अपने स्वयं में अवगुणों की पहचान करें
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अपने अवगुणों की पहचान करने का अभ्यास करते हुए। |
लेखक- बद्री लाल गुर्जर
प्रस्तावना
मनुष्य एक जटिल व्यक्तित्व का धनी है। उसके भीतर अच्छाइयाँ भी हैं और अवगुण भी। परंतु अक्सर हम अपने गुणों को पहचानने में तो सक्षम होते हैं किंतु अपने अवगुणों से आँखें चुराते हैं। कारण सरल है सत्य का सामना करना कठिन होता है। आत्म-जागरूकता और अंतर्दर्शन का पहला चरण है स्वयं के भीतर झांकना और यह देखना कि कौन-कौन से अवगुण हमारे में हैं।
1 अवगुण क्या हैं?
अवगुण शब्द में ही उसका अर्थ छिपा है- वे गुण जो हमें अव अर्थात नीचे गिराते हैं। जैसे- क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार, लोभ, आलस्य, द्वेष, कपट, असत्य, चुगली, आत्ममोह आदि।
ये ऐसे मानसिक विकार हैं जो हमारी सोच, भावनाओं और आचरण को दूषित करते हैं।
अवगुण हमें बाहरी नहीं बल्कि आंतरिक रूप से कमजोर बनाते हैं। धीरे-धीरे ये हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं और हम इन्हें सामान्य समझने लगते हैं।
2 अवगुणों की जड़ अज्ञान और अहंकार
अवगुणों की सबसे बड़ी जड़ है अज्ञान स्वयं की असली प्रकृति का न जानना और अहंकार स्वयं को श्रेष्ठ समझना।
जब व्यक्ति अपने भीतर के शुद्ध स्वरूप से दूर हो जाता है तब वह बाहरी चीज़ों में सुख खोजने लगता है। इसी खोज में उसका मन लोभ, क्रोध, ईर्ष्या और अहंकार से भर जाता है।
अहंकार एक ऐसा पर्दा है जो व्यक्ति को अपनी गलतियों से अंधा बना देता है।
इसलिए आत्म-सुधार की शुरुआत अहंकार को त्यागने से होती है।
3 अपने अवगुणों की पहचान क्यों आवश्यक है?
यदि कोई व्यक्ति बीमार है और उसे अपनी बीमारी का पता ही नहीं तो वह उपचार कैसे करेगा?
ठीक उसी तरह, यदि हम अपने अवगुणों को नहीं पहचानेंगे तो उन्हें दूर कैसे करेंगे?
अवगुणों की पहचान इसलिए जरूरी है क्योंकि-
- ये हमारी आत्मिक ऊर्जा को नष्ट करते हैं।
- ये हमारे संबंधों को बिगाड़ते हैं।
- ये हमारी विचार-शक्ति और निर्णय क्षमता को कमजोर करते हैं।
- ये हमें असंतोष और तनाव की ओर ले जाते हैं।
जो व्यक्ति अपने दोषों को पहचान लेता है वह आधा सुधर जाता है।
4 स्वयं को देखने की कला- अंतर्दर्शन
अवगुणों की पहचान की सबसे बड़ी साधना है अंतर्दर्शन।
अंतर्दर्शन का अर्थ है- अंदर की ओर दृष्टि डालना।
यह अभ्यास हमें अपनी आदतों, विचारों, प्रतिक्रियाओं और व्यवहार का निरीक्षण करने की प्रेरणा देता है।
जब हम किसी परिस्थिति में प्रतिक्रिया देते हैं तो बाद में रुककर स्वयं से प्रश्न करें-
क्या मेरी यह प्रतिक्रिया उचित थी?
क्या मैंने किसी के प्रति कठोर व्यवहार किया?
क्या मेरे भीतर किसी के प्रति ईर्ष्या या अहंकार था?
ऐसे प्रश्न हमारे भीतर के छिपे अवगुणों को उजागर करते हैं।
5 अवगुणों की पहचान के व्यावहारिक उपाय
आत्म-निरीक्षण की डायरी रखें
हर रात सोने से पहले दिनभर के अपने व्यवहार का लेखा-जोखा लिखें।
– कहाँ आपने झूठ बोला?
