अंतर्दर्शन- आत्मा की ओर लौटने की एक यात्रा
जब मनुष्य जीवन की व्यस्तताओं से थक कर सामाजिक संघर्षों से जूझ कर और संसार की चकाचौंध से ऊब कर अपने भीतर झाँकता है तो वह जिस अनुभव से गुजरता है उसे ही अंतर्दर्शन कहते हैं। यह कोई धार्मिक या दार्शनिक जटिलता नहीं बल्कि आत्मा और मन के बीच एक सजीव संवाद है। अंतर्दर्शन न केवल आत्मनिरीक्षण की प्रक्रिया है बल्कि आत्म-विकास, मानसिक शुद्धि और आत्म-ज्ञान का अमूल्य साधन भी है।
अंतर्दर्शन का अर्थ-
अंतर्दर्शन- शब्द संस्कृत के दो शब्दों – अंतर (भीतर) और दर्शन (देखना) – से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है – भीतर झाँकना या स्वयं के अंदर देखना। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है जहाँ मनुष्य अपने विचारों, भावनाओं, व्यवहारों और निर्णयों का निष्पक्ष अवलोकन करता है। यह आत्मा का आईना है जिसमें मनुष्य स्वयं को पहचानने की कोशिश करता है– जैसे वह वास्तव में है।
अंतर्दर्शन क्यों आवश्यक है?
वर्तमान समय में जीवन की गति इतनी तेज़ हो गई है कि मनुष्य दूसरों को तो समझने का प्रयास करता है परंतु स्वयं को जानने की ओर ध्यान ही नहीं देता। बाहरी दुनिया की चकाचौंध में वह अपने वास्तविक स्वरूप से दूर होता जाता है। ऐसे में अंतर्दर्शन वह साधन है जो मनुष्य को स्वयं से पुनः जोड़ता है उसकी आंतरिक चेतना को जगाता है और उसे आत्म-शांति की ओर ले जाता है।
अंतर्दर्शन के प्रमुख लाभ-
1 आत्म-ज्ञान की प्राप्ति -
जब व्यक्ति अपने विचारों व व्यवहार की गहराई से समीक्षा करता है, तब वह यह समझ पाता है कि वह वास्तव में कैसा है और उसमें क्या-क्या सुधार की आवश्यकता है।
2 मानसिक शांति -
अंतर्दर्शन से मनुष्य को अपने अंदर की हलचल का बोध होता है जिससे मन की अशांति समाप्त होती है और एक प्रकार की आंतरिक स्थिरता प्राप्त होती है।
3 निर्णय क्षमता में सुधार-
अपने पूर्व निर्णयों की समीक्षा करने से व्यक्ति भविष्य में अधिक विवेकपूर्ण और उचित निर्णय लेने में सक्षम होता है।
4 नैतिक मूल्य जाग्रत होते हैं-
जब व्यक्ति अपने कर्मों पर विचार करता है तो वह नैतिकता, ईमानदारी, करुणा और सत्य जैसे मूल्यों की ओर आकर्षित होता है।
5 आत्म-सुधार का मार्ग-
अंतर्दर्शन से ही आत्मालोचना संभव है और आत्मालोचना से आत्म-सुधार। यह आत्म-विकास की कुंजी है।
अंतर्दर्शन की प्रक्रिया-
अंतर्दर्शन कोई जटिल साधना नहीं यह एक सरल लेकिन नियमित अभ्यास है। इसके लिए व्यक्ति को रोज़ कुछ समय स्वयं के साथ एकांत में बिताना चाहिए।
कुछ आवश्यक उपाय-
मौन में बैठना: कुछ समय शांति से बैठें और विचारों के प्रवाह को देखें।
डायरी लेखन- दिनभर की गतिविधियों का विश्लेषण लिखें-
क्या अच्छा किया?
क्या सुधार कर सकते थे।
अपने व्यवहार को प्रश्नों से परखना-
मैंने ऐसा क्यों किया?
क्या मेरा यह निर्णय सही था?
क्या इससे किसी को दुःख पहुँचा?
ध्यान व योग का अभ्यास- यह चित्त को स्थिर करता है और आत्मदृष्टि को गहरा बनाता है।
भारतीय चिंतन में अंतर्दर्शन-
भारतीय दर्शन और योग परंपरा में अंतर्दर्शन को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उपनिषदों में कहा गया है-
आत्मानं विद्धि– स्वयं को जानो।
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मनिरीक्षण और अंतर्मन से संवाद की प्रेरणा देते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने भी कहा-
बाहर की दुनिया को जीतने से पहले अपने भीतर की कमजोरियों को पहचानो और उन्हें जीतो।
महात्मा गांधी प्रतिदिन रात को यह विचार करते थे कि -
क्या मैं आज अपने सिद्धांतों पर खरा उतरा?"
छात्र जीवन में अंतर्दर्शन का महत्व-
छात्र जीवन में अंतर्दर्शन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल पढ़ाई में सहायता करता है बल्कि व्यक्तित्व निर्माण और जीवन के लक्ष्य निर्धारण में भी सहायक होता है।
एक छात्र यदि प्रतिदिन अंतर्दृष्टि से अपने दिन की समीक्षा करे तो वह न केवल अपनी कमजोरियों को दूर कर सकता है बल्कि अपने आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्मविवेक को भी बढ़ा सकता है।
अंतर्दर्शन से छात्र केवल परीक्षाओं के लिए नहीं बल्कि जीवन के लिए भी तैयार होता है।
आज की दुनिया और अंतर्दर्शन-
आज की डिजिटल दुनिया में व्यक्ति जितना दूसरों के जीवन में झाँक रहा है उतना ही अपने भीतर से दूर होता जा रहा है। सोशल मीडिया, बाहरी दिखावा और तात्कालिक सुख की खोज में आत्मचिंतन की आदत लुप्त होती जा रही है। ऐसे समय में अंतर्दर्शन एक मानसिक औषधि के रूप में कार्य करता है, जो हमें स्थिरता, संतुलन और सही दिशा प्रदान करता है।
निष्कर्ष-
अंतर्दर्शन आत्मा का आईना है, जिसमें झाँककर मनुष्य स्वयं को पहचान सकता है। यह आत्म-ज्ञान, आत्म-विकास और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में पहला कदम है।
- जो व्यक्ति स्वयं से प्रश्न करता है। वही सच्चे उत्तर खोजता है। और जो अपने भीतर की यात्रा शुरू करता है। वही जीवन के वास्तविक अर्थ को समझ पाता है।
- बाहरी संसार को जानना विज्ञान है, लेकिन अपने भीतर को जानना आत्मज्ञान है। अंतर्दर्शन इसी आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी है।
अंतर्दर्शन केवल एक अभ्यास नहीं बल्कि जीवन का दृष्टिकोण है। यह हमें स्वयं से जोड़ता है अपनी आत्मा की आवाज़ सुनने की शक्ति देता है और जीवन को अधिक अर्थपूर्ण बनाता है। जब हम भीतर से स्पष्ट होते हैं तभी बाहर की दुनिया में भी बेहतर योगदान दे सकते हैं। आज आवश्यकता है कि हम कुछ पल अपने लिए निकालें आत्मा से संवाद करें और भीतर की यात्रा आरंभ करें।
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
ब्लॉग: http://badrilal995.blogspot.com
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