18 अग॰ 2025

आत्मा की पुकार- जब सब कुछ होते हुए भी भीतर खालीपन हो



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आत्मा की पुकार- जब सब कुछ होते हुए भी भीतर खालीपन हो

आत्मा की पुकार

आत्मा की पुकार

लेखक- बद्री लाल गुर्जर



मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि वह बाहर की दुनिया में सब कुछ पा लेने के बाद भी अपने भीतर अधूरा, खाली और असंतुष्ट महसूस करता है। आधुनिक समय में यह स्थिति और भी अधिक दिखाई देती है। भौतिक सुख-सुविधाएँ, अच्छी नौकरी, सम्मान, परिवार और रिश्ते सब कुछ होते हुए भी मनुष्य अक्सर रात के सन्नाटे में अकेला और रिक्त अनुभव करता है। यही स्थिति आत्मा की पुकार है। यह संकेत है कि हमारे भीतर कुछ ऐसा है जो केवल बाहरी उपलब्धियों से तृप्त नहीं होता बल्कि वह गहरी आत्मीयता, अर्थपूर्णता और सत्य की खोज करता है।

 खालीपन का अनुभव- क्यों होता है ऐसा?

खालीपन का अनुभव कई बार अचानक होता है। एक ओर व्यक्ति बाहर से हँसता-बोलता है, सफलता का आनंद लेता है परंतु भीतर से उसे लगता है जैसे वह किसी खोखले खोल में जी रहा है।

  • यह स्थिति तब आती है जब हम जीवन को केवल बाहरी उपलब्धियों तक सीमित कर देते हैं।
  • आत्मा की वास्तविक आवश्यकताओं- शांति, प्रेम, सत्य और आत्मिक संतोष की उपेक्षा करते हैं।
  • दूसरों की नज़रों में सफल बनने की दौड़ में स्वयं को भूल जाते हैं।

यह खालीपन दरअसल आत्मा की पुकार है जो हमें भीतर झाँकने और अपने असली स्वरूप से जुड़ने के लिए कहती है।

बाहरी सफलता और आंतरिक अधूरापन

आज का समाज हमें लगातार यह सिखाता है कि सफलता का मापदंड धन, पद और लोकप्रियता है। हम दौड़ते रहते हैं नौकरी में ऊँचे पद के लिए, नए घर या कार के लिए और सोशल मीडिया पर अधिक लाइक्स पाने के लिए। लेकिन जब ये सब मिल भी जाते हैं तो भी दिल में एक टीस रह जाती है। क्यों?
क्योंकि आत्मा की तृप्ति का स्रोत बाहर नहीं भीतर है। बाहर का वैभव आत्मा की भूख को शांत नहीं कर सकता। आत्मा प्रेम, सत्य, आत्मीयता और अर्थपूर्ण जीवन की खोज करती है।

खालीपन का मनोवैज्ञानिक पक्ष

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह स्थिति एग्ज़िस्टेंशियल क्राइसिस कहलाती है अर्थात् अस्तित्वगत संकट। यह तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछता है-

  • मैं कौन हूँ?
  • मैं क्यों हूँ?
  • मेरी उपलब्धियों का असली अर्थ क्या है?
  • क्या जीवन केवल भोगने और दौड़ने के लिए है?

इन प्रश्नों के उत्तर न मिलने पर भीतर खालीपन गहराता है। यह आत्मा की पुकार है कि हमें सतही जीवन से आगे बढ़कर गहरे अर्थों की तलाश करनी चाहिए।

आत्मा की पुकार- संकेत और लक्षण

आत्मा जब हमें पुकारती है तो वह सीधे शब्दों में नहीं बोलती। वह भावनाओं और अनुभूतियों के माध्यम से संकेत देती है-

अकारण बेचैनी- सब कुछ होते हुए भी मन असंतुष्ट रहता है।अकेलेपन की अनुभूति- भीड़ में रहकर भी अकेलापन महसूस होता है।

जीवन में उद्देश्यहीनता- उपलब्धियाँ भी अर्थहीन लगने लगती हैं।आत्मचिंतन की चाह- भीतर से कुछ नया जानने की प्यास जागती है।

