मनुष्य में अहंकार क्या है एवं इससे छुटकारा कैसे पाएं?
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
मनुष्य एक अद्भुत जीव है जिसे बुद्धि, विवेक और आत्मचिंतन का वरदान मिला है। लेकिन उसी मनुष्य के भीतर एक ऐसा भाव भी जन्म ले लेता है जो न केवल उसकी आध्यात्मिक यात्रा में बाधक बनता है अपितु सामाजिक जीवन को भी जटिल बना देता है—
यह भाव है “अहंकार”। अहंकार वह अदृश्य जाल है जो मन को बाँध लेता है संबंधों को तोड़ देता है और आत्मा की शांति को छीन लेता है। यह लेख इस विषय पर गहन चर्चा करेगा कि मनुष्य में अहंकार क्या है, वह कैसे उत्पन्न होता है, उसके दुष्परिणाम क्या हैं और कैसे इससे छुटकारा पाकर जीवन को सहज, सरल व सुखद बनाया जा सकता है।
1 अहंकार की परिभाषा और स्वरूप-
अहंकार का शाब्दिक अर्थ है — 'अहं' (मैं) की धारणा का गर्वपूर्ण भाव। यह एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ, विशेष या अपरिहार्य मानता है। यह स्व-अस्तित्व की एक विकृत भावना है, जो व्यक्ति को अपने ही संकीर्ण दायरे में सीमित कर देती है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण-
अहंकार आत्मा से जुड़ने की सबसे बड़ी बाधा है। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है —
"अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।"
अहंकार को उन्होंने मोह, क्रोध, कामना की तरह ही आत्मविकास का शत्रु बताया।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण-
मनोवैज्ञानिक इसे "Inflated self-image" कहते हैं जो आत्मसम्मान और आत्मकेन्द्रितता के बीच की रेखा को मिटा देता है।
2 अहंकार कैसे उत्पन्न होता है?
अहंकार अचानक उत्पन्न नहीं होता। यह धीरे-धीरे व्यक्ति के अनुभवों, उपलब्धियों और वातावरण के माध्यम से पनपता है।
1 उपलब्धियों का अत्यधिक गर्व-
जब व्यक्ति अपने ज्ञान, धन, रूप, पद या यश पर अत्यधिक गर्व करता है तो वह दूसरों को तुच्छ समझने लगता है।
2 तुलना और प्रतिस्पर्धा-
जब मनुष्य लगातार दूसरों से तुलना करता है और हर समय श्रेष्ठ बनने की होड़ में रहता है, तो वह अपने अंदर एक झूठा आत्मगौरव पैदा कर लेता है।
3 प्रशंसा की आदत-
जब बार-बार प्रशंसा मिलती है, तो व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा अधिक महत्व देने लगता है, जिससे "मैं श्रेष्ठ हूँ" का भाव स्थायी हो जाता है।
4 असुरक्षा और भय-
कई बार अहंकार असुरक्षा की उपज होता है। व्यक्ति आंतरिक भय को छिपाने के लिए एक ‘मजबूत’ छवि प्रस्तुत करता है — यह भी अहंकार है।
3 अहंकार के प्रकार-
ज्ञान का अहंकार – “मुझे सब पता है”
धन का अहंकार – “मेरे पास सब कुछ है”
रूप/सौंदर्य का अहंकार – “मैं सबसे सुंदर हूँ”
पद या सत्ता का अहंकार – “मेरी बात अंतिम है”
भक्ति या धार्मिकता का अहंकार – “मैं सबसे बड़ा भक्त हूँ”
4 अहंकार के दुष्परिणाम-
संबंधों में टूटन-
अहंकारी व्यक्ति रिश्तों में सामंजस्य नहीं रख पाता। वह दूसरों को नीचा दिखाने में आनंद लेता है, जिससे रिश्तों में खटास आ जाती है।
मानसिक अशांति-
अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति हर समय अपनी प्रतिष्ठा और छवि की चिंता करता है। इससे वह कभी भीतर से शांति का अनुभव नहीं कर पाता।
सीखने की क्षमता में गिरावट-
अहंकारी व्यक्ति किसी की सलाह नहीं सुनता। वह समझता है कि उसे सब आता है, जिससे उसका विकास रुक जाता है।
आध्यात्मिक पतन-
अहंकार आत्मा की चेतना को ढँक देता है। यह ईश्वर से दूरी का प्रमुख कारण है।
5 अहंकार से छुटकारा क्यों आवश्यक है?
