अन्तर्दर्शन और अस्तित्ववाद: क्या जीवन का कोई उद्देश्य है?

अन्य लेख पढें


अन्तर्दर्शन और अस्तित्ववाद-क्या जीवन का कोई उद्देश्य है?

जीवन के उद्देश्य व्यक्ति का चित्र



लेखक- बद्री लाल गुर्जर

1 प्रस्तावना-

मनुष्य का जीवन सदियों से एक रहस्य रहा है। हर संस्कृति और हर युग में यह प्रश्न उठता रहा है कि-क्या जीवन का कोई उद्देश्य है?
जब हम सुख और सफलता का अनुभव करते हैं तब भी यह प्रश्न उठता है; और जब दुःख या निराशा मिलती है, तब भी। इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए दो प्रमुख दार्शनिक दृष्टिकोण हमें मार्ग दिखाते हैं—

  1. अन्तर्दर्शन- स्वयं के भीतर झाँकने और आत्मा को पहचानने का प्रयास।
  2. अस्तित्ववाद- पश्चिमी दर्शन की धारा, जो कहती है कि जीवन का कोई पूर्व-निर्धारित उद्देश्य नहीं बल्कि मनुष्य स्वयं अपने चुनाव और कर्म से अर्थ गढ़ता है।

2 अन्तर्दर्शन- आत्मा की ओर यात्रा

अन्तर्दर्शन का शाब्दिक अर्थ

अन्तर्दर्शन का अर्थ है- भीतर देखना यह वह प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य बाहर की दुनिया को छोड़कर अपनी चेतना की गहराइयों में उतरता है।

भारतीय दर्शन में अन्तर्दर्शन

भारतीय परंपरा में अन्तर्दर्शन को आत्म-ज्ञान और मोक्ष की सीढ़ी माना गया है।

  • उपनिषद कहते हैं- आत्मानं विद्धि अर्थात् स्वयं को जानो।
  • गीता कहती है- उद्धरेदात्मनात्मानं यानी आत्मा को स्वयं ही ऊपर उठाना चाहिए।

अन्तर्दर्शन की आवश्यकता

  • स्वयं की कमजोरियों और शक्तियों को पहचानना।
  • मानसिक शांति और आत्मबल पाना।
  • जीवन के निर्णयों में स्पष्टता प्राप्त करना।

अन्तर्दर्शन की विधियाँ

  • ध्यान और मौन साधना।
  • डायरी या जर्नल लिखना।
  • आत्म-प्रश्न- मैं कौन हूँ? मेरा उद्देश्य क्या है?
  • भक्ति और साधना।

3 अस्तित्ववाद-जीवन का अर्थ स्वयं बनाना

अस्तित्ववाद की उत्पत्ति

अस्तित्ववाद 19वीं और 20वीं शताब्दी का प्रमुख दार्शनिक आंदोलन है।

  • कीर्केगार्ड ने इसे धार्मिक संदर्भ में विकसित किया।
  • सार्त्र ने कहा--मनुष्य स्वतंत्र होने के लिए अभिशप्त है।
  • कामू ने यानी निरर्थकता की अवधारणा दी।

अस्तित्ववाद का मूल विचार

  • पहले हम अस्तित्व में आते हैं फिर अपने चुनावों और कर्मों से अर्थ बनाते हैं।
  • जीवन का कोई सार्वभौमिक उद्देश्य नहीं है।
  • स्वतंत्रता और जिम्मेदारी जीवन का आधार हैं।

निरर्थकता

कामू कहते हैं कि जीवन निरर्थक है। लेकिन इस निरर्थकता को स्वीकार करके भी हम संघर्ष और सृजन से अर्थ बना सकते हैं।

4 अन्तर्दर्शन बनाम अस्तित्ववाद

पहलू अन्तर्दर्शन अस्तित्ववाद
उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार   मोक्ष स्वयं द्वारा निर्मित अर्थ
साधन ध्यान, साधना, धर्म स्वतंत्र चुनाव, जिम्मेदारी
दृष्टिकोण   सार्वभौमिक सत्य व्यक्तिगत सत्य
आधार आत्मा शाश्वत मनुष्य अस्थायी

दोनों की यात्रा अलग-अलग है लेकिन दोनों मिलकर एक संतुलित उत्तर देते हैं।

5 क्या जीवन का कोई सार्वभौमिक उद्देश्य है?