– कब क्रोध किया?
– किससे ईर्ष्या हुई?
धीरे-धीरे आपको अपनी कमजोरियाँ स्पष्ट दिखने लगेंगी।
दूसरों के सुझाव सुनें
कभी-कभी हमारे अवगुण हमें नहीं दिखते पर दूसरों को दिखाई देते हैं।
आलोचना से बचने की बजाय उसे आत्म-सुधार का अवसर मानें।
ध्यान और मौन का अभ्यास
ध्यान से मन की गहराई स्पष्ट होती है। मौन से भावनाओं का स्वरूप उजागर होता है।
यह संयोजन आत्म-जागरूकता को बढ़ाता है।
दर्पण विधि
प्रत्येक दिन सुबह अपने चेहरे के साथ अपने अंतर्मन को भी दर्पण में देखें।
स्वयं से कहें- आज मैं ईमानदारी से अपने भीतर झांकूंगा।
यह छोटा अभ्यास आत्म-संवाद को मजबूत बनाता है।
6 प्रमुख अवगुण और उनकी पहचान
क्रोध-
जब आपकी बात न माने जाने पर भीतर अशांति बढ़े जब आप आवाज़ ऊँची करें- समझिए क्रोध ने वास कर लिया है।
पहचानें आपके चेहरे की गर्मी हृदय की गति शब्दों की कठोरता।
ईर्ष्या-
जब किसी की सफलता देखकर मन में जलन उठे तो यह ईर्ष्या का संकेत है।
पहचानें दूसरों की अच्छाई देखकर मन का विचलित होना।
अहंकार-
जब मैं की भावना बढ़ जाए और हम लुप्त हो जाए तो यह अहंकार है।
पहचानें- अपनी राय को अंतिम मानना और दूसरों को तुच्छ समझना।
लोभ
जब संतोष खो जाए और अधिक पाने की लालसा बढ़ जाए यह लोभ है।
पहचानें- निरंतर संग्रह और असंतोष की भावना।
आलस्य
जब मन कार्य से भागे बहाने बनाए और आत्म-विकास टल जाए।
पहचानें कल से करूंगा की प्रवृत्ति।
7 अवगुणों से मुक्ति की दिशा
पहचान के बाद अगला चरण है- परिवर्तन।
परिवर्तन के लिए आवश्यक है-
- स्वीकृति- हाँ यह दोष मेरे भीतर है।
- प्रतिबद्धता- मुझे इसे बदलना है।
- प्रयास- मैं प्रतिदिन सुधार करूंगा।
- धैर्य- परिणाम समय ले सकते हैं।
जैसे बगीचे से खरपतवार हटाने में समय लगता है वैसे ही मन के अवगुणों को मिटाने में भी धैर्य चाहिए।
8 आत्मिक शुद्धि की प्रक्रिया
अवगुण हटाना मात्र नैतिक कार्य नहीं यह आत्मिक साधना है।
जब हम अपने भीतर के दोषों को पहचानते हैं तो हमारा चित्त हल्का होता है।
हमारा मन निर्मल होता है और उसमें नई चेतना का संचार होता है।
यह आत्मा के वास्तविक स्वरूप की ओर एक यात्रा है।
9 आत्म-सुधार के लाभ
- मन में शांति और संतुलन आता है।
- संबंधों में प्रेम और सहयोग बढ़ता है।
- आत्मविश्वास और आत्म-संतोष प्रबल होता है।
- जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होता है।
- व्यक्ति समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनता है।
10 निष्कर्ष
अवगुणों की पहचान आत्म-विकास का प्रारंभिक परंतु सबसे आवश्यक कदम है।
जो व्यक्ति स्वयं को देखना सीख लेता है वह संसार को सही दृष्टि से देखने लगता है।
अवगुणों का स्वीकार ही गुणों की उत्पत्ति का बीज है।
इसलिए हमें हर दिन अपने भीतर झांककर पूछना चाहिए-
क्या मैं आज कल से बेहतर हूँ?
यही आत्म-सुधार की सच्ची यात्रा है।
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