5 जुल॰ 2025

मनुष्य के जीवन में सफलता क्या है?

 

मनुष्य के जीवन में सफलता क्या है?
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
मानव जीवन में बाह्य सफलता बनाम आंतरिक संतोष- समाज और आत्मा की दृष्टि से
1 मनुष्य के जीवन में सफलता क्यों ज़रूरी है?
मनुष्य के जीवन में सफलता- एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही हमारी आंखों के सामने कुछ विशेष छवियाँ उभरती हैं। जैसे- किसी ऊँचे पद पर बैठा व्यक्ति।
धन-संपत्ति से सम्पन्न व्यक्ति।
प्रसिद्ध कलाकार या भीड़ में सराहे जा रहे नेता।
किंतु क्या यही सफलता है?
क्या बाह्य उपलब्धियाँ ही जीवन की पूर्णता का प्रमाण हैं?
क्या हर प्रसिद्ध व्यक्ति अंदर से संतुष्ट और शांत होता है?
और क्या हर शांत व आत्म-संतुष्ट व्यक्ति दुनिया में जाना जाता है?
इन प्रश्नों पर गंभीर चिंतन करने पर हम पाते हैं कि सफलता केवल मनुष्य के जीवन में बाह्य उपलब्धियों तक सीमित नहीं है बल्कि इसका एक गहरा आंतरिक पक्ष भी है। जो आत्मा, विचार, भावना और संतोष से जुड़ा है। 2 मानव जीवन में सफलता की पारंपरिक परिभाषा-


i धन-संपत्ति की प्रचुरता-
जिसके पास बड़ा घर, महंगी गाड़ियाँ, विदेशी यात्राएँ, बैंक बैलेंस हो वह सफल समझा जाता है।
ii उच्च पद और प्रतिष्ठा-
अधिकारी, नेता, अभिनेता, उद्योगपति जो भी समाज में ऊँचे स्थान पर हो वह प्रशंसा का पात्र बनता है।
iii लोकप्रियता और प्रसिद्धि-
सोशल मीडिया फॉलोअर्स, टी.वी. पर उपस्थिति, अखबारों में नाम यह सब सफलता के प्रमाण माने जाते हैं।
इस दृष्टिकोण से सफलता है- दूसरों की दृष्टि में बड़ा और प्रभावशाली बनना।
परंतु इसमें एक गहरी समस्या है यह सफलता बाहर से दिखती है पर क्या भीतर से भी वैसी ही होती है?
3 बाह्य सफलता की सीमाएँ और समस्याएँ-
i क्षणिक और अस्थिर-
बाह्य सफलता की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह अस्थायी होती है। कोई भी पद हमेशा नहीं रहता। धन आज है कल नहीं।
प्रसिद्धि हवा के झोंके की तरह आती-जाती रहती है।
ii तुलना और प्रतिस्पर्धा की आग-
बाह्य सफलता हमेशा तुलना पर आधारित होती है-
वह मुझसे आगे क्यों हैं?
मैं नंबर एक कैसे बनूं?
इस तुलना और प्रतिस्पर्धा में व्यक्ति अपने मूल उद्देश्य को भूलकर केवल दूसरों से आगे निकलने की दौड़ में लग जाता है जिससे तनाव चिंता और अशांति बढ़ती है।
iii आंतरिक शून्यता-
कई बार व्यक्ति बाहर से अत्यंत सफल दिखता है लेकिन भीतर से वह खोखला होता है। उसे न परिवार में सुख मिलता है न मन में शांति। आत्महत्या करने वाले सेलिब्रिटी या करोड़पति यही दिखाते हैं कि केवल पैसा या प्रसिद्धि सफलता का पर्याय नहीं है।
कुछ लोग सफलता के चरम पर होते हुए भी मानसिक बीमारियों से ग्रसित रहते हैं।
4 मनुष्य के जीवन में आंतरिक संतोष-
i आत्म-संतोष क्या है?
आत्म-संतोष का अर्थ है भीतर से प्रसन्न, शांत और पूर्ण अनुभव करना।
यह स्थिति तब आती है जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों का सही तरीके से पालन करता है।
स्वविवेक से निर्णय लेता है।
अपने मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता नहीं करता।
ii आत्मिक सफलता के लक्षण-
मन में शांति और स्थिरता।
जीवन में उद्देश्य की स्पष्टता।
निर्णयों में आत्म-विश्वास।
परोपकार और सेवा का भाव।
बुरे समय में भी धैर्य और आशा।
iii आत्म-संतोष की शक्ति-
ऐसे व्यक्ति को भले ही समाज बड़ा आदमी न माने लेकिन वह खुद के सामने शर्मिंदा नहीं होता। यही आत्म-सम्मान व सच्ची सफलता है।
5 मनुष्य की आत्मा और सफलता का सम्बन्ध-
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में सफलता का मापदंड आत्मा की संतुष्टि रहा है न कि बाहरी उपलब्धियाँ।
भगवद्गीता कहती है- योग: कर्मसु कौशलम्  योग अर्थात सफलता है व कर्म में कुशलता है।
उपनिषद् आत्मज्ञान को सबसे बड़ी सफलता मानते हैं।
संत कबीर दास कहते हैं-
साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय,
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए।
इन सबमें सफलता का अर्थ है- संतुलन, आत्मा की शांति और दूसरों के लिए उपयोगी बनना।
6 समाज की दृष्टि से सफलता की परिभाषा-
समाज को भी यह समझने की आवश्यकता है कि—
जो इंसान दूसरों की भलाई के लिए जीता है वह सफल है।
जो अपने परिवार को समय देता है, बच्चों को संस्कार देता है, वह सफल है।
जो अपने देश, प्रकृति और संस्कृति के प्रति जिम्मेदार है, वह सच्चा सफल व्यक्ति है।
i शिक्षक, किसान, सैनिक – सच्चे सफल लोग एक शिक्षक जो समाज को शिक्षित कर रहा है, एक किसान जो दुनिया को भोजन दे रहा है, एक सैनिक जो देश की रक्षा कर रहा है।
इनकी सफलता बाह्य नहीं परंतु गहन और अमूल्य है।
7 संतुलन: बाह्य और आंतरिक सफलता का समन्वय-
यह कहना भी पूर्ण सत्य नहीं होगा कि धन, पद, प्रसिद्धि का कोई महत्त्व नहीं। ये जीवन को सरल और प्रभावी बना सकते हैं पर केवल तभी जब वे नैतिकता, सेवा और आत्मिक विकास के साथ हों।
कैसे लाएं संतुलन?
बाहरी लक्ष्य रखें लेकिन आत्मा के सिद्धांतों से समझौता न करें।
कार्य में लगन रखें पर स्वयं को न खोएं।
दूसरों की प्रशंसा से खुश हों लेकिन अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सर्वोपरि रखें।
8 आत्म-साक्षात्कार-
जीवन की सर्वोच्च सफलता मनुष्य के जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल धन कमाना या समाज में नाम कमाना नहीं बल्कि आत्मा को पहचानना है। यही कारण है कि भारतीय जीवन-दर्शन में मुक्ति, निर्वाण, परम शांति को जीवन की पराकाष्ठा माना गया है।
सफल व्यक्ति कौन?
जिस व्यक्ति ने अपने स्वभाव को जानाहै।
जिस व्यक्ति ने अपने अहं को त्यागा है।
जो व्यक्तिगत प्रेम और करुणा से भरा है।
जिस व्यक्ति ने अपनी आत्मा की पहचान कर ली है।
9 प्रेरणादायक उदाहरण-