धार्मिक दृष्टिकोण

  • हिन्दू, बौद्ध, जैन दर्शन- जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष।
  • ईसाई और इस्लाम – ईश्वर की भक्ति और उनकी इच्छा की पूर्ति।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • विकासवाद के अनुसार जीवन केवल जैविक प्रक्रिया है।
  • जीवन का कोई पूर्व-निर्धारित उद्देश्य नहीं।

दार्शनिक दृष्टिकोण

  • कुछ कहते हैं कि जीवन का कोई उद्देश्य नहीं।
  • कुछ कहते हैं कि उद्देश्य हमें स्वयं गढ़ना होता है।

6 जीवन के उद्देश्य की व्यक्तिगत खोज

अन्तर्दर्शन से

  • आत्म-ज्ञान प्राप्त करना।
  • अपने मूल्यों और आंतरिक आवाज़ को पहचानना।

अस्तित्ववाद से

  • स्वतंत्र चुनाव करना।
  • जिम्मेदारी स्वीकारना।
  • निरर्थकता से भी अर्थ गढ़ना।

संतुलित दृष्टि

जीवन का उद्देश्य खोजा भी जाता है (अन्तर्दर्शन) और बनाया भी जाता है (अस्तित्ववाद)।

7 जीवन से जुड़े उदाहरण और प्रेरणाएँ

महात्मा गांधी

  • दक्षिण अफ्रीका में अन्याय देखकर आत्मचिंतन किया।
  • सत्य और अहिंसा को जीवन का उद्देश्य बनाया।
  • इस व्यक्तिगत उद्देश्य ने पूरे राष्ट्र को प्रभावित किया।

अल्बर्ट कामू

  • जीवन की निरर्थकता स्वीकार की।
  • संघर्ष को ही जीवन का अर्थ बताया।

सामान्य जीवन

  • किसान- परिवार का पालन-पोषण ही उद्देश्य।
  • शिक्षक- शिक्षा देना ही उद्देश्य।
  • लेखक- विचारों का प्रसार ही उद्देश्य।

8 व्यक्तिगत जीवन में अन्तर्दर्शन और अस्तित्ववाद का प्रयोग

  1. आत्म-चिंतन की आदत- रोज़ 10 मिनट स्वयं से संवाद।
  2. निर्णय लेने की क्षमता- डर से मुक्त होकर चुनाव करना।
  3. निरर्थकता से संवाद- खालीपन को अवसर में बदलना।
  4. साझा उद्देश्य-  केवल व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक योगदान भी।

9 आधुनिक समाज और शिक्षा में इनकी प्रासंगिकता

समाज में

  • तनाव और भ्रम के बीच आत्मचिंतन आवश्यक है।
  • अस्तित्ववाद युवा पीढ़ी को स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का संतुलन सिखाता है।

शिक्षा में

  • केवल ज्ञान नहीं आत्म-ज्ञान भी आवश्यक।
  • छात्रों को निर्णय लेने की क्षमता और जीवन-दर्शन से परिचित कराना।
  • Value Education में अन्तर्दर्शन और अस्तित्ववाद का समावेश।

10 निष्कर्ष

जीवन का उद्देश्य कोई तैयार वस्तु नहीं है।

  • अन्तर्दर्शन कहता है- उद्देश्य भीतर छिपा है।
  • अस्तित्ववाद कहता है- उद्देश्य हमें स्वयं बनाना है।

दोनों मिलकर हमें यह संदेश देते हैं-
जीवन का अर्थ खोजा भी जाता है और बनाया भी जाता है।

यही जीवन की सबसे बड़ी सुंदरता है कि यह हमें निरंतर खोजने बनाने और जीने का अवसर देता है।




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

दैनिक आदतों की समीक्षा- आत्म-विकास की ओर एक सार्थक कदम