शांति की खोज- बाहरी शोर से हटकर मौन में समय बिताने की इच्छा होती है।

दार्शनिक दृष्टिकोण

भारतीय दर्शन कहता है कि आत्मा अनादि और अविनाशी है। वह परमात्मा का अंश है और उससे मिलन के लिए ही पुकारती रहती है। उपनिषदों में कहा गया है आत्मा ही ब्रह्म है। इसका अर्थ है कि हमारे भीतर जो शुद्ध, निर्मल चेतना है वही ईश्वर का अंश है। जब हम बाहरी दुनिया में खोकर इसे भूल जाते हैं तब आत्मा हमें पुकारती है और खालीपन के माध्यम से हमें भीतर लौटने के लिए प्रेरित करती है।

वास्तविक जीवन के उदाहरण

धनवान व्यक्ति- कई करोड़पतियों ने स्वीकार किया है कि उनके पास सब कुछ है लेकिन मन में शांति नहीं है।

कलाकार और फिल्मी सितारे- लोकप्रियता की ऊँचाइयों पर पहुँचकर भी कई लोग अवसाद में डूब जाते हैं।

साधारण इंसान- यहाँ तक कि सामान्य परिवारों में भी लोग यह अनुभव करते हैं कि जिम्मेदारियों और रिश्तों के बावजूद भीतर कहीं अधूरापन है।

इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि आत्मा की पुकार केवल अमीर या गरीब से जुड़ी नहीं है; यह हर इंसान में मौजूद है।

खालीपन को भरने के उपाय

आत्मा की पुकार को अनसुना नहीं करना चाहिए। इसके लिए कुछ कदम उठाने आवश्यक हैं:

आत्मचिंतन

हर दिन कुछ समय अपने भीतर झाँकें। स्वयं से प्रश्न करें क्या मैं वही कर रहा हूँ जो मेरी आत्मा चाहती है, या केवल समाज की अपेक्षाओं को पूरा कर रहा हूँ?

ध्यान और मौन

ध्यान आत्मा से जुड़ने का सबसे सरल मार्ग है। मौन में बैठने से भीतर की आवाज़ सुनाई देती है।

सार्थक रिश्ते

सतही संबंधों की बजाय आत्मीय संबंध बनाना जरूरी है। आत्मा प्रेम और सच्चाई से ही तृप्त होती है।

सेवा और करुणा

दूसरों के लिए कुछ करने से आत्मा में संतोष जागता है। करुणा और सेवा आंतरिक रिक्तता को भर देती है।

आध्यात्मिक साधना

पढ़ना, प्रार्थना करना, उपासना करना ये सब आत्मा को उसकी जड़ों से जोड़ते हैं।

आत्मा की पुकार और अंतर्दर्शन

आत्मा की पुकार वास्तव में अंतर्दर्शन की शुरुआत है। यह हमें बताती है कि हमें अपनी प्राथमिकताओं को फिर से देखना चाहिए। केवल बाहर की उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि भीतर की शांति और संतोष ही जीवन का वास्तविक धन है।

आधुनिक युग की चुनौती

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में यह पुकार सुन पाना कठिन है क्योंकि हम शोर-शराबे में जीते हैं। लेकिन जितना हम इस पुकार को अनदेखा करेंगे, उतना ही खालीपन बढ़ेगा। आधुनिक युग की सबसे बड़ी आवश्यकता यही है कि हम संतुलन सीखें बाहरी उपलब्धियाँ भी और भीतर की शांति भी।

निष्कर्ष

जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह नहीं कि हमारे पास कितना धन, पद या सम्मान है बल्कि यह है कि हमारे भीतर कितनी शांति, प्रेम और संतोष है। आत्मा की पुकार हमें यही याद दिलाती है कि जीवन केवल बाहरी चमक-दमक नहीं है। जब सब कुछ होने पर भी भीतर खालीपन महसूस हो तो समझ लेना चाहिए कि आत्मा हमें पुकार रही है। उसका संदेश है अपने भीतर लौटो अपने असली स्वरूप को पहचानो और उस जीवन को जियो जो आत्मा की तृप्ति दे सके।