i संत विनोबा भावे-

साधारण जीवन कोई बड़ी दौलत नहीं पर लाखों लोगों की आत्मा को जगाया। उनका आंतरिक संतोष ही उनकी सबसे बड़ी सफलता थी।ii महात्मा गांधी-

न पद, न शक्ति, पर पूरी दुनिया उन्हें आज भी महात्मा कहती है। क्यों? क्योंकि वे बाहर से नहीं भीतर से सफल थे।

iii रबीन्द्रनाथ ठाकुर-
गहरी आत्मिक दृष्टि, साहित्य और संगीत का समर्पण वह आंतरिक सफलता थी जिसने उन्हें विश्वकवि बनाया।
10 निष्कर्ष: सफलता का सही अर्थ-
सफलता केवल बाह्य उपलब्धियों का नाम नहीं बल्कि आत्मा की संतुष्टि और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का सामंजस्य है।
जो मनुष्य अपने जीवन को ईमानदारी, सेवा, आत्मज्ञान और परिश्रम के माध्यम से जीता है वही सच्चा सफल व्यक्ति है। बाह्य सफलता प्रशंसा दिलाती है, लेकिन आंतरिक सफलता आत्मा को प्रसन्न करती है और वही तो जीवन का अंतिम उद्देश्य है।
अतः सफल वही है- जो शांत है, संतुष्ट है, सरल है और दूसरों के लिए प्रेरणा है।
बाहरी सफलता से लोग आपके बारे में जानते हैं।
आंतरिक सफलता से आप स्वयं को जान पाते हैं।
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
ब्लॉगर- http://badrilal995.blogspot.com
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