऑफिस, व्यापार, संस्थान) वह जगह है जहाँ रिश्तों की जटिलता और भी बढ़ जाती है।

  • बॉस का दबाव हमारी सहनशीलता को परखता है।
  • सहकर्मियों की प्रतिस्पर्धा हमारी ईमानदारी और नैतिकता का आईना होती है।
  • टीमवर्क हमें सहयोग और संवाद की कला सिखाता है।

उदाहरण
यदि कोई सहकर्मी हमारे काम का श्रेय ले लेता है तो यह हमें गुस्सा दिलाता है। यहाँ आत्म-दर्शन का अवसर है क्या हमें अपनी उपलब्धियों को सही ढंग से प्रस्तुत करने की कला नहीं आती?

6 रिश्तों में टकराव-

झगड़े और मतभेद केवल नकारात्मक नहीं होते वे आत्म-दर्शन के अवसर भी होते हैं।

  • हर विवाद यह पूछने का अवसर है मैं कहाँ गलत हो सकता हूँ?
  • रिश्तों का तनाव हमें संवाद, धैर्य और सहिष्णुता सिखाता है।

उदाहरण-
पति-पत्नी के बीच झगड़ा हुआ क्योंकि पत्नी को समय पर सहयोग नहीं मिला। आत्म-दर्शन करने पर पति समझते हैं कि उनका मोबाइल पर समय बिताना परिवार से दूरी बढ़ा रहा है।

7 दूसरों का आईना और आत्म-स्वीकृति

आत्म-दर्शन तभी सार्थक है जब हम अपनी गलतियों को स्वीकार करें।

  • यदि कोई हमें जिद्दी कहे तो हमें यह देखना चाहिए कि क्या इसमें सच्चाई है।
  • आत्म-स्वीकृति हमें विनम्र और सुधार की ओर प्रेरित करती है।

कहावत-
गलती स्वीकार करना, सुधार की पहली सीढ़ी है।

8 रिश्ते- नैतिक सुधार के साधन

रिश्तों से हम केवल भावनात्मक संतोष ही नहीं पाते बल्कि नैतिक शिक्षा भी मिलती है।

  • परिवार करुणा और दया सिखाता है।
  • मित्रता सहयोग और निष्ठा सिखाती है।
  • समाज ईमानदारी और जिम्मेदारी का बोध कराता है।

उदाहरण
यदि कोई मित्र आर्थिक संकट में है और हम मदद करते हैं तो यह हमारे भीतर की दया और करुणा को मजबूत करता है।

9 दूसरों का आईना और आध्यात्मिक दृष्टि

भारतीय दर्शन कहता है समस्त जगत् एक दर्पण है।

  • जब हम दूसरों को देखते हैं तो हम अपनी ही छवि का विस्तार देखते हैं।
  • गीता में भी कहा गया है कि सभी प्राणी परमात्मा के अंश हैं।

यह दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि दूसरों को देखकर हम अपने भीतर झाँक सकते हैं।

10 रिश्तों में आत्म-दर्शन के व्यावहारिक सूत्र

  1. सुनना सीखें- आलोचना को नकारें नहीं बल्कि समझें।
  2. भावनात्मक दूरी बनाएँ- हर टिप्पणी को व्यक्तिगत आघात न समझें।
  3. स्वयं से प्रश्न करें- मैं क्यों आहत हुआ?
  4. डायरी लिखें- रोज़ के अनुभव आत्म-दर्शन को गहरा करते हैं।
  5. ध्यान करें- रिश्तों की घटनाओं पर ध्यान करना आत्म-ज्ञान बढ़ाता है।
  6. सकारात्मक दृष्टि रखें- दूसरों की अच्छाई भी देखना सीखें।

11 रिश्तों का संतुलन और आत्म-विकास

  • रिश्तों को केवल अपेक्षाओं पर नहीं बल्कि समझ और आत्म-दर्शन पर आधारित करें।
  • दूसरों के आईने में अपने दोष और गुण दोनों को स्वीकार करें।
  • जब हम बदलते हैं तो रिश्ते अपने आप मधुर हो जाते हैं।

निष्कर्ष-

रिश्ते जीवन की सबसे बड़ी पाठशाला हैं।
दूसरों का आईना हमें हमारी छिपी कमज़ोरियाँ अनकही क्षमताएँ और व्यक्तित्व के अनजाने पहलू दिखाता है। यदि हम इसे आत्म-दर्शन का अवसर मानें तो न केवल हमारे रिश्ते मधुर होंगे बल्कि हमारा जीवन भी संतुलित और सफल होगा।





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