अहंकार से मुक्त होना आत्मा के सच्चे स्वरूप को पहचानने की दिशा में पहला कदम है। यह न केवल व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि समाजिक सौहार्द, मानसिक स्वास्थ्य, और व्यक्तिगत शांति के लिए भी अत्यावश्यक है।
"जहाँ 'मैं' समाप्त होता है, वहीं से 'ईश्वर' की अनुभूति शुरू होती है।"
6 अहंकार से छुटकारा पाने के उपाय-
1 आत्मनिरीक्षण (Self-Reflection)-
प्रत्येक दिन स्वयं से प्रश्न करें —
क्या मेरी किसी बात से किसी को चोट पहुँची?
क्या मैं किसी को तुच्छ मानता हूँ?
यह आत्मचिंतन अहंकार को कमजोर करता है।
2 सेवा का मार्ग अपनाएं-
निःस्वार्थ सेवा— जैसे वृद्धों की सेवा, समाजसेवा, गौसेवा, गरीबों की मदद— यह अहं को गलाने का रामबाण उपाय है।
3 ध्यान और प्रार्थना-
ध्यान करने से व्यक्ति अपने भीतर उतरता है और ‘मैं’ का बोध धीरे-धीरे विलीन होता है। प्रार्थना से नम्रता आती है।
4 आलोचना को स्वीकार करना सीखें-
जब कोई आपकी गलती बताए, तो गुस्सा नहीं करें। उसे सुनें और सुधारें। यह विनम्रता अहंकार को तोड़ती है।
5 प्रकृति के सामने झुकिए-
सूर्य, चाँद, समुद्र, पर्वत, पेड़— इनकी विशालता के सामने स्वयं को छोटा अनुभव करें। यह भाव स्वयं को समझने में मदद करेगा।
6 क्षमाशील बनें-
दूसरों को क्षमा करना और स्वयं से भी क्षमा मांगना अहंकार को कम करता है।
7 आध्यात्मिक साहित्य का अध्ययन करें-
श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, उपनिषद, संत कबीर, तुलसीदास, रविदास, ओशो, रामकृष्ण परमहंस आदि के विचारों का अध्ययन करें।
7 अहंकार और आत्मसम्मान में अंतर-
बिंदु अहंकार आत्मसम्मान
प्रकृति नकारात्मक सकारात्मक
भाव मैं श्रेष्ठ हूँ मैं आत्ममूल्यवान हूँ
परिणाम अलगाव, टकराव शांति, संतुलन
लक्ष्य दूसरों को नीचा दिखाना खुद को स्वीकारना
आत्मसम्मान आवश्यक है पर जब वह दूसरों को नीचा दिखाने लगे तो वह अहंकार बन जाता है।
8 अहंकारमुक्त जीवन के लाभ-
सहज संबंध-
जहाँ अहंकार नहीं होता, वहाँ प्रेम, विश्वास और सहयोग स्वतः पनपते हैं।
आंतरिक शांति-
अहंकार का त्याग मन में सच्ची शांति लाता है, जिससे चिंता, क्रोध, जलन समाप्त होती है।
वास्तविक आत्मविकास-
जब हम “मुझे सब आता है” की जगह “मुझे सीखना है” का भाव अपनाते हैं, तो जीवन की वास्तविक उन्नति होती है।
आध्यात्मिक प्रगति-
ईश्वर उन्हीं के निकट आता है, जिनमें नम्रता, करुणा और अहंकारहीनता होती है।
निष्कर्ष-
अहंकार मनुष्य के विकास का सबसे बड़ा शत्रु है। यह न केवल आत्मा से बल्कि समाज और अपनों से भी दूर कर देता है। इसका त्याग करके हम सहज, सरल और सच्चे जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं। जिस दिन हम 'मैं' से 'हम' की यात्रा पर निकल पड़ते हैं, उसी दिन जीवन की सबसे बड़ी विजय होती है।
"अहंकार त्यागकर जो विनम्रता धारण करता है, वही सच्चे अर्थों में महान बनता है।"
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
ब्लॉगर- https://badrilal995.blogspot.com
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